नयी शिक्षा नीति पूर्णतः गरीब विरोधी अलोकतांत्रिक और शिक्षा को कॉरपोरेट घराने को सौंपने साजिश

नयी शिक्षा नीति पूर्णतः गरीब विरोधी अलोकतांत्रिक और शिक्षा को कॉरपोरेट घराने को सौंपने साजिश

पटना। एस एफ आई और डी वाई एफ आई ने नई शिक्षा नीति के विरोध में शिक्षक, छात्र, नौजवान, बुद्धिजीवियों को सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध दर्ज करें।
एस एफ आई के राज्य महासचिव मुकुल राज, राज्य अध्यक्ष शैलेन्द्र यादव और डी वाई एफ आई के राज्य अध्यक्ष मनोज कुमार चंद्रवंशी, राज्य महासचिव शशी भूषण प्रसाद ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि शिक्षा का विषय राज्य सरकार के अधीन था जिसे आपातकाल के दौरान समवर्ती सूची में डाला गया और अब मोदी सरकार ने इसे ‘नई शिक्षा नीति 2020’ के द्वारा पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन बना दिया है। नई शिक्षा नीति भारत के संघीय ढाँचे पर हमला है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को खत्म कर हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी के जरिए वित्तीय सहायता का एक मात्र अर्थ है अनुदान के बदले कर्ज। अनुदान लौटाया नहीं जाता, परंतु कर्ज सूद समेत लौटाना पड़ता है। इसका अर्थ है छात्रों की फीस में अभूतपूर्व वृद्धि होगी।राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन का मतलब है शिक्षा का केन्द्रीयकरण। इसमें शिक्षाविदों की संख्या नाममात्र है। कुलमिलाकर राजनेता एवं नौकरशाह कॉरपोरेट घरानों के साथ मिलकर शिक्षा की दिशा तय करेंगे, शिक्षाविद नहीं।

देश के सभी कॉलेज, विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थानों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला है नई शिक्षा नीति। निजी कंपनियों के तर्ज पर बोर्ड ऑफ गवर्नर का प्रावधान किया गया है। सभी संस्थान स्वायत्त होंगे। अर्थात इनकी वित्तीय एवं प्रशासनिक एवं फीस से लेकर वेतन और अकादमिक फैसले सब यही करेंगे।

स्वाधीनता के बाद शिक्षा का उद्देश्य था योग्य एवं श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण करना। मोदी सरकार ने निजी हाथों में संस्थानों को सौंपकर शिक्षा की नीति को मुनाफा कमाने का धंधा बना दिया। अब छात्रों की फीस में बेतहाशा वृद्धि होगी। शिक्षा के निजीकरण का सीधा असर गरीब, आदिवासी, दलित, महिलाओं एवं हासिये पर स्थित समाज पर होगा। नई शिक्षा नीति में इसकी कोई चिंता नहीं दिखती। इसमें अपंग व शिक्षा से वंचित तबकों जैसे दलित छात्रों के लिए जो आरक्षण का प्रावधान था उसे भी खत्म करने की साज़िश है।मल्टीपल एग्जिट के माध्यम से शिक्षा का व्यावसायीकरण होगा, जितना छात्रों के पास पैसा होगा उतना ही शिक्षा ग्रहण कर सकेगा। सरकार पुनः चार साल की स्नातक शिक्षा छात्रों पर थोपने जा रही है, जिसका विरोध विगत वर्ष पुरे देश में हुआ था और दबाव में सरकार ने फैसला वापस लिया था। प्राथमिक शिक्षा में भी सरकार ने उलटफेर किया है।

इसमें आंगनबाड़ी केंद्रों व आंगनबाड़ी कर्मियों को खत्म करने की योजना है। ग्रेडेड ऑटोनोमी का मतलब है ट्रेड यूनियन पर हमला। शिक्षकों एवं छात्रों की जनतांत्रिक एवं सामुहिक ताकत को नई शिक्षा नीति में पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है,शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए वेतन एवं सेवा शर्तों का ध्यान यूजीसी के द्वारा रखा जाता था। अब उसे पूरी तरह से मुनाफाखोरी वाले बाजार के हवाले छोड़ दिया गया है। इसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ेगा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए स्थायी शिक्षकों की अनिवार्यता होती है। नई शिक्षा नीति का पूरा ढाँचा इसके खिलाफ जाता है। शिक्षण संस्थानों में अब टर्म पोस्ट का ही प्रावधान होगा। नई शिक्षा नीति सभी शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता की बात करता है। इसका मतलब है सरकार पर वित्तीय निर्भरता का अंत एवं बोर्ड ऑफ गवर्नर्स पर वित्तीय एवं प्रशासनिक निर्भरता। वे पूँजी निवेश मुनाफा कमाने के लिए ही करेंगे। यानी शिक्षकों के आय में कटौती और छात्र की फीस में बढ़ोत्तरी!

उक्त संगठन स्थापना काल से ही समान शिक्षा प्रणाली लागू करने,केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा,बजट का 10 वां हिस्सा शिक्षा पर खर्च करने की मांग करती रही है।नयी शिक्षा नीति पूर्णतः अलोकतांत्रिक है सरकार इसे चोर दरवाजे से देश के छात्रों पर थोपना चाहती है।हम मांग करते हैं कि सरकार अविलंब इस फैसले को वापस ले। और सदन में बहस के बाद ही इसे लागू किया जाए। उक्त संगठन ने सोशल मीडिया के माध्यम छात्र, युवा, शिक्षक, बुद्धिजीवियों से इसका विरोध करने का आह्वान किया।

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