*बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को श्रद्धा सुमन-प्रभुराज नारायण राव।*

*बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को श्रद्धा सुमन-प्रभुराज नारायण राव।*

जेटी न्यूज- कार्यालय।

पश्चिमी चंपारण::- भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) बिहार राज्य सचिव मंडल के सदस्य प्रभुराज नारायण राव ने बताया कि बाबा साहब का जन्म मध्यप्रदेश के महू ग्राम में 14 अप्रैल मंगलवार 1891 ई.में हुआ था । बचपन की शिक्षा गांव में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिए बड़ोदरा के गायकवाड़ नरेश द्वारा प्रतिस्पर्धा फेस कर सकाॅलरशिप के सहारे अंग्रेजी में स्नाकोत्तर की पढ़ाई पूरा करने के लिए अमेरिका गए ।कुछ दिनों बाद लंदन स्कूल आफ इकनॉमिक्स में एम् ए की ।

लेकिन स्कोलार्शिप के शर्तों के अनुसार उन्हें अपना सेवा बड़ोदरा नरेश के यहां देना था । उच्च शिक्षा लेने के बाद वे बड़ोदरा पहुंचे । वहां अन्य कर्मियों के साथ रहने व काम करने लगे ।किसी कर्मी द्वारा बाबा साहब को शुद्र जाती बताकर उनसे दूर रहने और छात्रावास से निकालने का अभियान चला । उन्हें 24 घंटे में मकान ढूंढ़ कर चले जाने का आदेश हुआ । बाबा साहब को मकान नहीं मिलने पर उनका सारा सामान कमरे से निकाल कर बाहर कर दिया गया।

रात्री 8 बजे अपने सामानों को बाहर देख कुछ न करने की स्थिति में बाबा साहब बड़ोदरा नरेश के यहां फरियाद करने पहुंचे । द्वारपालों के सामने एक न चल पाने की स्थिति में स्वयं को आगे बढ़े । नरेश के सिपाहियों टकराहट की आवाज जब नरेश तक पहुंची तब नरेश गायकवाड़ बाहर आकर आने का कारण पूछे । बाबासाहेब की ब्यथा को सुन छात्रावास अधीक्षक को बुलाकर घटनाक्रम जानना चाहा ? जब उसने कहा कि एक शुद्र छात्रावास में नहीं रह सकता । यह सुनते ही बिना कोई जवाब दिए नरेश अन्दर चले गए ।

रात भर बाहर पड़े सामानों के साथ रोते बिलखते बाबा साहेब सुबह आक्रोश की ज्वाला में जलते हुए ,घर की ओर चल दिए । वहां उपेक्षित जातियों को गोलबंद कर शोषण करने वाली जातियों के विरूद्ध संघर्ष का आह्वान किया । उसके बाद वे महाराष्ट्र के कई गांवों का भ्रमर किया। वे अंग्रेजी हुकूमत से समानता की मांग की । यह संघर्ष लम्बे दिनों तक चलता रहा।

दूसरी ओर महात्मा गांधी के नेतृत्व में भी छुआ छूत के विरुद्ध आन्दोलन चलता रहा । कांग्रेस जन सामूहिक भोज का आयोजन कर शूद्रों के साथ भोजन करने का अभियान चलाया गया । लेकिन उसमें ईमानदारी का सर्बदा अभाव दिखा ।

बाबा साहेब को कभी भी महात्मा गांधी या कांग्रेस पर भरोसा नहीं हुआ । यहीं कारण था कि वो कांग्रेस के या नेहरु और पटेल जैसे नेताओं के नजदीक कभी नहीं गए । वे हिन्दू धर्म से अलग कर बौद्ध धर्म अपनाए ।

1947 में देश को आजादी मिलने के बाद महात्मा गांधी के दबाव से बाबा साहेब को प्रथम सरकार में विधि मंत्री बनाया गया । संविधान के निर्माण के लिए जो समिति बनाई गई उसके अध्यक्ष के रुप में बाबासाहेब को निर्वाचित किया गया ।

एक तो उस समय ही समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को पर्याप्त अधिकार नहीं मिला । जनता को जनवादी अधिकार भी पर्याप्त नहीं दिए गए । संविधान में रोजगार का अधिकार शामिल नहीं होने दिया गया । लेकिन सम्पत्ति का अधिकार अवश्य शामिल किया गया । जिसपर बाबासाहेब की सहमति नहीं थी ।

संविधान में जो जन हितकारी कानून हैं । उसमें शासक वर्ग द्वारा लगातार कटौती को जा रही है । आज के दिन हमें भारतीय संविधान एवं लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए होने वाले संघर्षों में शामिल होने की शपथ लेनी है।

 

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