विश्वविद्यालय उर्दू विभाग के अधीन संचालित मौलाना अब्दुल कलाम आजाद चेयर के तत्वावधान में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार प्रारंभ

विश्वविद्यालय उर्दू विभाग के अधीन संचालित मौलाना अब्दुल कलाम आजाद चेयर के तत्वावधान में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार प्रारंभ
जे टी न्यूज़


दरभंगा : मौलाना आजाद की जयंती के अवसर पर ‘मौलाना आजाद विजनस एंड इंडियन इथिकल डायवर्सिटी’ विषयक सेमिनार में अनेक विद्वानों ने रखे विचार समाज के पूर्ण उत्थान के लिए बौद्धिक रिक्तियों का भरा जाना आवश्यक है। मौलाना आजाद एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है, जिनकी बौद्धिकता ने भारतीय समाज को नया आयाम दिया। उनमें सभी आदर्श व्यक्तित्व विद्यमान थे। उन्होंने सबके सुख एवं कल्याण की कामना किया था। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने मौलाना आजाद की जयंती के अवसर पर मौलाना अब्दुल कलाम आजाद चेयर, स्नातकोत्तर उर्दू विभाग के तत्वावधान में “मौलाना आजाद विजनस एण्ड इंडियन इथिकल डायवर्सिटी” विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में कही।

कुलपति ने कहा कि विपरीत परिस्थिति में भी हमें सकारात्मक रहना चाहिए। हमारी जिंदगी का उद्देश्य समाज को रोशनी प्रदान करना हो। उन्होंने उर्दू विभाग को सम्मान देने के लिए धन्यवाद देते हुए सेमिनार आयोजन हेतु विभाग को बधाई दी और कहा कि मौलाना आजाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने कहा कि मौलाना आजाद हिन्दुस्तान के एकमात्र ऐसे इंसान हैं, जिनपर मिसाफ- ए- मदीना के सबक का गहरा प्रभाव दिखाई देता है और हिन्दुस्तान में जब वे दाखिल हुए तो यहां के सनातनी दर्शन ने उन्हें काफी प्रभावित किया जो उनके विचारों में परिलक्षित होता दिखाई देता है। हिन्दू- मुस्लिम एकता के संदर्भ में उनका दिया गया वक्तव्य अनुकरणीय है। कुलसचिव ने कहा कि मैं 30 वर्षों से मौलाना आजाद को पढ़ता और उनपर लिखता रहा हूं। वे हिन्दुस्तान की एक मिशाली इंसान थे। वे राजाराम मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद जैसे व्यक्तित्व से युक्त थे। उनके बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है तथा समाज को मौलाना आजाद के व्यक्तित्व को नए नजरिए से पढ़े- पढ़ाये जाने चाहिए।
जेएनयू, नई दिल्ली के उर्दू विभाग के प्रोफेसर ख्वाजा मोहम्मद इकरामुद्दीन ने कहा कि मौलाना आजाद की तालीम से हम हिन्दुस्तान में धर्मनिरपेक्षता और सद्भावना को समझ सकते हैं। उन्होंने हिन्दू- मुस्लिम एकता को अपनी विचारों से नया आयाम दिया। मौलाना आजाद का योगदान सामाजिक समरसता बनाने में उल्लेखनीय रहा है। बीएचयू, वाराणसी के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आफताब आफाकी ने कौमी एकजुटता पर बल देते हुए कहा कि धर्म कौमीयत के लिए दीवार खड़ा नहीं करता है। वक्त बदलने के साथ ही मौलाना आजाद की महत्ता बढ़ती रही है। गंगा- यमुना संस्कृति से ही भारत की खूबसूरती और मजबूती है। मौलाना आजाद देश विभाजन के बिलकुल खिलाफ थे। उन्होंने कौमी एकता व इंसानियत को बड़ा तवज्जो दिया था। प्रोफेसर अली जोहर ने कहा कि मौलाना आजाद स्वतंत्रता सेनानी तथा राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने हिन्दू- मुस्लिम एकता बनाए रखने हेतु पूरी जिंदगी संघर्ष किया। उन्हें पढ़ने से पता चलता है कि वे कितने दूरदर्शी और महान व्यक्ति थे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए मानविकी संकाय के डीन प्रोफेसर ए के बचन ने कहा कि मौलाना आजाद महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन के समर्थक तथा हिन्दू- मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। अतिथियों का स्वागत करते हुए उर्दू विभागाध्यक्ष सह मौलाना अबुल कलाम आजाद चेयर के निदेशक प्रो आफताब अशरफ ने कहा कि मौलाना आजाद जैसी बहुआयामी व्यक्तित्व पर उक्त आयोजन करके मैं अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।

उन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालय से आए हुए व्यक्तियों का परिचय कराने के साथ ही उर्दू विभाग के द्वारा किए गए कार्यों का विवरण पेश किया और कहा कि उर्दू भाषा और साहित्य के पूर्ण विकास और उत्थान के लिए हमलोग सदैव प्रयासरत हैं।
कार्यक्रम में विभिन्न विभाग के अध्यक्षों के साथ ही प्रो अशोक कुमार मेहता, प्रो दमन झा, डा मोहम्मद जिया हैदर, प्रो इमाम आजम, डा जी एम अंसारी, प्रो मुनेश्वर यादव, डा आर एन चौरसिया, प्रो पी सी मिश्रा, डा महेश प्रसाद सिन्हा, डा सहर अफरोज सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं उर्दू प्रेमी उपस्थित थे। ऑफलाइन एवं ऑनलाइन दोनों मोड में संचालित कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत चादर एवं बुके के द्वारा किया गया। वहीं सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा…. का सामूहिक गायन उर्दू छात्राओं द्वारा किया गया, जबकि उर्दू है मेरा नाम…. नज्म का गायन भी हुआ। विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। तत्पश्चात तकनीकी सत्रों का भी संचालन किया गया।

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