बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में विरासत बचाने के लिए ताकत झोंकेंगे चार पूर्व सीएम पुत्र

 

जेटीन्यूज़

*पटना* : बिहार विधानसभा चुनाव-2020 में सियासी विरासत बचाने के लिए राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के वारिस अपने पूरी ताकत से लड़ेंगे। उत्तर बिहार के लोग इस दिलचस्प जंग में निर्णायक भूमिका निभायेंगे। इस बार के चुनाव में सबकी नजर पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद एवं राबड़ी देवी के बेटे पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव, पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के पुत्र सह पूर्व मंत्री चंद्रिका राय और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र सह पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा के निर्वाचन क्षेत्रों पर होगी।

लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के दोनों बेटों के चुनावी क्षेत्रों में एनडीए को चक्रब्यूह रचने होंगे पिछली बार दोनों जदयू की मदद से बिहार विधानसभा पहुंचे थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू इस बार भाजपा के साथ एनडीए में है। दूसरी ओर पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव अपने ससुर चंद्रिका राय के विरुद्ध अपने भाई तेजस्वी यादव के साथ सारण की परसा सीट पर पूरी ताकत झोंकेंगे। विरासत की लड़ाई रोमांचक होगी और इसके परिणाम का बिहार की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

 

महुआ में महासमर

 

तेज प्रताप यादव ने पिछली बार महुआ सीट पर हम उम्मीदवार रवींद्र राय को शिकस्त दी थी। रवींद्र राय विधानसभा चुनाव 2010 में महुआ सीट पर राजद विधायक निर्वाचित हुए थे। उनका टिकट काटकर तेज प्रताप यादव को टिकट दिया गया। महुआ सीट पर चंद्रिका राय की भी पैनी नजर रहेगी। अटकलबाजी यह भी चल रही है कि महुआ में तेज प्रताप के खिलाफ ऐश्वर्या राय उम्मीदवार हो सकती हैं। दूसरी अटकलबाजी दारोगा प्रसाद राय के दूसरे बेटे की पुत्री डॉ. करिश्मा राय को परसा सीट पर राजद उम्मीदवार बनाए जाने की है। हालांकि तेजप्रताप के सीट बदलने की भी चर्चा है।

 

लोकसभा के उप चुनाव में उतर सकते हैं केदार पाण्डेय के पौत्र

 

पूर्व मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय के पौत्र शाश्वत केदार एक बार फिर वाल्मीकिनगर संसदीय उप चुनाव में टिकट के दावेदार हैं। गत चुनाव में उन्हें महागठबंधन से जदयू के वैद्यनाथ महतो ने शिकस्त दी थी। वैद्यनाथ महतो के निधन के बाद वहां उप चुनाव होने हैं ।

 

बेटी-दामाद और ससुर का महासंग्राम

 

पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय कद्दावर कांग्रेस राजनेता थे। दारोगा प्रसाद राय सारण की परसा सीट पर 1951 से लगातार सात बार (1977 छोड़कर) जीते। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी प्रभावती देवी कांग्रेस टिकट पर उप चुनाव में जीतीं। बचपन से जवानी और फिर विधायक बनने तक चंद्रिका राय पटना के दारोगा प्रसाद राय पथ में नौ नंबर बंगला में ही रहे। वे पहले कांग्रेस और फिर जदयू-राजद के विधायक बनते रहे। 2005 और 2010 में उनकी हार हुई,तो बंगला खाली करना पड़ा। वर्ष 2015 में फिर जीत गए और मंत्री बन गए। अब चंद्रिका राय राजद छोड़कर जदयू में आ चुके हैं और उसी की टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। परसा में दारोगा बाबू की विरासत बचाने-मिटाने के लिए तेजस्वी-चंद्रिका-तेज प्रताप में घमासान होगा।

 

राघोपुर में भी होंगे घमासान

 

वैशाली की राघोपुर सीट पर सूबे के सबसे बड़े सियासी घमासान के आसार हैं। इस सीट पर विधानसभा चुनाव 2015 में महागठबंधन के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने भाजपा के सतीश कुमार को शिकस्त दी थी। ये वही सतीश कुमार हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनाव 2010 में राघोपुर सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को शिकस्त देकर सनसनी फैला दी थी। उस चुनाव में राबड़ी सोनपुर सीट पर भी हार गई थीं। तेजस्वी अगर यहीं से लड़े तो उनके खिलाफ राघोपुर में जदयू-भाजपा का संयुक्तरुप से चक्रब्यूह दिखेगा।

 

डॉ.मिश्रा के निधन के बाद पहला चुनाव

पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा की सूबे की राजनीति में कई दशकों तक तूती बोलती थी। उन्होंने बेटे नीतीश मिश्रा को 2005 में झंझारपुर से जदयू का टिकट दिलाया। नीतीश मिश्रा जीत गए और नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री बने। बाद में डॉ. जगन्नाथ मिश्र का नीतीश कुमार से सियासी संबंध टूट गया। पिछले चुनाव में नीतीश मिश्रा जीतन राम मांझी की पार्टी हम में थे, परन्तु झंझारपुर में उन्हें अंतत: भाजपा का सिंबल मिला। वे महज 834 मतों से राजद के गुलाब यादव से हार गए। नीतीश मिश्रा एक बार फिर भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार हैं, परन्तु यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह सीट एनडीए के किस घटक के हिस्से में जाती है।

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