जेनो राजा वेपारी ऐनी प्रजा भिखारी

जेनो राजा वेपारी ऐनी प्रजा भिखारी

– डॉ परमानन्द लाभ

हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी जहां से आते हैं,जिस राज्य से उनका पैतृक सरोकार है,उसी गुजरात के गुजराती भाषा में एक प्रसिद्ध कहावत है – ‘ जेनो राजा वेपारी ऐनी प्रजा भिखारी।’ इसका अर्थ स्पष्ट है कि जहां का राजा व्यापारी होता है, वहां की प्रजा भिखारी होती है।

शासन में बैठे लोग, शासन में भागीदारी के लिए आतुर लोग,सत्ता से संचालित प्रशासन के लोग यदि व्यावसायिक गतिविधि चलाएंगे, तो जनता के लिए सिवा भीख मांगने के और कोई विकल्प,चारा नहीं रहने वाला है।

हमारे प्रदेश बिहार में ही नहीं, सिर्फ भारत में ही नहीं,सारी दुनियां के स्तर पर प्रपंचियों का,सत्ता-लोलुपों का शासन चल रहा है। जनता इन प्रपंचियों के दुष्चक्र में पूरी तरह फंस गई है अथवा फंसी हुई है।

इन प्रपंचियों की एक जाति है, एक ही कुनबा है और एक हीं इनके ध्येय भी है। और वह ध्येय अथवा उद्देश्य क्या है ? शासन और सम्पत्ति पर अधिकार जमाना,जमाये रखना।इसीको इन्होंने अपना धर्म मान लिया है,फर्ज मान लिया है। राजनीति का मकसद मान लिया है। इनके शब्द-कोश से ‘सेवा’ शब्द विलुप्त हो गया है।

और जनता बंटी हुई है विभिन्न टुकड़ों में।जाति में,वर्ग में,सम्प्रदाय में,दल में, भाषा में, क्षेत्र आदि में।इन निराधार चक्रों में वह निरंतर घूम रही है।वह भी अनजान में नहीं, सबकुछ जान-बूझ कर भी वह इससे बाहर नहीं निकल पा रही है।इसका फायदा भी सत्तालोलुप हीं आखिर ले जाते हैं। इस जनता का मकसद क्या है? अपने जीवन की रक्षा हो जाय,भूख की ज्वाला किसी तरह मिट जाये, प्रतिष्ठा बची रहे,धर्म बचा रहे।

जो इन सत्ताधारियों के सुझाए मार्गों का अनुशरण-अनुकरण करेंगे, इनका कृपाकांक्षी बनेंगे। इनसे वे अपनी जय कराएंगे तथा बदले में वे इन्हें उनकी जय की लालसा को जीवित रखकर जीने का अधिकार देंगे,वरना जो इनका प्रतिकार करेगा, उसे विकलांग बनाकर विवशता की जिंदगी जीने को मजबूर कर देंगे। विस्तृत आकाश में विचरण करना जो चाहेगा, उसकी सीढ़ी नीचे से आहिस्ता से खिसका दी जायेगी अथवा आकाश में ही उसके वजूद को मिटा दिया जायेगा।

अब तो एक परिपार्टी ही चल गई है कि जो लोग इन सत्ताधारियों के स्वर पर स्वर मिलाकर थिरकेंगे, वाह-वाह सुनेंगे, वरना भाग्यवश इनकी द्वारा मुहय्या करायी गई मौत की सजा से बच भी गए, तो विकलांग अवश्य बना दिए जाएंगे। आतंकवादियों अथवा उग्रवादियों की सूची में जुड़ जाएंगे। फिर जेल की सलाखों में सड़ जाएंगे या फर्जी एनकाउंटर में मर जाएंगे।

सत्ताधारी कहने से, शासन कहने से हमारा अभिप्राय न तो सरकार से है,न हीं विपक्षियों से।ये सब-के-सब एक हीं सिक्के के पहलू हैं। चीत भी इनकी,पट भी इनकी। राजनीति इनकी व्यवसाय है। इनके गठबंधन का एक गिरोह भले संसद-विधानमंडल में है, लेकिन समाज के अन्य घटकों पर काबिज होकर भी ये शासन-सत्ता पर समान रूप से कुंडली मारकर बैठे हैं

मैं यह नहीं कहता कि इनमें ‘सेवाभाव ‘ के लोग एकदम नहीं हैं, लेकिन बड़ी दृढ़ता के साथ कहता हूं कि इनके बीच ‘कहीं होंगे’ ऐसे लोग, जो जनता को भगवान, मां कहकर ऐसा समझते होंगे।

जनता को तीन श्रेणियों में मुख्यरुप से रखा जा सकता है। पहले वर्ग की जनता सरल है, सहज है,निपट, अनाड़ी, अशिक्षित और जाहिल है। दुनियां के चकाचौंध से दूर, तीन-तेरह से बेखबर येन केन प्रकारेण अपना जीवन गुदस्त कर रहे हैं।इनका न कोई सपना है और नहीं इनके पास कोई अरमां है।

यहां तक कि ये अपने हित-अनहित से भी बेखबर हैं। पीटने वाले की जय कहने से भी ये गुरेज नहीं करते।प्राय: देखा जाता है कि इन पर कुठाराघात करने वाले भी इनकी भावना को भुनाकर लाभ लेने में सफल हो जाते हैं। प्रपंचियों के प्रपंच का सहज शिकार होने वाली यही अधिकतम संख्या ‘आम जनता’ की संज्ञा धारण करती है।
जनता के दूसरे वर्ग में आम जनता के बीच रहने वाले अथवा उन्हीं में से उभरे हुए ऐसे चालाक लोग होते हैं, जो पूछ , पद और पैसे पर बिके होते हैं या राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा ठगे गए होते हैं।ये इतने बेवकूफ अथवा काबिल लोग होते हैं,जो नेताओं के बहकाने पर या अपने तुच्छ फायदा के लिए भोली जनता की आंखों में धूल झोंकने से भी बाज़ नहीं आते।इनकी आंखों पर तिकड़म के चश्मे चढ़े रहते हैं। उचित-अनुचित का ज्ञान कम,दावा अधिक होता है।सत्ता में इनकी भागीदारी तो कम होती है, लेकिन उसके स्थापन में इनकी भूमिका अहम होती है।ये दिन को रात और रात को दिन कहने में अपनी सफलता मानते हैं।जिस आका के लिए वे काम करते हैं,कभी कभार उनसे कारा खाने में ही ऐसे लोग अपने को धन्य मानते हैं।
तीसरे वर्ग में ऐसे चन्द लोग हैं, जिन्हें आम जनता प्रिय होती है, राष्ट्र और मानवता की अहमियत जिनके जेहन में होता है। ऐसे लोग हंसवृत्ति के होते हैं। इन्हें नीर और क्षीर का ज्ञान है। लेकिन व्यवस्था का दोष है,समाज और राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोगों को न तो काकवृत्ति के लोग पसन्द करते हैं और न कोयलवृत्ति वाले लोग।ये स्वाभिमानी लोग न तो किसीकी चाटुकारिता पसंद करते हैं और न किसी को धोखा देने में गौरवान्वित होते हैं। परिणाम ऐसा है कि सत्ता की आंखों की किरकिरी बने ऐसे लोगों पर उनकी बन्दूक यदि गोली बरसाने में सक्षम नहीं होती है, तो समाज में उनके द्वारा स्थापित स्वार्थी खेमों का प्रहार सहना होता है, इधर अन्धकार में भटकती आम जनता की ताली पड़ती है।
परिणाम में सत्ता की जीत होती है। शासन की जीत, सरकार की जीत,तिकड़मियों की जीत होती है। और हार? मानवता हार जाती है,न्याय की पराजय होती है, जनता और राष्ट्र मूकदर्शक।
स्वाभाविक रुप से जीत और हार के बीच एक फासला बढ़ता है।न्याय मूक और अन्याय मुखर होती है।ज्ञानी भले चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन सोयी जनता करवटें बदलने को चाहती है। फिर, हलचल से भयभीत सत्ताधारियों में हरकम्प मच जाता है। दिल्ली चिचियाने लगती है। सुख-सुविधाभोगी तत्वें – अमेरिका,रुस, चीन,फ्रांस,इटली,इरान, तेहरान के चेहरे की आभा मन्द पर जाती है।ये सत्ता पर काबिज बहरुपिए शांति-शांति की रट लगाने लगते हैं।इनकी आपाधापी,दौर आरम्भ हो जाती है।इसके पीछे का कारण समझना होगा।ये बेईमान लोगों की एक जाति है,ये सब-के-सब एक ही बिरादरी के लोग हैं।हर नई परिस्थिति में अपनी सत्ता के स्थायित्व के लिए चौपर बिछाने जाते हैं। तरकीब निकालने जाते हैं। सारी दुनियां के ऐसे चालाक लोगों को मेरी खुली चुनौती है कि ये कहें कि क्या कभी वे आम जनता से मिलने गए हैं अथवा जाते हैं? नहीं।
काश ! प्रदेश,देश और दुनियां भर में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की अपराधी खोपड़ी में यह बात आती कि मानव-अधिकार की अवधारणा जीवन की बुनियादी आकांक्षा से जुड़ी हुई है और उन्हें मानव-मूल्यों के स्थापन,पल्लवन और पोषण करने में सहायक होनी चाहिए। लेकिन इससे दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।
जीने का अधिकार सबों को है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा का अधिकार सबको है। “इण्डिया” और “भारत” क्यों ? एक ही देश में “सरकारी ” और “गैर-सरकारी” व्यवस्था क्यों?
आम जनता की चिंता तीसरे दर्जे के नागरिक को है। यह चिंता जिस दिन आम जनता को हो जायेगी। उसके जेहन में जिस दिन बात आ जायेगी कि गरिमापूर्ण जीवन जीने का हक उसे भी है। भारत गुरुओं का देश है, गरिमा लौट जायेगी।
सत्ता पर जबतक प्रपंचियों का तिकड़मियों का,स्वार्थियों का कब्जा रहेगा,आम जनता के अधिकारों का अपहरण होता रहेगा ; समाज, राष्ट्र और संसार में द्वन्द्व और संघर्ष चलता रहेगा। तूफ़ान आता रहेगा।
प्राय: देखा जाता है कि सत्ता ऐसे संघर्षों को दिशा मोड़ने के लिए,शान्त करने के लिए विकास के नए-नए नायाब नारे ढूंढ़ते रहते हैं, लेकिन मैं स्थापित त्रुटिपूर्ण व्यवस्था से कहना चाहूंगा कि तुम्हारे ये खोखले नारे और अधिक दिन चलने वाले नहीं हैं। आपके विकास की यह अवधारणा अराजक, अमानवीय व स्वार्थ-केन्द्रित नहीं होनी चाहिए।अन्यथा वह समय दूर नहीं,जब तुम्हारे बहाने के विकल्पों की जड़ें सूख जायें और अतिवादी, आत्मघाती प्रवृतियां ताल ठोककर सामने आ जाये।सोचो किस नियम और क़ानून से तुम उन्हें संयत कर पाओगे।
आज सारी दुनियां कोरोना के दंश से त्रस्त है। सर्वत्र त्राहिमाम मचा है। मानव का जीवन संकट में है। सामाजिक प्राणी कहलाने वाला मानव घरों में अपनों से दूर बन्द है, और यही एकमात्र जीवन बचने-बचाने की उपाय भी है। लेकिन एक प्रश्न तो खड़ा होता हीं है कि समय की उंगली आधुनिक प्रपंची-आततायी सत्ता की ओर उठ रही है? इसके पीछे इनकी भूमिका संदिग्ध है।
यदि हम मात्र मनुष्य के लिए नहीं, अपितु पेड़-पौधे, वन्यजीवों एवं समस्त प्रकृति के प्रति अपने अन्दर में अहिंसा,दया, करुणा, उदारता,क्षमा, नम्रता, ईमानदारी, सहनशीलता,भ्रातृत्व आदि मानवीय गुणों को ईमानदारी से धारण कर लें, तो न कोई समाज में संघर्ष होगा,न प्रर्यावरण असंतुलन के कारण कोविड-१९ जैसा संकट उत्पन्न होगा।
अन्त में हम अपने संवेदनशील माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ध्यान सूबे के लाखों शिक्षकों की बदहाली की ओर आकृष्ट कराना चाहूंगा।
नियोजित शिक्षक महिनों से हड़ताल पर हैं। सरकार व्यवस्था के अधीन उनसे वार्ता कर उनका निराकरण करे।दु:ख की इस घड़ी में लाखों पढ़े-लिखे की उपेक्षा का विषय चिंतनीय है।
फिर, इकलौता प्र्रदेश बिहार में ‘वित्तरहित शिक्षा नीति’ की अमानवीय नीति वर्षों से वजूद में है। लाखों वित्तरहित शिक्षक-कर्मी अपने परिवारसहित घर में भूखे-प्यासे बन्द दवा के अभाव में दम तोड़ते जा रहे हैं, जबकि सरकारी घोषणा के अनुरूप ही उनके पांच-छ: वर्षों के अनुदान की लाखों की राशि बकाया है,न्याय और मानवता के आधार पर अविलंब मुहैय्या करा दी जाय। परिस्थिति और परिवेश में यह आपका धर्म,फर्ज, दायित्व व कर्त्तव्य बनता है।
प्रधानमंत्री की घोषणा – “जान है तो जहान है”, के मध्यनजर कोई जीवित रहकर हीं, समाज, राष्ट्र, मानवता,नियम, कानून के विषय में सोच सकता है।
सारत: यह कहा जा सकता है कि मानव को ईश्वर में पूर्ण भरोसा कर समाज,देश पर छाये संकट से उबरने का ईमानदारी पूर्वक प्रयास होना चाहिए। जनता और सरकार दोनों का कंधा मिला होना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर कोरोना से भी विशेष प्रभावी कोरोना यदि पैदा लेता है, तो लोग,यही तो कहेंगे – “जेनो राजा वेपारी ऐनी प्रजा भिखारी।”

— डॉ परमानन्द लाभ,
शिक्षाविद् एवं पत्रकार।

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