मंजू देवी की सफलता की कहानी उन्ही की जुबानी

जेटी न्यूज

ताजपुर / समस्तीपुर  यह कहानी है एक निर्धन परिवार में जन्मे एक युवती की,जिसने अपनी मेहनत से सफलता हासिल की । जिले के ताजपुर प्रखंड अन्तर्गत हरीशंकरपुर बघौनी निवासी मंजू देवी मीडिया से बात करते हुए बताया कि उनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिताजी रिक्शा चालक थे। उनकी शादी मात्र 16 वर्ष की उम्र में हीं कर दी गई थी । उनके ससुराल का परिवार भी काफी गरीब था । उनके पति राजमिस्त्री का काम करते हैं । उस समय घर में कुल 4 लोग थे- सास ससुर उनके पति और वे स्वम् । इन 4 परिवारों का भरण पोषण उनके पति के कमाई से होता था । इसी तरह परिवार चलता रहा उनकी शादी को 10 वर्ष हो गए ।

उनके ससुर का देहांत हो गया । अब उनके 3 बच्चे भी हो गए । अब उनके पति बीमार रहने लगे थे । पैसा के अभाव में उनका सही इलाज नहीं हो पा रहा था । परिवार का भी भरण पोषण बड़ी मुश्किल से होता था । तभी उनके बगल की अनीता नाम की एक महिला ने कैरी बैग की चर्चा की । उस महिला की बात उनको पसंद आया और वे चल रहे कैरी बैग के प्रशिक्षण केंद्र पहुंची । प्रशिक्षण केंद्र पर मौजूद संस्था के सचिव मो0 तौफीक से मुलाकात की ।

संस्था के सचिव ने उन्हें प्रशिक्षण की सारी जानकारी दी और कहा कि प्रशिक्षण में कल से हीं भाग ले लो । कल होकर ही उन्होंने 30 दिवसीय प्रशिक्षण लेना शुरू किया । प्रशिक्षण उपरांत कुछ दिनों बाद कैरी बैग उद्योग प्रोडक्शन चालू हुआ । संस्था के द्वारा प्रोडक्शन में पहले ऋण वितरण किया गया । सबसे पहले उन्हें 71700 रुपया का लोन दिया गया

जिसमे स्क्रीन के तौर पर सिलाई मशीन एवं मीटिंग मशीन इत्यादि सामिल था।कैरी बैग का काम चालू होने के प्रथम माह उन्हें 3 हजार की कमाई हुई । दूसरे महीने में 7 हजार और तीसरे माह में 10 हजार का आमदनी हुआ जो अब तक हो रहा है । वे अपने आमदनी से सर्वप्रथम अपने पति का इलाज करवाया और बच्चों का स्कूल ड्रेस, किताब कॉपी आदि खरीदा और बच्चों को प्राइवेट स्कूल में नाम दाखिला करवाया । अब उनके पति का तबीयत भी ठीक हो गया था ।

पति फिर से काम पर जाने लगे थे । उनकी दोनों पति-पत्नी के कमाई में एक की कमाई से परिवार चलता था और एक के कमाई से नाबार्ड द्वारा दिए गए ऋण का रीपेमेंट और कुछ भविष्य के लिए भी जमा हो रहा था । इसी बीच नोटबंदी आ गया। आमदनी कम हो गई । उसके बाद करोना काल आ गया । काम पूरे तौर पर बंद हो गया । जो पैसा बचत के तौर पर रखे हुए थे उसी से परिवार चलता रहा । संस्था के द्वारा लोन का क़िस्त जमा करने के लिए बार-बार तगादा होता रहा, मगर वे पैसा जमा नहीं कर पाए।

उनका कहना है कि अगर पैसा जमा करते तो भूखा रहना पड़ता । इस कारण ऋण का क़िस्त जमा नही हुआ । जब कोरोना काल समाप्त हुआ तो संस्था के सचिव ने उनकी कैरी बैग उद्योग को चालू करवाया । धीरे-धीरे काम बढ़ता गया। अब पहले के जैसा काम चल रहा है । वैसे ही आमदनी हो रही है नवाब द्वारा दिए गए ऋण को भी चुकता कर लिया गया है।

अब उनके पास 30 लाभार्थी पर ₹2 लाख का मशीनरी एवं कच्चा माल है । लगभग 500000 ( 5 लाख ) का बाजार में बकाया भी है । अब उनपर कोई कर्ज नही है । अब उनके बच्चे महंगी स्कूल में पढ़ते हैं । पीएम आवास एवं अपना पैसा मिला कर एक छोटा सा मकान भी बनवा लिए है । और कुछ पैसा बैंक में भी बचत के तौर पर जमा है । अब उनके परिवारिक की जिंदगी में किसी तरह का कोई कमी नहीं है । वे अपने इस सफलता के लिए नवार्ड एवं उत्तम वाटिका संस्था को धन्यवाद दे रही हैं ।

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