जन्म दिन पर गांधी की कर्म भूमि चम्पारण से आलेख- प्रभुराज नारायण राव

जन्म दिन पर गांधी की कर्म भूमि चम्पारण से
आलेख- प्रभुराज नारायण राव

जे टी न्यूज

आखिर 10 अप्रैल 1917 को बिहार की राजधानी पटना में मोहनदास करमचंद गांधी को आना ही पड़ा। उनको बिहार में लाने का काम चंपारण के किसान आंदोलन के नेतृत्वकारी किसानों में से एक राजकुमार शुक्ल ने किया था। शुक्ल जी का मुख्य उद्देश्य गांधी को चंपारण लाना था । क्योंकि यहां अंग्रेजों के आतंक से किसान समुदाय आक्रोशित हो चुका था। नाना प्रकार के दमन कोठी के मैनेजर द्वारा किया जा रहा था । 27 किस्म के टैक्स लगाकर किसानों से जबरन टैक्स वसूली का काम किया जा रहा था । नील की खेती एक बीघे में तीन कट्ठा यानी तिनकाठिया करने को किसानों के लिए बाध्यता थी । इसके खिलाफ चंपारण के किसान जाग चुके थे । अंग्रेजी सल्तनत के दमन का मुकाबला कर रहे थे। बार-बार ढाए जा रहे जुल्म का सामना करते हुए अपने अधिकारों की रक्षा की लड़ाई भी कर रहे थे । 1907 में साठी के शेख गुलाब के नेतृत्व में दसियों हजार किसानो की भारी गोलबंदी अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ नजर आई थी। शीतल राय , कपिलदेव राय , पीर मोहम्मद मुनीश , बाबू खेन्हर राय जैसे किसान अंग्रेजी दमन के खिलाफ लड़ाई को छेड़ दिए थे। अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे बर्बर जुल्म और यातनाएं भी चंपारण के किसान झेलते हुए संघर्ष के मैदान में थे ।


यही वह दौर था जब 22 अप्रैल 1917 को शाम की 5 बजे वाली रेलगाड़ी से मोहनदास करमचंद गांधी मोतिहारी से बेतिया आए । रेलवे स्टेशन पर भीड़ इतनी की रेल को स्टेशन से पहले ही रोक देना पड़ा था । वहां से हजारीमल धर्मशाला बेतिया तक गांधी जी को ले जाने के लिए बाबू खेन्हर राय का टमटम सजा कर खड़ा था । गांधी जी को टमटम पर चढ़ने के समय भीड़ इतनी थी कि घोड़ा हरक जाता था। लेकिन किसी तरीके से भीड़ के बीच में टमटम से गांधी जी पोस्ट ऑफिस के सामने मुनाब खान के पेट्रोल पंप जो उस समय सरसों कटा हुआ एक खाली खेत था। जो द्वारिका साह तेली का था । उसी में गांधी जी को महती सभा करनी पड़ी थी । बाद में हजारीमल के छोटे भाई सूरजमल के दृढ़ फैसले के बाद हजारी धर्मशाला पहुंचने के बाद सूरजमल ने उनका स्वागत किया ।
गांधी जी दूसरे दिन बेतिया एसडीओ डब्ल्यू एच लिविस तथा बेतिया राज मैनेजर जे टी विट्टी से मुलाकात की । इसकी सूचना पूर्व में ही चम्पारण के कलक्टर हिकोक को गांधी जी ने दे दी थी। जिसके माध्यम से दोनो को सूचना थी।


तीसरे दिन 24 अप्रैल को गांधी जी बेतिया से बाबू खेन्हर राय के यहां लौकरिया हैं के लिए प्रस्थान किये । उनके साथ बृज किशोर बाबू भी थे । दूसरे दिन 25 अप्रैल को डॉ राजेंद्र बाबू तथा कृपलानी जी भी लौकरिया पहुंच गए । वहां गांधी जी ने बैरिया फैक्ट्री के मैनेजर मिस्टर गेल से मुलाकात कर किसानों के द्वारा मैनेजर के खिलाफ जिला कलेक्टर को दिए गए आवेदन के संदर्भ में बातें की । गांधी ने जाते जाते उनके खिलाफ कलेक्टर से शिकायत करने की भी बात कही। गांधीजी को अपार जन समर्थन मिलते देख अंग्रेजी हुकूमत सकते में आ गई थी और किसानो की समस्याओं के समाधान निकालना ही उनके लिए एकमात्र रास्ता नजर आ रहा था । यह सुझाव बिहार के गवर्नर सर एडवर्ड गेट में कलेक्टर हिकाक को दे रखा था।
इसी रोशनी में जिला कलेक्टर ने एक एग्रेरियन कमिटी का गठन किया। जिसके 11 सदस्यों में से एक गांधी जी भी थे । चंपारण के किसान आंदोलन की लपटे न केवल बिहार तक , बल्कि देश और विदेश तक लहकने लगा । अखबारों ने चंपारण किसान आंदोलन को अपना मुख्य आकर्षण का केंद्र बनाया और *चंपारण किसान आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष को न केवल दिशा दिया । बल्कि देश को एक सर्वमान्य नेता भी दिया । जिसको चंपारण ने महात्मा के नाम से नवाजा और वह शख्सियत दक्षिण अफ्रीका से संघर्ष करके लौटने वाला अपरिचित व्यक्तित्व महात्मा के रूप में ख्याति प्राप्त से हो गया । अब वह मोहनदास करमचंद गांधी नहीं रहा । बल्कि महात्मा गांधी के नाम से जाना गया*


आज उनके इस जन्मदिन पर गांधी और चंपारण के अभिन्न रिश्ते , उनकी जन्म भूमि से ज्यादा उनके कर्मों के इतिहास को पूरी दुनिया तक फैलने वाला और देश को आजादी दिलाने में सूत्रधार बनने वाला चंपारण महात्मा गांधी को शत-शत नमन करता है।
साथ ही यह चंपारण आक्रोश व्यक्त करता है कि गांधी जी के नेतृत्व में देश को आजादी मिली। देश के गद्दारों ने मात्र 5 महीने बाद 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या कर दी । आज वहीं विचारधारा देश पर शासक बनकर बैठा हुआ है । आज के दिन हमें संकल्प लेने को मजबूर करता है कि महात्मा गांधी के सपनों को साकार बनाने के लिए एक और आंदोलन की तान चंपारण से छेड़ा जाए। जो गांधी के देश को पुनः स्थापित कर सके ।

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