आदर्श महाविद्यालय घैलाढ़-जीवछपुर में राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित टॉपिक था राष्ट्र निर्माण में साहित्य एवं समाज की भूमिका

*इस अवसर पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित स्मारिका सह आलेख सार पुस्तक का भी विमोचन किया गया*

आदर्श महाविद्यालय घैलाढ़-जीवछपुर में राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

टॉपिक था राष्ट्र निर्माण में साहित्य एवं समाज की भूमिका

*इस अवसर पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित स्मारिका सह आलेख सार पुस्तक का भी विमोचन किया गया*

मधेपुरा/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

बीएनएमयू के अधीन आदर्श महाविद्यालय घैलाढ़-जीवछपुर में शनिवार को राष्ट्र निर्माण में साहित्य एवं समाज की भूमिका विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के डीएसडब्ल्यू प्रो. नवीन कुमार ने किया। इस अवसर पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र कुमार द्वारा सम्पादित स्मारिका सह आलेख सार पुस्तक का भी विमोचन किया गया। चार सत्र में आयोजित इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि भारत सरकार के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार यादव ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जोरदार वकालत की। उन्होंने संविधान सभा में हिंदी को लेकर हुई बहसों की भी विस्तार से चर्चा की। नयी शिक्षा नीति के आलोक में भी उन्होंने साहित्य के वर्तमान परिदृश्य को सामने रखा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के निर्माण में साहित्य की अहम योगदान होता है। साहित्य से हमें प्रेरणा मिलती है। समाज के नवनिर्माण में साहित्य मददगार होता है।


*मनुष्यता के विकास में साहित्य की भूमिका अहम: प्रो. जंगबहादुर*
आदर्श कॉलेज में आयोजित सेमिनार में रांची विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जंगबहादुर पाण्डेय ने मंत्रोच्चार से अपने सम्बोधन की शुरुआत की। उन्होंने मनुष्यता के विकास में साहित्य की भूमिका को रेखांकित किया। रामचरितमानस के विविध प्रसंगों द्वारा उन्होंने साहित्य की प्रासंगिकता और उसकी दार्शनिकता पर प्रकाश डाला। राष्ट्र निर्माण में साहित्य की भूमिका पर बोलते हुए उन्होंने सुदर्शन की कहानी हार की जीत और माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा का भी जिक्र भी किया। बीएनएमयू के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार चौधरी ने सबसे पहले राष्ट्र की अवधारणा पर प्रकाश डाला। उन्होंने साहित्य की जरूरत, राष्ट्र निर्माण में साहित्य की अहम भूमिका तथा राजनीति और साहित्य के सम्बन्ध पर अपना वक्तव्य केंद्रित रखा। मानविकी के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. उषा सिन्हा राष्ट्र निर्माण में साहित्य एवं समाज की भूमिका विषय पर बोलते हुए अरुण कमल की पंक्तियों को विशेष तौर पर चिन्हित किया। सारा लोहा उनलोगों का अपनी केवल धार पर अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डॉ. अरुण कुमार और संचालन प्रो. बिजेन्द्र नारायण यादव ने किया। कॉलेज के सचिव ई. प्रणव प्रकाश ने अतिथियों का स्वागत किया। मौके पर विषय विशेषज्ञ के रूप में पूर्व एचओडी हिन्दी डॉ. सीताराम शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, पीजी सेंटर, सहरसा, प्रो. वीर किशोर सिंह, बीएनएमवी कॉलेज की डॉ. शेफालिका शेखर ने अपनी बातें कही। तकनीकी सत्र का संचालन पीजी सेंटर, सहरसा के प्राध्यापक डॉ. जैनेन्द्र कुमार ने किया। समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. विजेन्द्र नारायण यादव ने किया। मौके पर प्रॉक्टर डॉ. बीएन विवेका, प्राचार्य डॉ. अरविंद कुमार, पूर्व प्राचार्य प्रो. पीएन पीयूष, डॉ. केपी यादव, डॉ. परमानन्द यादव, डॉ. दीनानाथ मेहता, इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. सी.पी. सिंह, संयोजक डॉ. अनन्त कुमार, प्रो. किशोर कुमार, प्रो. अशोक कुमार, डॉ. संजय कुमार परमार, प्रो. देवेन्द्र कुमार, प्रो. मनोज कुमार, डॉ. संजय कुमार, डॉ. अरविंद अकेला, डॉ. ज्योतिष कुमार ज्वाला, डॉ. सुमेध आनंद, निशा कुमारी, विभीषण कुमार, रूपम कुमारी, अमित कुमार सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी मौजूद रहे।

*श्रेष्ठ साहित्य समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है:डॉ. सोनम*
आदर्श कॉलेज में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में अध्यक्ष हिन्दी विभाग विद्या मंदिर महिला कॉलेज कानपुर उत्त्र प्रदेश की डॉ. सोनम सिंह ने कहा कि साहित्यिक लेखन का राष्ट्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि राष्ट्र-निर्माण कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है। इस पर बहुत सहजता से चलना होता है। अतीत से वर्तमान तक राष्ट्र-निर्माण के सभी संदर्भों और प्रक्रियाओं की यदि बात करें तो भारत के इतिहास में ऐसे कई अवसर आये जब समाज विखंडन की स्थिति में था और नये सिरे से राष्ट्र-निर्माण की आवश्यकता महसूस हो रही थी। उस समय कुछ दूरदर्शी साहित्यकारों ने अपने कालजयी साहित्य के माध्यम से एक नवीन राष्ट्र के निर्माण की आधारशिला रखी। डॉ. सिंह ने कहा कि कुछ लेखन समाज की विडंबनाओं का कुछ अधिक ही यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करते हैं। कि पढ़कर मन इन व्यवस्थाओं के प्रति विद्रोही हो उठता है। राष्ट्र वैसा ही बनेगा, जैसा साहित्य पढ़ेगा। समस्यात्मक साहित्य समाज के लिए समस्या ही पैदा करेगा। किंतु श्रेष्ठ साहित्य समस्या नहीं, बल्कि समाधान प्रस्तुत करता है।

Related Articles

Back to top button