फैमिली प्लानिंग के इस प्लान के बारे में जानते हैं आप?

महिलाओं की स्थिति में यह बड़ा बदलाव वास्तव में आधुनिक गर्भनिरोधक गोलियों की आसान उपलब्धता की वजह से आया है

पिछले कुछ दशक में दुनिया भर में जो महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं उनमें से महिलाओं के हिसाब से एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि वे यह चुन सकती हैं कि उन्हें कब और कैसे बच्चे पैदा करना है. यह वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण फैसला है और महिलाओं को यह चुनने की जो आजादी मिली है, उसे भी अब तक अंडरप्ले भी किया गया है.

महिलाओं की स्थिति में यह बड़ा बदलाव वास्तव में आधुनिक गर्भनिरोधक गोलियों की आसान उपलब्धता की वजह से आया है. दुनिया भर के देशों में परिवार नियोजन के प्रति महिलाओं में बढ़ती जागरूकता की वजह से भी यह बदलाव आया है.

इस तरह के विकास के कई लाभ हैं. मूल रूप से यह मानवाधिकार का मसला है. इस वजह से महिलाओं को नई भूमिका और नई गतिविधियां अपनाने में मदद मिली है, जो वे अपने घर से बाहर कर सकती हैं. इसकी मदद से महिलाओं को गर्भधारण की योजना और दो बच्चों के बीच जन्म का अंतर मेंटेन करने में मदद मिली है.

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इसकी वजह से दुनिया भर में कुपोषण के मामले कम हो रहे हैं. साथ ही जच्चे-बच्चे की मौत की घटनाओं पर भी लगाम लगाने में मदद मिली है. कई स्टडी यह बताती हैं कि फैमिली प्लानिंग और लंबी अवधि में आर्थिक स्थिति के बीच मजबूत संबंध है.

लंबी अवधि की आर्थिक स्थितियों में शैक्षणिक योग्यता, आमदनी बढ़ाना और लेबर सप्लाई के मामले में सुधार आदि शामिल हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फर्टिलिटी रेट में कमी आई है और पापुलेशन ग्रोथ धीमा हुआ है.

भारत ने भी इस मामले में काफी तरक्की की है. भारत के जनगणना के आंकड़ों से इसके सबूत भी देखे जा सकते हैं. साल 1971 से 81 के बीच भारत में पापुलेशन ग्रोथ रेट 24.7% थी जो 2001-11 के बीच 17.7% रही है. फर्टिलिटी रेट के अनुमान भी पापुलेशन ग्रोथ की असल तस्वीर बयां करते हैं.

पर्यवेक्षक बनाये जाने पर विधायक छत्रपति यादव को दरभंगा कांग्रेस ने दिया  बधाई - jhanjhattimesसैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की सांख्यिकी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत के टोटल फर्टिलिटी रेट में कमी आई है. हाल में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़े सामने आए हैं. यह 22 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए जारी किया गया है, जिसमें बताया गया है कि 19 राज्यों में टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 फीसदी से कम रहा है.

दिलचस्प है कि 15 से 49 साल की महिलाओं में गर्भनिरोधक गोलियों की जरूरत कम हुई है. इसमें सिर्फ दो राज्य ऐसे हैं, जिनमें आंध्र प्रदेश में इसकी मांग स्थिर बनी हुई है जबकि मेघालय में इसकी मांग बढ़ी है. मणिपुर के अलावा बाकी सभी राज्यों में गर्भ निरोधक गोलियों की वजह से होने वाले साइड इफेक्ट के बारे में सूचना प्राप्त करने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है.

 

(सौजन्यः इकोनोमिक टाईम्स)

संपादिकृतः ठाकुर वरूण कुमार 

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