*कोई भूख से त्रस्त, तो कोई रामायण में मस्त।*, हमारे भारत की क्यों दो तस्वीर है?

आर.के. राय/ठाकुर वरुण कुमार।

नई दिल्ली::- एक तरफ जहां जर्मनी के वित्तमंत्री ने आर्थिक चुनौतियों के आगे मौत सरल समझी और आत्महत्या कर ली. वहीं हमारा भारत कोरोना वायरस की गंभीरता और विषमता दोनों का हाल बयां करती है। कोरोना वायरस को अब वैश्विक महामारी घोषित कर दिया जा चुका है। पूरे विश्व में सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइज़िंग की लहर चल रही है और ठीक इसी समय पर भारत के मजदूरों के पास पलायन के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। हज़ारों-लाखों की संख्या में मजदूर सड़कों पर चलते जा रहे हैं।

कोरोना वायरस संक्रमण के फैलते ही भारत में समाज और मौजूदा सरकार की विफलताएं स्पष्ट रूप से नज़र आ रही हैं। 21 दिन का लॉकडाउन चल रहा है। भारत में गरीब और अमीर के बीच अंतर और भेदभाव अब मुखर होकर हमारे सामने खड़ा है। भारत के साफ-साफ दो टुकड़े देखे जा सकते हैं। पहला हिस्सा लॉकडाउन में घरों के खिड़की-दरवाजे बंद कर टी.वी. और मोबाइल फ़ोन पर दूसरे हिस्से का जायज़ा ले रहा है। दूसरा हिस्सा अपनी गृहस्थी सर पे लादे सड़कों पर प्रशासन के सैनिटाइज़र की बौछार के नीचे बेबस चलता जा रहा है।

भारत का पहला हिस्सा अगले छः महीने का भोजन और मनोरंजन जमा कर रहा है। व्हॉटसैप और फेसबुक के खातिर जो थोड़ा-बहुत दान दिया है, उस पर इतरा रहा है। लॉक डाउन में डे-1, डे-2 का आडंबर रचा रहा है। लेकिन दूसरा हिस्सा सड़क पर निडरता से निकल पड़ा है। वो इस लॉक डाउन में हज़ारों कि.मी. पैदल चल कर घर पहुंचना चाह रहा है। भूख, प्यास, बारिश, भीड़, और संक्रमण से उन्हें डर नहीं है। वो भी पहले हिस्से की तरह अपने घर अपनों के बीच पहुंचना चाहते हैं।

हर दूसरे दिन हमारी टी.वी स्क्रीनों पर इन गरीब मजदूरों की एक नई तस्वीर एक नई पीड़ा व्यक्त करते हुए सामने आ जाती है। कुछ तथाकथित विद्वान इन गरीबों की मजबूरी की खाल उधेड़ते नजर आ रहे हैं। शायद बाकी देशवासी ये देख तंग आकर रिमोट उठा कर रामायण और महाभारत देख अपना मन शांत कर लेे रहे हैं।

अब सवाल ये उठता है कि क्या इस विषम समय के पहले भी ये हिस्से बंटे हुए थे? क्या सरकार और विशेषाधिकृत समूह गरीबों और मजदूरों से आंखे चुरा चैन से जी रहे थे ? और अब जबकि आर्थिक भेदभाव की स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट है तो क्या ये देश उन दुत्कारे हुए लेकिन बेहद आवश्यक नागरिकों को अब भी नज़रअंदाज करेगा?

बतौर नागरिक हमें इस फर्क की बारीकियों को समझना होगा। कैसे भारत का एक हिस्सा दूसरे पर सिर्फ तरस खा रहा है, और दूसरा हिस्सा अपने जान की बाज़ी लगाने को मजबूर है?

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