*गांधीदर्शन मानवता की रक्षा हेतु सदा प्रासंगिक-डॉ मुश्ताक*

 

 

*महात्मा गांधी अलौकिक व्यक्तित्व के धनी महापुरुष – प्रो

भीमनाथ झा*

*गांधीदर्शन मानवता की रक्षा हेतु सदा प्रासंगिक-डॉ मुश्ताक*
*गांधी विश्व के नेता तथा भारत के त्राता-डॉ प्रेम मोहन मिश्र*
दरभंगा ::-महात्मा गांधी अलौकिक व्यक्तित्व के धनी महापुरुष थे, जिनक विचारों की प्रासंगिकता सार्वदेशिक व सर्वकालिक है।उनका व्यक्तित्व महान है।गांधी को महात्मा बनाने तथा सफल बनाने में मिथिला का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

मिथिला और महात्मा दोनों एक-दूसरे को आगे बढ़ाने में मददगार रहा है।गांधी के जीवन और कार्योंं से मैथिली साहित्य समृद्ध हुआ है।उक्त बातें मैथिली साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया कहे जाने वाले प्रोफेसर भीमनाथ झा ने साहित्य अकादमी,नई दिल्ली तथा सी एम कॉलेज,दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालय में “महात्मा गांधी :मिथिला और मैथिली (विशेष संदर्भ : चंपारण) विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी में उद्घाटन वक्तव्य के रूप में कहा।उन्होंने कहा कि गांधी के विचारों का मैथिली साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

 

आज गांधी से संबद्ध मैथिली साहित्य में उपलब्ध सामग्रियों पर शोध करने की सख्त जरूरत है,तभी गांधीचरित और मैथिली-साहित्य की समृद्धि का पता चलेगा।इस कार्य में आलोचना-समालोचना आवश्यक है,क्योंकि आलोचना ही व्यक्तित्व की वास्तविक कसौटी होता है।

साहित्य अकादेमी के मैथिली परामर्श मंडल के संयोजक डॉ प्रेम मोहन मिश्र ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि मिथिला हमेशा से ही देश को दिशा और दशा देते रहा है।भारतीय राष्ट्रीय संग्राम में मिथिला का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

मैथिली साहित्य गांधी चर्चा से भरा पड़ा है।मैथिली साहित्य राम,कृष्ण के बाद गांधी को विष्णु का तृतीय अवतार मानता है।चंपारण सत्याग्रह के बाद गांधी ने स्वयं लिखा कि मैं राजा जनक की भूमि चंपारण गया था,जहां उन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर अपने आंदोलन को जनआंदोलन का रूप देकर भारत में पहली बार सफलता पायी थी।गांधी विश्व के नेता तथा भारत के त्राता थे।मिथिला में ही गांधी को महात्मा नाम से सर्वप्रथम संबोधित किया था।
अध्यक्षीय संबोधन में प्रधानाचार्य डॉ मुश्ताक अहमद ने कहा कि यह संगोष्ठी कई मायनों में महत्वपूर्ण है।मैथिली हमारी मातृभाषा या हमारे परिवेश की भाषा है।हर भाषा की अपनी एक संस्कृति होती है। हर साहित्य प्रेमी को दूसरे भाषा के साहित्य को भी पढ़ना समझना चाहिए। भारत की कोई भी भाषा नहीं है, जिसमें गांधी दर्शन ना हो। गांधी दर्शन मानवता की रक्षा हेतु सदा प्रसांगिक है।
साहित्य अकादमी के कार्यक्रम अधिकारी मनजीत कौर भाटिया ने कहा कि साहित्य अकादमी 24 भाषाओं में कार्यक्रम करता है। गांधी की डेढ़ सौ वीं वर्षगांठ के अवसर पर ऐसे अनेक कार्यक्रम किए जा रहे हैं,जिनका उद्देश्य नई पीढ़ी को गांधी से अवगत कराना है ।युवा आज पश्चात प्रभाव में आ रहे हैं, जिन्हें हम गांधी जैसे महापुरुषों की जीवनी की जानकारी दे रहे हैं। साहित्य अकादेमी के मैथिली परामर्श मंडल के सदस्य डॉ अमरेंद्र शेखर पाठक ने कहा कि गांधी विचार का प्रभाव प्रायः विश्व के सभी देशों पर पड़ा है। मिथिला समाज गांधी को आत्मसात किया है। मैथिली साहित्य के प्रायः सभी पक्षों में गांधी वर्णन मिलता है।गांधी के मिथिला आगमन से लेकर आज तक गांधी पर मैथिली में रचना धारा निरंतर चली आ रही है।गांधी आधारित सम्पूर्ण मैथिली साहित्य का संकलन होना आवश्यक है।


इस अवसर पर प्रोफ़ेसर प्रीति झा,डॉ अशोक कुमार मेहता, डॉ शिवप्रसाद यादव,प्रो रमेश झा,डॉ नरेश कुमार विकल, डॉ फूलचंद मिश्र रमन,डॉ सुरेंद्र भारद्वाज,स्वीटी कुमारी, डॉ योगानंद झा,डॉ भागवत मंडल,रोशन कुमार यादव, प्रोफेसर विश्वनाथ झा,डॉ पी के चौधरी,डॉ सुरेश पासवान, डॉ आर एन चौरसिया सहित एक सौ से अधिक शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रो अभिलाषा कुमारी तथा धन्यवाद ज्ञापन मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो रागनी रंजन ने किया।

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