जननायक कर्पूरी नाम नहीं संस्था है -प्रोभीसी,प्रोफेसर संजय कुमार
जननायक कर्पूरी नाम नहीं संस्था है -प्रोभीसी,प्रोफेसर संजय कुमार
भारत की राजनीति से विपक्ष का प्राण चला गया- डॉ आर के वर्मा
जननायक कर्पूरी ठाकुर:फर्स से अर्स तक – कुलसचिव डॉ राय
जे टी न्यूज़
पटना : नालंदा खुला विश्वविद्यालय के तत्वावधान में सोमवार को जननायक कर्पूरी ठाकुर की 98 वीं जयंती बिस्कोमॉन भवन,पटना में स्थित कांफ्रेंस हॉल में मनायी गई। इस अवसर पर महान कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रति कुलपति प्रोफेसर संजय कुमार ने की। अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर नाम नहीं संस्था थे। उनके आचरण,व्यवहार और विचारों को जीवन में उतारने की जरूरत है। उनके सादगी और ईमानदारी का लोहा विरोधी भी मानते हैं। समाज में समरसता तभी आएगी जब सभी समान होग। उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर को चार चीजों के लिए जाना जाता है, सामाजिक न्याय,भाषाई पॉलिसी, आरक्षण नीति और रोजगार। सर्वप्रथम एमबीसी शब्द का प्रयोग हुआ।
कुलसचिव डॉ घनश्याम राय ने स्वागत भाषण दिया। डॉ राय ने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर अपने कर्म साधना के बदौलत जन जन के जननायक बने। आजादी से पूर्व दो बार और आजाद भारत में अठारह बार जेल गए। उनके क्रिया-कलाप को देखने से लगता है कि उन्हें समाज के दबे कुचले लोगों, गरीबों , निर्वसनो, निर्वचनों और निःआसनों के प्रति कार्य करने की बहुत जल्दबाजी थी। उन्होंने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर 5 मार्च 1967 में सम्मिलित सरकार में सबसे ज्यादा विधायक रहते उप मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने सचिवालय के क्रिया-कलाप में राजभाषा अधिनियम को कार्यान्वित कर हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य किया तथा मैट्रीक के पाठ्यक्रम में अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त कर उसे वैकल्पिक विषय बनाया। 22,दिसम्बर1970 को प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने के बाद 1अप्रैल 1971 को छठे एवं सातवें वर्ग की विद्यालय शुल्क माफ कर प्राथमिक शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाया। उन्होंने 1974 में जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी। 24 जून 1977 को दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने पर 2 अक्तूबर1977 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन से भंगियों द्वारा सिर पर मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लिए सरकारी निर्देश दिया और “हरिजन संरक्षण सप्ताह” मनाने की घोषणा की। 11अक्टूबर 1977 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर बिहार में मैट्रीक तक निःशुल्क शिक्षा की घोषणा तथा प्राथमिक कक्षा की मुफ्त पुस्तक वितरण करने का निर्णय लिया। 26 जनवरी 1978 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक गांधी मैदान ,पटना, में 6 हजार जूनियर इंजीनियर और 4 हजार बेरोजगार डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र का सामूहिक वितरण किया। 11नवम्बर 1978 को बिहार के पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया।कर्पूरी जी का सोच था कि “आरक्षण का सिद्धांत न तो राजनैतिक रोटी सेकने की आग है और न ही जातिवाद चलाने का औजार, बल्कि सामाजिक-राजनैतिक न्याय को पंक्ति के आखिरी व्यक्ति तक पहुँचाना है।”
रसायनशास्त्र के समन्वयक प्रोफेसर के के सिंह ने कहा कर्पूरी जयंती मनाना एन ओ यू के लिए मील का पत्थर है । भारत विश्वगुरू तभी बनेगा जब जननायक कर्पूरी जी के सिद्धांतों और विचारों को आत्मसात किया जाएगा। जो लोग नीचे से उभरकर आगे बढ़ते हैं वही नायक और जननायक कहलाते हैं। डॉ अमरनाथ पांडेय, समन्वयक, आइटी सेल,एन ओ यू ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर वास्तविक जननायक थे। वे सादगी के मिशाल थे। डॉ आर के वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान विभाग, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर ने कहा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर भौतिक सुखों के लिए राजनीति नहीं की। उनकी मृत्यु के पश्चात अखबारों में प्रकाशित हुआ कि भारत की राजनीति से विपक्ष का प्राण चला गया। उनकी मृत्यु के पश्चात विपक्ष कमजोर हो गया। डॉ मीना कुमारी, शिक्षिका, शिक्षा विभाग ने कहा कि उन्होंने वंचित उपेक्षित लोगों को आगे बढ़ाने का काम किया। तृप्ति कुमारी, शोधार्थी ने कहा कि उनके सहज सरल भाषा के सभी कायल थे। जननायक कर्पूरी ठाकुर पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की ” *रश्मिरथी” की यह कविता उपयुक्त लगता है:-
” तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,*
पाते हैं जग में प्रशस्ति, अपना करतब दिखला के।”
इस अवसर पर वित्त पदाधिकारी रामशीष प्रसाद के साथ साथ विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ संगीता कुमारी,समन्वयक उर्दू, प्रोफेसर इजराइल रजा, कर्मचारी क्रमशः मुकेश कुमार, मनोज कुमार, राजकुमार, ज्ञान प्रकाश, बिपिन बिहारी प्रसाद, रामकुमार, संतोष, गुड्ड, पप्पू तिवारी, राजीब दूबे, राजकुमार झा,रवि प्रभाकर, रविशंकर लाल,पवन, गणेश आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ पल्लवी, शिक्षिका, शिक्षा विभाग और धन्यवाद ज्ञापन डॉ किरण पाण्डे, शिक्षिका, कंप्यूटर सांयस ने किया।