अपने कार्यों के लिए याद किए जाते रहेंगे पूर्व कुलसचिव डा घनश्याम राय

अपने कार्यों के लिए याद किए जाते रहेंगे पूर्व कुलसचिव डा घनश्याम राय

जेटी न्यूज ( प्रो अरुण कुमार)

पूर्णिया।कुलाधिपति के आदेश से डा घनश्याम राय को गत 21 मार्च को पूर्णिया विश्वविद्यालय पूर्णिया के कुलसचिव पद से विरमित किया गया है। उन्होंने अपने मूल पद ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के एशोसियेट प्रोफेसर के पद पर योगदान कर चुके हैं। लेकिन राज्य के तीन नव गठित विश्वविद्यालयों में शामिल पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलसचिव के रूप में अपने कार्यों के लिए डा घनश्याम राय याद किए जाते रहेंगे।
ध्यातव्य है कि पूर्व कुलपति डा राजेश सिंह के समय जितने कोर्स और कार्य शुरू कराया गये, उनमें से किसी का भी अनुमोदन सरकार के स्तर पर विधिवत प्राप्त नहीं कराया गया था।उन तमाम कार्यो का अनुमोदन का पत्र जब डा राय ने कुर्सी संभाली तब उन्होंने निर्गत कराया। उनके द्वारा एमबीए मान्यता पत्र, स्नातकोत्तर विषयों की मान्यता और पद सृजन, अररिया कालेज और मारवाड़ी कालेज में स्नातकोत्तर विषयों में मान्यता का पत्र,बीएन मंडल विश्वविद्यालय से अनुकंपा पर नियुक्त 21 पाल्यों का सरकार से से वर्षों तक लंबित वेतन भुगतान पत्र और नये अनुकंपा पाल्यों के लंबे संघर्ष के पश्चात 16 पाल्यों के की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कराई गई। वेतन पेंशन के मामले नियमित किए गए।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की छात्राओं का सरकार के स्तर पर वंचित तमाम सुविधाओं को उपलब्ध कराया गया। इतना ही नहीं संबद्ध महाविद्यालयों की समस्याओं के निदान हेतु सरकार से पत्र निर्गत कराये गये। कुलपति को देय पेंशन की तकरीबन एक लाख रुपए, वेतन से अक्टूबर 2022 से कटौती कराकर भुगतान सुनिश्चित कराया गया। इस संबंध में रिकवरी के लिए सरकार को पत्र का जबाब दिया गया, जो अबतक अप्राप्त है।

इतना करने के बावजूद डा घनश्याम राय को इस बात का मलाल रह गया है कि कुलसचिव के रूप में चतुर्थ वर्गीय श्रेणी के कर्मचारियों का प्रमोशन के लिए सरकार से पत्र निर्गत नहीं करा पाए। लेकिन यह अभी भी प्रक्रियाधीन है। सबसे अहम् बात संबद्ध महाविद्यालयों में विवाद रहने और संतुष्ट नहीं रहने के कारण दानदाताओं की सूची प्रकाशन का भारी दबाव रहने के बावजूद अधिसूचना जारी नहीं किया गया जा सका।


डा राय की नजरों में बीएन मंडल विश्वविद्यालय के समय की दानदाताओं की सूची को तोड़-मरोड़कर अधिसूचित करने से अच्छा है, पैतृक विश्वविद्यालय को को वापस कर देना चाहिए ताकि इसकी अधिसूचना पैतृक विश्वविद्यालय ही अधिसूचना जारी कर दें। अथवा पूर्णिया विश्वविद्यालय अपने स्तर से दानदाताओं हेतु विज्ञापन प्रकाशित करने के वाद अधिसूचना जारी करें,ताकि नये दानदाताओं को भी मौका मिल सके।

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