शुल्क बढे और घट गया शिक्षा कर्मियों का वेतन, कहते हैं प्राचार्य घट गई आमदनी, सत्ता की शह पर संबद्ध महाविद्यालयों में चल रहा शोषण व दोहन का खेल
शुल्क बढे और घट गया शिक्षा कर्मियों का वेतन, कहते हैं प्राचार्य घट गई आमदनी, सत्ता की शह पर संबद्ध महाविद्यालयों में चल रहा शोषण व दोहन का खेल
जेटी न्यूज।
समस्तीपुर। बिहार में 225 संबद्ध डिग्री कॉलेजों के आंतरिक स्रोत से प्राप्त आय में व्यापक घालमेल है। हाल ये है कि पहले डिग्री महाविद्यालयों में त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम के अंतर्गत साल में एक बार नामांकन और परीक्षा शुल्क लिया जाता था। जिसमें 2500 से 2700 रूपये तक छात्रों से प्रतिवर्ष शुल्क के रूप में लिए जाते थे। तब शिक्षा कर्मियों को एक सम्मानजनक राशि मिलती थी। अब जबकि हर सेमेस्टर में अर्थात प्रत्येक 6 माह पर नामांकन और परीक्षा शुल्क लिया जाता है। जिसमें प्रति छात्र 2555 से 3155 तक हर 6 माह पर वसूले जाते हैं तो शिक्षा कर्मियों को दिया जाने वाला भुगतान आधे से भी कम कर दिया गया है। इस बाबत पूछे जाने पर कहा जाता है कि काॅलेज की आमदनी में कमी आ गई है। इस संबध में जननायक की धरती कर्पूरी ग्राम स्थित गोकुल कर्पुरी डिग्री महाविद्यालय के एक शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पुर्व में जब साल में एक बार छात्रों से नामांकन व एक बार परीक्षा शुल्क लिया जाता था तब प्राध्यापकों को करीब 21600 हजार, प्रधान लिपिक व लेखापाल को 13500 हजार लिपिक को 7600 एवं आदेशपाल आदि को 5740 भुगतान किया जाता था। अब जबकि साल में दो बार नामांकन एवं दो बार परीक्षा शुल्क लिया जाता है तब आमदनी में कमी का हवाला देते हुए शिक्षाकर्मियों का खास कर प्राध्यापकों का भुगतान आधे से भी कम कर दिया गया है। उक्त शिक्षक ने बताया कि इसे छोडिये कई महाविद्यालयों में तो आंतरिक स्रोत से शिक्षा कर्मियों को मंथली भुगतान भी नहीं किया जाता है। इस मामले में आश्चर्य जनक पहलू यह है कि इस घालमेल की जानकारी शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को है। मगर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसका प्रमुख कारण है कि अधिकांश महाविद्यालयों के संस्थापक, सचिव, अध्यक्ष की सत्ता के गलियारे में मजबूत पकड है। इतना ही नहीं सरकार द्वारा जारी परीक्ष परिणाम आधारित अनुदान भी शत-प्रतिशत इन शिक्षा कर्मियों को नहीं मिल पाता है। उस राशि पर भी महाविद्यालय के प्राचार्य के माध्यम से महाविद्यालय के संस्थापक व सचिव की तीखी नजर रहती है। जबकि कुछ महाविद्यालय में आंतरिक स्रोत से वेतन मद में किसी कॉलेज में 10000 तो किसी कॉलेज में तो किसी कॉलेज में 15000 तो किसी कॉलेज में 21500 दिए जाते रहे हैं साथ ही उन कर्मचारियों ईपीएफ भी करता रहा है ऐसे कुछ नए सच्ची और प्रिंसिपल आने के बाद ऐप का रुपया अभी काट कर रख लिए जाते हैं और डिपार्टमेंट नहीं जमा किए जाते सबसे आंचल जनक की बात है कि जब साल में 2000 से 2200 लिए जाते थे तो आंतरिक स्रोत से वेतन अच्छे खासे दिए जाते रहे हैं। शुल्क बढने के बाद शिक्षक कर्मचारी का आंतरिक स्रोत से मिलने वाली मासिक राशि एक चैथाई मिल रही है। यानी पहले 21500 मिल रहे थे तो अब उसे जगह पर 5 से 6000 मिल रहे हैं। कॉलेज प्रबंधन द्वारा यह कहा जा रहा है की इनकम नहीं है। बिहार के शिक्षा मंत्री पुलिस डीजीपी रहे हैं। ऐसे में भ्रष्ट प्रिंसपल, सचिव और कॉलेज प्रबंधन पर क्या वे मामला दर्ज करने की दिशा में कोई आवश्यक कदम उठाएंगे यह यक्ष प्रश्न है। जहां तक रहा मुख्यमंत्री की बात तो मुख्यमंत्री ने वित्त रहित से वित्त सहित करके शिक्षा जगत को जिंदा करने की प्रयास किया था, परंतु उनके सांसद, विधायक, व मंत्री शिक्षा को बर्बाद करने की दिशा में प्रयासरत हैं। जानकार तो ये भी बताते है कि इस मामले में ब्रीफकेश उपर तक पहुंचाया जाता है यह सबसे बडा कारण है कि महाविद्यालयों के इस घालमेल पर कोई कार्रवाई पर नहीं की जाती है।