जेल में बंद नरगिस को शांति के लिए मिला नोबेल दुनिया भर की महिलाओं के लिए बनी आदर्श

जेल में बंद नरगिस को शांति के लिए मिला नोबेल

दुनिया भर की महिलाओं के लिए बनी आदर्श

लोकतंत्र और आजादी की आवाज बुलंद करने पर 31 साल की जेल और 154 कोड़े की मिली सजा – हेमलता म्हस्के

जे टी न्यूज, मुंबई: नॉर्वे नोबेल पुरस्कार समिति ने इस साल शांति के लिए एक उस ईरानी महिला नरगिस मोहम्मदी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की है जो अपने देश में महिलाओं के हक के लिए निरंतर लड़ाई लड़ रही है। अब जब नरगिस मोहम्मदी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है तब खुशियां मनाने के लिए वह खुले आसमान के नीचे नहीं हैं बल्कि जेल में बंद है। जेल में वे 12 सालों से बंद है । वह तेरह बार गिरफ्तार हुई। उन्हें 31 साल की जेल और 154 कोड़े मारने की भी सजा सुनाई जा चुकी हैं।
आठ साल हो गए वे अपने बच्चों से मिल नहीं पाई हैं।
नरगिस दुनिया भर की संघर्षशील और अपने हक में आंदोलनरत महिलाओं के लिए आदर्श बन गई है। नरगिस को नोबेल पुरुस्कार मिलने से विभिन्न मुल्कों की उन महिलाओं को जरूर प्रेरणा मिलेगी जो घर परिवार में या सत्ता द्वारा प्रताड़ित होती हुई चुपचाप यातनाएं सहती रहती हैं और प्रतिकार नही कर पाती हैं।


ओस्लो में पुरस्कार की घोषणा करते हुए नॉर्वे नोबेल समिति की अध्यक्ष बेरित रीस एंडरसन ने कहा है कि यह पुरस्कार ईरान की विवादमुक्त नेता नरगिस मोहम्मदी को मान्यता देने के लिए दिया गया है। उन्होंने ईरान की सरकार से अपील की है कि वह नरगिस को जेल से रिहा कर दे ताकि वह इस साल 10 दिसंबर को पुरस्कार समारोह में शामिल हो सके। नरगिस शुरू से अखबारों के लिए लिखती थी। 1990 से ही नरगिस महिलाओं के लिए आवाज उठा रही है। 2003 में उन्होंने तेहरान के डिफेंडर्स आफ हुमन राइट सेंटर से काम शुरू किया नरगिस को जेल में बंद कार्यकर्ताओं की मदद करने के आरोप में पहली बार 20 11 में जेल हुई थी। नरगिस कहती हैं कि मुझे जितनी यातना मिलती है मैं उतनी ही मजबूत होती जा रही हूं। अपने जेल जीवन का जिक्र करते हुए नरगिस कहती हैं कि मैं रोज खिड़की के सामने बैठी रहती हूं हरियाली देखती हूं और आजाद ईरान का सपना देखती हूं। जितना ज्यादा वह मुझे प्रताड़ित करते हैं मेरी प्रिय चीजों को मुझसे दूर करते हैं, मैं उतनी ही मजबूत होती हूं। यह जंग तब तक जारी रहेगी जब तक हम लोकतंत्र और आजादी पा नहीं लेते मुझे उससे कुछ भी कम मंजूर नहीं। बचपन से ही संघर्ष शील रही नरगिस के पिता किसान थे। मां राजनीतिक पृष्ठभूमि से थीं। 1979 में इस्लामी क्रांति के बाद राजशाही खत्म हुई तो उनके एक्टिविस्ट चाचा और दो भाई गिरफ्तार किए गए, इनमें से एक भाई को फांसी दे दी गई। तब नरगिस 9 साल की थी। नरगिस के दिल और दिमाग पर उसका गहरा असर पड़ा। इसके बाद उन्होंने विरोध की राह ही चुनने का फैसला किया। कॉलेज में संगठन खड़ा कर दिया। शादी की तो एक साल अज्ञातवास में बिताना पड़ा। इन सब घटनाओं ने नरगिस को और मजबूत बना दिया। चार लोगों का यह परिवार कभी साथ नहीं रह पाया। बच्चों और पति को नरगिस के काम पर गर्व है। वे कहते हैं यह बहुत मुश्किल है एक पति और पिता के तौर पर बच्चों के साथ रहना। मैं चाहता हूं कि नरगिस साथ रहे । उनके मिशन में हर कदम हम उनके साथ हैं। नरगिस को उनकी मां बचपन में कहा करती थी कि बेटी कुछ भी कर लेना राजनीति से दूर रहना। ईरान जैसे देश में व्यवस्था से लड़ने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। लगता है मां की वह चेतावनी सही साबित हुई है। लंबे समय से जेल में बंद नातगिस का जीवन दुनिया भर की महिलाओं के लिए बहुत प्रेरणादयी है


साथी कैदियों की तकलीफ को नरगिस ने व्हाइट टॉर्चर नाम की एक किताब में विस्तार से लिखा है। उन्होंने जेल को भी आंदोलन का केंद्र बना दिया है। उनके करीबी दोस्त बताते हैं कि फारसी शास्त्रीय संगीत में दक्ष नरगिस जेल के वार्ड में सभाएं करती हैं। गाने के साथ बर्तनों पर पारंपरिक धुन बजाती हैं और साथी कैदियों के साथ नृत्य भी करती है। उन्होंने जेल की दीवारों को लोकतंत्र और आजादी के नारों से रंग दिया था।
नरगिस ने महिलाओं के अधिकारों खासतौर पर मृत्यु दंड उन्मूलन के लिए अभियान चलाया है। ईरान में उन्हें जान जिंदगी और आजादी आंदोलन की सबसे बुलंद आवाज माना जाता है। 2003 में मानवाधिकार कार्यकर्ता शिरीन एबादी के नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद वह नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली 19वीं महिला और दूसरी ईरानी महिला है। इसके पहले ईरान की शिरीन एबादी को शांति के लिए नोबेल पुरुस्कार दिया गया था। फिलहाल उन्हें ईरान की कुख्यात एबीएन जेल में रखा गया है। बच्चों के साथ पेरिस में रह रहे नरगिस मोहम्मदी के पति ताबी रहमानी ने कहा है कि यह नोबेल पुरस्कार मानव अधिकारों के लिए नरगिस की लड़ाई को प्रोत्साहित करेगा लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि यह ईरान में चल रहे जान जिंदगी आजादी आंदोलन के लिए पुरस्कार भी है।
मोहम्मदी का जन्म 21 अप्रैल 1972 को ज़ांजन, ईरान में हुआ था और वे कोरवेह , करज और ओशनावियेह में पले-बढ़े।  उन्होंने काज़्विन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया , भौतिकी में डिग्री प्राप्त की और एक पेशेवर इंजीनियर बन गईं। अपने विश्वविद्यालय करियर के दौरान, उन्होंने छात्र समाचार पत्र में महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने वाले लेख लिखे और राजनीतिक छात्र समूह ताशक्कोल दानेशजुयी रोशनगरान (“प्रबुद्ध छात्र समूह”) की दो बैठकों में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वह एक पर्वतारोहण समूह में भी सक्रिय थीं लेकिन बाद में उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें पर्वतारोहण में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया था।

मोहम्मदी ने कई सुधारवादी समाचार पत्रों के लिए एक पत्रकार के रूप में काम किया और सुधार, रणनीति और रणनीति नामक राजनीतिक निबंधों की एक पुस्तक प्रकाशित की । 2003 में, वह नोबेल शांति पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी की अध्यक्षता वाले डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर (डीएचआरसी) में शामिल हो गईं ;  बाद में वह संगठन की उपाध्यक्ष बनीं।

1999 में, उन्होंने साथी सुधार-समर्थक पत्रकार ताघी रहमानी से शादी की , जिन्हें जल्द ही पहली बार गिरफ्तार कर लिया गया।  रहमानी 14 साल की जेल की सजा काटने के बाद 2012 में फ्रांस चले गए, जबकि मोहम्मदी ने अपना मानवाधिकार कार्य ईरान में ही जारी रखा।  मोहम्मदी और रहमानी के जुड़वां बच्चे हैं।

मोहम्मदी को पहली बार 1998 में ईरानी सरकार की आलोचना के लिए गिरफ्तार किया गया था और एक साल जेल में बिताया था।  अप्रैल 2010 में, उन्हें डीएचआरसी में सदस्यता के लिए इस्लामिक रिवोल्यूशनरी कोर्ट में बुलाया गया था। उन्हें कुछ समय के लिए 50,000 अमेरिकी डॉलर की जमानत पर रिहा कर दिया गया था, लेकिन कई दिनों बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और अबियन जेल में बंद कर दिया गया ।  हिरासत में रहने के दौरान मोहम्मदी का स्वास्थ्य गिर गया और उसे मिर्गी जैसी बीमारी हो गई, जिससे वह समय-समय पर मांसपेशियों पर नियंत्रण खोती रही। एक महीने के बाद, उसे रिहा कर दिया गया और चिकित्सा उपचार लेने की अनुमति दी गई।

जुलाई 2011 में, मोहम्मदी पर फिर से मुकदमा चलाया गया  और उन्हें “राष्ट्रीय सुरक्षा, डीएचआरसी की सदस्यता और शासन के खिलाफ प्रचार” के खिलाफ काम करने का दोषी पाया गया। सितंबर में, उसे 11 साल की कैद की सजा सुनाई गई। मोहम्मदी ने कहा कि उन्हें फैसले के बारे में अपने वकीलों के माध्यम से ही पता चला था और उन्हें “अदालत द्वारा जारी 23 पन्नों का एक अभूतपूर्व फैसला दिया गया था जिसमें उन्होंने बार-बार मेरी मानवाधिकार गतिविधियों की तुलना शासन को गिराने के प्रयासों से की थी।”  मार्च 2012 में, अपील अदालत ने सजा को बरकरार रखा, हालांकि इसे घटाकर छह साल कर दिया गया।  26 अप्रैल को, उसे अपनी सजा शुरू करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया।
इस सजा का ब्रिटिश विदेश कार्यालय ने विरोध किया , जिसने इसे “ईरानी अधिकारियों द्वारा बहादुर मानवाधिकार रक्षकों को चुप कराने के प्रयासों का एक और दुखद उदाहरण” कहा।
अब देखना है कि नरगिस को ईरान सरकार रिहा करती है या नहीं। पुरुस्कार के लिए नरगिस चीन की गई है। नरगिस को सारी दुनिया एक ऐसी विराट हस्ती के रूप में देख रही है जिसकी मिसाल वे खुद हैं।

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