पार्टी शीर्ष नेतृत्व के लिए बिहार की चालीस सीटों का महत्व

पार्टी शीर्ष नेतृत्व के लिए बिहार की चालीस सीटों का महत्व

लेखक – डॉ अमित मिश्र

जे टी न्यूज,
जनसांख्यिकीय दृष्टि कोण से एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों में लगभग तेरह करोड़ भारतीयों का महत्व स्वस्थ लोकतंत्र निर्माण के लिए काफी मायने रखने वाला हैं। बिहार के सभी लोकसभा क्षेत्र के लिए सभी पार्टियों के तरफ से उम्मीदवारों का नाम भी फाइनल हो गया हैं। आगामी १९ अप्रैल को बिहार के कई महत्वपूर्ण सीटों पर पहले चरण में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव संपन्न कराये जायेंगे। इसे ध्यान में रखकर एनडीए सहित अन्य पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लगातार बिहार भ्रमण हो रहा हैं। ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा अबकी बार चार सौ पार की जो पृष्ठभूमि तैयार की गई हैं उसके लिए पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा यह सोचना जरुरी हैं कि चालीस के दहाई आकड़ें को कैसे पार किया जाये ताकि निर्धारित लक्ष्य ४०० को हासिल किया जा सके। देश में इस बार का चुनाव अत्यधिक रोचक हैं। एनडीए द्वारा अपने कार्यकाल में किये गये कामों को भुनाया जायेगा तो विपक्ष रोजगार को अपना मुद्दा बनाएगी। पूर्व में बिहार सरकार द्वारा चुनाव को ध्यान में रखकर बिहार में जातीय जनगणना कराई गई थी। इसका कितना लाभ राष्ट्रीय जनता दल और जद यू को होगा यह देखना मजे की बात होगी क्योंकि ये उन दोनों की ही पहल थी जब वे सयुंक्त रूप से बिहार का संचालन कर रहे थे। जातीय जनगणना के अनुसार अभी बिहार में २१५ जातियां हैं जिसमें सबसे ज्यादा ३६.०१ प्रतिशत अत्यंत पिछड़ा वर्ग हैं साथ ही सामान्य वर्ग की बात करें तो यह मात्र १५ प्रतिशत ही हैं ऐसे में सभी पार्टियाँ इस बात से वाकिफ़ हैं कि शह और मात के इस खेल में आमलोगों की भागेदारी कितनी अहम् हैं। पार्टियों में कोई हिंदुत्व की बात करता हैं तो कोई रोजगार को मुद्दा बनाता हैं। सभी अपना अपना ताल ठोक रहे हैं। वैसे इस बार राम मंदिर का बनना भी एक अहम् फैक्टर हैं जिसने करोड़ों हिंदूवादी विचारधारा को सोचने पर विवश कर दिया हैं। इसके साथ अनुच्छेद ३७०, तीन तलाक़, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओं जैसे जनसरोकार वाले मुद्दे मोदी जी को अन्य नेताओं से थोड़ा अलग करते हैं। वैसे तो भारत का लोकतंत्र धर्म निरपेक्षता की बात करता हैं लेकिन जब आस्था की बात आती हैं तो हर हिन्दू सोचने पर विवश हो जाता हैं।

आज हिन्दुओं के मन में सनातन का भाव जागृत होना भी वर्तमान सरकार को आंतरिक मजबूती दे रहा हैं। गौरतलब हैं कि बिहार सहित पुरे देश में २०१९ की तुलना में २०२४ का लोकसभा चुनाव काफ़ी रोचक होगा। बिहार में इस बार के लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो समीकरण में काफी परिवर्तन हैं। युवा मतदाताओं की संख्या बढ़ी हैं। चुनाव में जहाँ नये चेहरे ताल ठोक रहे हैं वहीँ पुराने दिग्जज चेहरे की हवाइयां उड़ी नज़र आ रही हैं। पिछली लोकसभा में एनडीए ने ४० में ३९ सीटें जीती थी। लेकिन बिहार में एनडीए गठबंधन को इस बार २०२० के विधानसभा चुनाव को भी ध्यान में रखना होगा जिसमें राष्ट्रीय जनता दल सहित कांग्रेस एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया था। जबकि पिछले लोकसभा २०१९ के विजयी एनडीए प्रत्याशियों ने विधानसभा चुनाव में पार्टी को कुछ खास मदद नही पहुंचाया था। यह बात अलग है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग अलग मुद्दों पर आधारित होते हैं। ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को हल्के में लेना एनडीए कार्यकर्ताओं को भारी पड़ सकता हैं। दूसरी तरफ पार्टियों के लिए उम्मीदवारों का चयन भी मायने रखता हैं। पार्टियों ने नये चेहरों को मौका दिया हैं ये अच्छी बात हैं लेकिन भीतरी बनाम बाहरी भी इस बार के चुनाव में मायने रखने वाला हैं।

क्योंकि एनडीए सहित महागठबंधन में भी पार्टी विरोध के स्वर साफ़ सुने जा रहे हैं। बिहार में कुछ ऐसे सीट भी हैं जहाँ से पार्टी विमुख नेता खुद निर्दलीय खड़े हैं। बिहार के काराकाट में भोजपुरी फिल्म स्टार पवन सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने की खबर हैं अगर वे चुनावी मैदान में उतरते हैं तो इसका सीधा असर एनडीए पर पड़ सकता हैं। ठीक वैसे ही पूर्णिया लोकसभा सीट पर पप्पू यादव और बीमा भारती में ही आपसी लड़ाई इस बात का संकेत हैं कि वहां मुकाबला आमने-सामने न होकर त्रिकोणीय होगा। ऐसे में एनडीए को सुझबुझ से काम लेकर आगे बढ़ना लाभकारी हो सकता हैं। लोकसभा चुनाव में तमाम शीर्ष नेताओं का बिहार दौरा इस बात की ओर ईशारा करता हैं कि बिहार की जनता लोकतंत्र के लिए कितना महत्वपूर्ण हैं। बिहार को अनदेखा कर दिल्ली की तरफ कूच करना किसी राजनैतिक पार्टी के लिए संभव नही। हालाँकि नामुकिन कुछ भी नही।

Related Articles

Back to top button