ठाकुर अनुकूल चंद्र जी से महात्मा गाँधी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल बहादूर शास्त्री, देशबंधु चिरंजन दास व सुभाष चन्द्र बोस आदि विभूतियों ने लिया था आशीर्वाद

ठाकुर अनुकूल चंद्र जी से महात्मा गाँधी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल बहादूर शास्त्री, देशबंधु चिरंजन दास व सुभाष चन्द्र बोस आदि विभूतियों ने लिया था आशीर्वाद
जेटी न्यूज

रामगढ़वा पूर्वी चंपारण- युग पुरुषोत्तम परमप्रेममय श्रीश्री ठाकुर अनुकूलचंद्र जी कलियुग के प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल बनाने के लिए इस धरा धाम पर अवतरित हुए हैं। जब देश में श्री श्री ठाकुर के अवतरित पुरुष के रूप में चर्चा चली तो बहुत से विचारक , वैज्ञानिक, नेता,चिकित्सक,भगवान के भक्त, साधु-सन्यासी आदि पावना (वर्तमान बंग्लादेश) पहुँचने लगे युग पुरुष के दर्शनार्थ। जिसमें से महात्मा गाँधी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, श्यामाप्रसाद मुखर्जी , लाल बहादूर शास्त्री, देशबंधु चिरंजन दास, सुभाष चन्द्र बोस आदि व्यक्तियों ने समय-समय पर श्री श्री ठाकुर के विचारो से रूबरू हुए और लाभ भी उठाया।

जिनमें से लाल बहादूर शास्त्री, देशबंधु चिरंजन दास, और सुभाष चन्द्र बोस के माता- पिता ने श्री श्री ठाकुर का शिष्यत्व ग्रहण किया। उन्होंने कभी भी स्वयं को अवतार या भगवान या ठाकुर कहलवाना पसंद नहीं किया, अपितु उन्हें इन शब्दों से पीड़ा होती थी। लेकिन भक्त नर रूपी नारायण को आखिर पहचान ही जाते है। श्री श्री ठाकुर ने भारत ही नहीं अपितु विश्व को अपनी दिव्य-ज्योति और वाणियों से आलोकित किया। वे लोग परम सौभाग्यशाली हैं जिन्हें श्री श्री ठाकुर का सानिंध्य मिला। परम पुरुष ने विश्व को वर्त्तमान युग में जीवन जीने का तरीका सिखाया, धर्म की एक नयी परिभाषा दी, वे कहते है :-
“धर्म में सभी बचते बढ़ते, सम्प्रदाय को धर्म न कहते ” ।


अर्थात धर्म एक है जिसमे सभी बचते है बढ़ते है और पोषित होते है। श्री श्री ठाकुर ने व्यक्ति, दम्पति,परिवार, समाज और राष्ट्र निर्माण सभी के लिए कार्य किया। उन्होंने अपने शिष्यों को इसे इष्ट कार्य बताया। इनके असंख्य शिष्य तन -मन -धन से इस इष्ट कार्य में लगे हुए हैं। उन्होंने पहला सत्संग आश्रम हिमाईतपुर पावना में स्थापित किया। करोडों रुपये व्यय कर तथा हजारो मनुष्यों ने दिन रात कठिन परिश्रम कर भव्य विज्ञानशाला,तपोवन विद्यालय, मातरि-विद्यालय, रसायन शाला, वृहद् सत्संग प्रेस, इंजीनियरिंग कारखाना, आनन्द बाजार (भंडारा) आदि बहुत से क्रियाकलाप राष्ट्र-निर्माण के व्यावहारिक आदर्श प्रस्तुत कर रहे थे। परन्तु त्रिकाल दर्शी प्रभु को देश की अमंगल का चित्र उनके पारदर्शी मस्तिस्क में अंकित हो गया। यह घटना सन 1946 की है जब वे अचानक व्याकुल सा हो गए और अपने एक शिष्य से देवघर (बैद्यनाथ धाम ) बिहार (वर्त्तमान में झारखण्ड)आने का विचार प्रकट किये। और बिना किसी से कहे सुने हठात उन्होंने ट्रेन की एक स्पेशल बोगी बुक कर कुछ सत्संगियों के साथ करोडों कि सम्पति छोड़ सब कुछ बिशेष लोगों के हवाले कर के देवघर पहुँचे। फिर से एक नया सत्संग आश्रम की स्थापना की जो अभी तक आचार्यदेव जी दादा के निर्देश से द्रुत गति से चल रहा है। जिस अमंगल की आशंका से श्री श्री ठाकुर पावना छोड़ कर देवघर आये थे वह अमंगल देश टाल न सका। एक साल बाद पुरे बंगाल में और देश में दंगा मार काट हुआ, देश का विभाजन हुआ जिसे सारे देश ने देखा। इसे आप क्या कहेंगे ? बहुत से लोगों ने श्री श्री ठाकुर से पूछा कि दयाल आप आखिर पावना क्यों छोड़ के जा रहे है ?,

इस महामानव ने सब जानते हुए भी अपनी जुबान नहीं खोली ,सिर्फ यही कहते रहे की जिसे मेरे साथ चलना है चलो नहीं तो यही रहो अब मैं यहाँ नहीं रहूँगा। अपने जन्म स्थली छोड़ के एक निर्दयी की भांति ठाकुर चल दिए अपने कर्म क्षेत्र की ओर। उन्होंने देवघर को अपना लीला भूमि बनाया। जहां आज पूरे विश्व के लोग देवघर ठाकुर जी के आश्रम में आकर व उनकी दीक्षा ग्रहण कर तथा उनके नीति-विधि का पालन कर अपने जीवन को धन्य कर रहे हैं।

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