विरह गीत
विरह गीत
जे टी न्यूज
आया है आषाढ़ पिया जी,आ जाओ अब पास।
विरह अगिन में झुलस रही हूँ,विगत हृदय उल्लास।।
प्रथम नखत वर्षा का आर्द्रा,लाया है सौगात।
ठहर गई पुरवइया लाई,धरती पर बरसात।।
लेकिन बिन प्रियतम के मैं तो,छोड़ रही निःश्वास।
विरह अगिन में झुलस रही हूँ,विगत हृदय उल्लास।।
गर्मी चढ़ी गगन तक भू से,जीवन कठिन-कराल।
टप-टप चुए पसीना तन से,प्यासा उर का ताल।।
बाहर-भीतर रहना मुश्किल,असफल सभी प्रयास।
विरह अगिन में झुलस रही हूँ,विगत हृदय उल्लास।।
कहीं-कहीं चातक की बोली,सुनकर कोयल कूक।
मेरे प्रियतम चित में आते,लेकिन हिय दो टूक।।
पूजा की आँखें पथराई,होता चित्त उदास।
विरह अगिन में झुलस रही हूँ,विगत हृदय उल्लास।।
कु. पूजा दुबे