वैश्य समाज को अब राजद से ‘बैर’ नहीं तो कहीं हरिजन और दुसाध के अखाड़े में मुसहर दिख रहे पहलवान

वैश्य समाज को अब राजद से ‘बैर’ नहीं
तो कहीं  चमार और दुसाध के अखाड़े में मुसहर दिख रहे पहलवान


जेटीन्यूज़
पटना :
राष्‍ट्रीय जनता दल और वैश्य जाति के बीच एक प्रकार से आपसी सहमति और समझौता बनता दिख रहा है। खासकर उन क्षेत्रों में, जहां भाजपा का उम्‍मीदवार नहीं होता है। पिछले विधान सभा चुनाव में जदयू के कई उम्‍मीदवारों के खिलाफ राजद ने वैश्य समाज को टिकट दिया और उनमें से पांच जीतने में सफल रहे थे। इसी प्रयोग की सफलता को देखते हुए राजद ने तारापुर विधानसभा उपचुनाव में एक वैश्य समाज को अपना उम्‍मीदवार बनाया है।
राजद नेतृत्‍व ने पार्टी के दिग्‍गज नेता जयप्रकाश यादव के परिवार को छोड़ कर अरुण कुमार साह को अपना उम्‍मीदवार बनाया है। पिछली बार तारापुर सीट पर जयप्रकाश यादव की पुत्री दिव्‍या प्रकाश उम्‍मीदवार थीं और पराजित हो गयी थीं। तारापुर में कई नगरीय क्षेत्र भी हैं, जहां वैश्य समाज की बड़ी आबादी है। इसका लाभ अरुण कुमार साह को मिलने की संभावना है।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा के अनुसार, 2020 में मुंगेर, बांका और जमुई जिले में राजद की पराजय की बड़ी वजह जयप्रकाश यादव के इन जिलों में रणनीति को माना गया था।
राजद की वैश्य नीति बदलने के बाद चुनाव का परिणाम भी बदला। 2015 में अकेले समीर कुमार महासेठ राजद के बनिया विधायक थे. जबकि 2020 में मधुबनी से समीर महासेठ, मोरवां से रणविजय साहू, बेलसंड से संजय गुप्‍ता, सासाराम से राजेश गुप्‍ता और शेरघाटी से मंजू अग्रवाल निर्वाचित हुईं। मतलब 2015 में एक बनिया विधायक थे और 2020 में 5 हो गये।
वहीं कुशेश्‍वरस्‍थान में भी राजद ने नया प्रयोग किया है। राजद ने कांग्रेस के दावे को नकारते हुए मुसहर जाति के गणेश भारती सदा को उम्‍मीदवार बनाया है। वैसे समाजवादी नेता राम सुदिष्ट यादव का कहना है कि सामाजिक न्याय के योद्धा आदरनीय लालू प्रसाद यादव जी कमजोड़ वर्ग के लोगों को समाज के मुख्यधारा में लाने के लिए हरेक चुनाव में नये नये प्रयोग करते रहे है। भगवतीया देवी, यूनिस लोहिया, रामकरण सहनी, मोहन राम जैसे दर्जनों उदाहरण मौजूद हैं।
पासवान और रविदास का चुनावी अखाड़ा माने जाने वाली इस सीट पर राजद ने मुसहर ‘पहलवान’ को उतार दिया है। कांग्रेस या जयप्रकाश यादव के विरोध और नाराजगी के बावजूद राजद का उम्‍मीदवार चयन की रणनीति काफी सकारात्‍मक है। इसका लाभ कितना मिलता है, यह चुनाव परिणाम बतायेगा। पर इतना तय है कि पिछले उम्‍मीदवारों की तुलना में दोनों नये उम्‍मीदवार ज्‍यादा संभावनाशील साबित होंगे।

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