बिहार में हुआ है समाजवादियों के दो धरों के मिलन, होगी नये युग की शुरुआत

बिहार में हुआ है समाजवादियों के दो धरों के मिलन, होगी नये युग की शुरुआत

प्रो अरुण कुमार की कलम से

 

नीतीश कुमार के आठवीं वार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही बिहार में एक स्वर्णिम युग की शुरुआत हो गई है। आगे आने वाला वक्त साबित करने वाला है कि जितनी जिसकी आबादी सत्ता में उसकी उतनी हिस्सेदारी।यानि सबका साथ सबका विकास। सही मायने में समाजवाद। नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी बिहार में 90 के बाद एक बार फिर समाजवादी की सोच के तहत विकास का एक नया आयाम जोड़ने वाले हैं। लेकिन इसमें चुनौतियां भी कम नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब जब बहुसंख्यक आबादी निचले पायदान से उपर आने की कोशिश की है मनुवादियों ने संगठित वौद्धिक विरोध किया है। मीडिया में तो उनका ही एकाधिकार है। प्रोपगंडा फैलाकर दिग्भ्रमित करना तो ऐसे लोगों को महारत हासिल है। इसलिए उनलोगों ने अपना अभियान बकायदा शुरू भी कर दिया है। लगातार सत्ता से सटकर मलाई खाने से वंचित होने के डर से मानों तेज मिर्ची लग गई हो। इसलिए बिहार की नयी सरकार को जंगलराज पार्ट थ्री कहना शुरू कर दिया है।

एसे लोग यह भूल जा रहे हैं कि बिहार में 1990 से पहले प्रखंड एवं थाना परिसरों में राज्य की 80 प्रतिशत आबादी को घुसने की इजाजत नहीं थी।समाज में बराबरी में बैठने और बोलने की मनाही थी। किसी भी चुनाव में वोट डालने की बात दूर बैलेट पेपर छूने तक नहीं दिया जाता था।1990 में बिहार में समाजवादियों की सरकार आई। लालू प्रसाद को अगुआई करने का मौका मिला और बिहार की फिजा बदल गई।मंडल कमीशन लागू हुआ। समस्तीपुर में कमंडल का रथ रोक दिया गया।32-33 वर्षों से सत्ता में मलाई खा रहे मनुवादी बेदखल कर दिए । इसीलिए उनलोगों ने पिछड़ों की सरकार को जंगलराज कहकर प्रचारित करना शुरू किया।अब लालू प्रसाद सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। तेजस्वी ने जमाने और नमी सोच के उभरते राजनेता हैं।वे राज्य और समाज को आधुनिक दौर में आगे ले जाने का माद्दा रखते हैं। शायद यही बात समाज के चंद लोगों को पसंद नहीं है और अभी से अनाप शनाप बयान देकर जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास शुरू कर दिया है।

 

 


अब आइए बात करते हैं केंद्र की एनडीए सरकार की।आर एस एस का एजेंडा आगे लेकर चलने वाली केंद्र की सरकार पिछड़ों की बात करती है। पिछड़ों के वोट से पिछड़ों के दम पर बनी है।मगर अभी तक पिछड़ों और गरीबों को मिला किया है।300 रुपये का सिलेंडर 1150 रुपए में मिल रहा है। पहली बार दूध,दही , घी मक्खन पर टैक्स लगाया जा रहा है।50 रुपए का पेट्रोल 110 रुपये में मिल रहा है।आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत आसमान छू रही है। सरकारी नौकरियां खत्म हो गयी है‌।काम के अभाव में महानगरों से मजदूरों का पलायन हो गया है।गांव में भी काम नहीं है। नतीजा है कि गांव में सड़कों के

 

किनारे कुक्कड़मुत्ते की तरह छोटी दुकानें खुल तो रही है।और बिक्री के अभाव में उसी क्रम में बंद भी हो जा रही है।लोग परेशान हैं।उधर बड़े पूंजीपतियों का अरबों अरब का कर्ज माफ हो रहा है।फिर उन्हीं लोगों को नये कर्ज दिए भी जा रहें हैं। निजीकरण कर निचले तबके के लोगों के नौकरी के अवसर समाप्त किए जा रहे हैं।इतना होने के बाद साथ में प्रबुद्ध कहे जाने वाले चंद लोगों को केंद्र की एनडीए सरकार में कोई बुराई नहीं दिख रही है।और बिहार में जब एक नये युग की शुरुआत हो रही है।तो कुत्सित मानसिकता के लोग अभी से जंगलराज की वापसी बताने में जी जान से जुट गए हैं।इतना एनडीए के साथ रहने पर जिस नीतीश कुमार को विकास पुरुष और न जाने किन किन विशेषणों से नमाजा जा रहा था , उन्हें अब पानी पी पी के कोसा जा रहा है। इसलिए आवश्यकता है खुली मानसिकता से सोचने की और बिहार की नमी राजनीति व हकीकत को दिल से स्वीकार करने की। शायद समाज और राज्य की भलाई इसी में नीहित है। आइए बिहार में समाजवादियों के दो धरो़ं के मिलन एवं नये युग की शुरुआत की सब मिलकर तहे दिल से स्वागत करें।

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