सबसे ठंडे तापमान का रिकॉर्ड, पारा पहुंचा माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस पर

सबसे ठंडे तापमान का रिकॉर्ड, पारा पहुंचा माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस पर

अंटार्कटिका में वोस्तोक नाम का स्थान है, जो दुनिया की सबसे ठंडी जगह मानी जाती है. यहां पर सबसे ज्यादा ठंडी पड़ती है. तापमान माइनस 89 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने सबसे ठंडे तापमान का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वैज्ञानिकों ने पारा को माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा दिया है. इस काम को जमीन से 393 फीट नीचे एक टावर में पूरा किया गया है. ताकि उसका असर ऊपर लैब में मौजूद वैज्ञानिकों और वस्तुओं पर न पड़े.

वोस्तोक तो धरती पर है. लेकिन ब्रह्मांड में इंसानों की जानकारी में सबसे ठंडा इलाका बूमरैंग नेबुला (Boomerang Nebula) है. यह सेंटॉरस नक्षत्र में है, जो धरती से करीब 5000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है. यहां का औसत तापमान माइनस 272 डिग्री सेल्सियस यानी 1 केल्विन रहता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने अब इससे भी ठंडा तापमान धरती पर बना लिया है.

जर्मनी के वैज्ञानिक बोस-आइंस्टीन कॉन्डेसेट (BEC) क्वांटम प्रॉपर्टी की जांच कर रहे थे. बोस-आइंस्टीन कॉन्डेसेट को पदार्थ का पांचवां स्टेट भी कहते हैं. यह सिर्फ अत्यधिक सर्द स्थिति में रहने वाला गैसीय पदार्थ है. BEC फेज में कोई भी वस्तु अपने आपको एक बड़े एटम के रूप में प्रस्तुत करने लगती है. यह इतनी ज्यादा सर्द स्थिति होती है कि इसमें हड्डी भी जम जाए.

तापमान किसी भी छोटे कण के कंपन को मापने का तरीका है. जितना ज्यादा कंपन होगा, उतना ही ज्यादा समग्र तापमान होगा. लेकिन जैसे ही तापमान कम होता जाता है, कंपन कम होता जाता है. माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस जैसे तापमान को नापने के लिए वैज्ञानिकों ने केल्विन स्केल बनाया है. जहां पर जीरो केल्विन का मतलब है संपूर्ण जीरो.

संपूर्ण जीरो पर मॉलिक्यूलर स्तर पर गति खत्म हो जाती है. जैसे ही तापमान जीरो के करीब पहुंचता है कई विचित्र चीजें होने लगती है. जैसे- प्रकाश तरल पदार्थ के रूप में बदलने लगता है, जिसे आप कंटेनर में बंद कर सकते हैं. सुपरकूल्ड हीलियम कम तापमान में घर्षण छोड़ देता है. और तो और नासा ने कोल्ड एटम लैब में यह भी देखा गया है कि एक साथ दो एटम का जन्म होने लगता है.

इस बार जो रिकॉर्डतोड़ परीक्षण जर्मनी के वैज्ञानिकों ने किया है, वो हैरतअंगेज है. वैज्ञानिकों ने रुबिडियम (Rubidium) गैस के एक लाख एटॉमिक कणों को एक वैक्यूम चैंबर में बंद किया, जिसमें चुंबकीय बहाव था. इसके बाद उन्हों चेंबर को ठंडा करना शुरु किया. यह संपूर्ण जीरो की अवस्था थी. यहीं पर तापमान माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा था.

इन्होंने यह परीक्षण करने के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी के ब्रेमेन ड्रॉप टावर का उपयोग किया. यह टावर जर्मनी में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रेमेन के अंदर मौजूद माइक्रोग्रैविटी रिसर्च सेंटर है. जैसे ही रुबिडियम से भरे वैक्यूम चैंबर को इस टावर में डाला गया. वह नीचे जाने लगा, इस दौरान वैज्ञानिकों ने चुंबकीय क्षेत्र को ऑन-ऑफ करने की प्रक्रिया जारी रखी. इससे बोस-आइंस्टीन कॉन्डेसेट गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो गया. इससे रुबिडियम के एटॉमिक कणों की गति कम होती चली गई.

इस मौके पर बोस-आइंस्टीन कॉन्डेसेट (BEC) दो सेकेंड के लिए 38 पिकोकेल्विन की स्थिति में था. यानी केल्विन का 38 ट्रिलियंथ हिस्सा. यानी 3.80 लाख करोडवां हिस्सा. यह संपूर्ण माइनस का रिकॉर्ड था. यह स्टडी हाल ही में फिजिक्स रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित हुई है. इसके पहले केल्विन का 3.60 करोड़वें हिस्से तक पहुंचा गया था. जिसे कोलोराडो स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी ने हासिल किया था.

वैज्ञानिकों का दावा है कि माइनस 273.15 डिग्री सेल्सियस पर कोई भी वस्तु अधिकतम 17 सेकेंड तक सर्वाइव कर सकती है. इसके बाद वह भारहीनता की स्थिति में आ जाएगी. इस तापमान का फायदा ये होगा कि भविष्य में एक दिन वैज्ञानिक क्वांटम कंप्यूटर्स बनाने की शुरुआत कर देंगे.

सभार:- आज तक न्यूज

 

 

 

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