विषय-तुम रूठते गए क्यों?

विषय-तुम रूठते गए क्यों?
जे टी न्यूज़

दिन-दिन किए किनारा,प्रियतम महान मेरे।
तुम रूठते गए क्यों,किसमें निदान हेरे।।

हिय में जगी पिपासा,दृग खार-नीर पीती।
अपराधिनी बनी सी,स्वामी अभाव जीती।।
दिन आज याद आए,तुमसे प्रथम मिली थी।
पा प्रेम का इशारा,कलिका सुमन खिली थी।
लगता बरस पड़ेंगे,बादल बने घनेरे।
तुम रूठते गए क्यों,किसमें निदान हेरे।।

स्वामी पुकार सुन लें,यह प्रियतमा पुकारे।
घन चातकी बनी सी,निज दाँव जीत हारे।।
आषाढ़ की दुपहरी,अब तो सहन न होती।
यह बार-बार रोती,धीरज हजार खोती।।
आकाश शून्य देखे,पर नीर-नीर टेरे।
तुम रूठते गए क्यों,किसमें निदान हेरे।।

यह बावली बनी सी,आँचल उघार देती।
उर में चुभन बहुत है,लम्बी उसाॅस लेती।।
उर की पुकार सुनकर,यह दीनता मिटाओ।
करके समय उलंघन,अति शीघ्र पास आओ।।
रिपु के समान आँखें,यह काल है तरेरे।
तुम रूठते गए क्यों,किसमें निदान हेरे।।

आधार मान मेरे,कह मानिनी पुकारो।
स्वीकार लो समर्पण,दृग नेह भर निहारो।।
तुम पारिजात आँगन,उर गेह को सजाओ।
सहना विरह कठिन है,अपने हृदय लगाओ।।
सुनकर पुकार मेरी,कर याद सप्त फेरे।
तुम रूठते गए क्यों,किसमें निदान हेरे।।

जीवन सरोज तुमसे,पूजा प्रभात जाने।
ले थाल आरती की,रवि को चली दिखाने।।
मेरे महेश स्वामी,होकर प्रसन्न आओ।
निज सेविका समझकर,अपने गले लगाओ।।
जीवन प्रकाश मेरे,करुणा स्वरूप प्रेरे।
तुम रूठते गए क्यों,किसमें निदान हेरे।।

कु.पूजा दुबे
सागर मध्य प्रदेश

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