आपदा की घड़ी में कहाँ हैं हमारे माननीय ?

चुनावों के समय हमारे माननीय घर-घर का चक्रर लगाते हैं

आपदा की घड़ी में कहाँ हैं हमारे माननीय ?

चुनावों के समय हमारे माननीय घर-घर का चक्रर लगाते हैं

चुनाव के वक्त चुनाव जीतने के लिए करोड़ों खर्च करते हैं हमारे माननीय

आखिर आज कहा नदारत हैं हमारे माननीय ?

कितना अच्छा होता काश कि हमारे माननीय मजबूती से हमारे साथ खड़े होते….

आर.के.रॉय/संजीव मिश्रा

नई दिल्ली/पटना :

कोरोना महामारी का डर,सोशल डिस्टेसिंग की मजबूरी और लॉकडाउन। लॉकडाउन है तो सारे काम धंधे बंद हैं।गरीबों और मजदूरों को खाने के लाले पर रहे हैं।ऐसे में स्वाभाविक रूप से ध्यान हमारे जनप्रतिनिधियों की ओर जाता है।

मैं पिछले कुछ दिनों से ये जानने के प्रयास में लगा हूँ कि हमारे जनप्रतिनिधि आखिर कहाँ-कहाँ राहत शिविर चला रहे हैं।मैं हर दिन बिहार के सारे प्रमुख दैनिक अखबार पढ़ता हूँ।अखबारों में हर दिन ढूँढता हूँ कि कहाँ-कहाँ हमारे माननीय विधायक और माननीय संसद सदस्य जनसेवा में लगे हैं और जरूरतमंदों को भोजन और राशन उपलब्ध करवा रहे हैं।

अफसोस,इस संकट की घड़ी में विभिन्न सदनों में बैठे हमारे माननीय कहीं नजर नहीं आ रहे।वहीं दूसरी ओर हम देख रहे हैं कि सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए पूरे देश और प्रदेश में हर जगह समाजसेवी जरूरतमंदों को भोजन और राशन मुहैया करवा रहे हैं।हम देख रहे हैं कि समाज के आम लोग भी अपने खर्चों में कटौती कर गरीबों को भोजन बाँट रहे हैं और घर-घर राशन पहुंचा रहे हैं।

लॉकडाउन का करीब एक महीना होने को है।राजनेता चाहे सत्ता पक्ष के हों या विपक्षी,बोल बचन से आगे नहीं बढ़ पाए हैं आजतक। हमने देखा कि अपने निजी स्वार्थ के लिए प्रदेश के एक नेता लॉक डाउन में भी राजस्थान की सैर कर आए,हमने देखा कि प्रदेश के एक मंत्री के करीबी ने सोशल डिस्टेसिंग की धज्जी उड़ाते हुए मछली पार्टी दी। हमने देखा कि लॉक डाउन में एक माननीय दिल्ली से बिहार चले आये।

देश के अन्य हिस्सों में भी राजनेताओं और आला अधिकारियों के द्वारा मनमानी करने की घटना होती रही।कोई शादी कर रहा है तो कोई पिकनिक मना रहा है।हमने देखा कि लॉकडाउन में दिल्ली की केजरीवाल सरकार मजदूरों के भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकी और लॉकडाउन की घोषणा होते ही बरगलाकर उन लाखों मजदूरों को दिल्ली से पैदल ही जाने को मजबूर कर दिया।

इस संकट की घड़ी में हम देख रहे हैं कि हमारे माननीय कितने असंवेदनशील हैं।शायद हमारे राजनेताओं का यही वास्तविक चेहरा है, जो आज दिख रहा है। यही वास्तविक चरित्र है।चुनाव के वक्त अनाधिकारिक रूप से यही राजनेता चुनाव जीतने के लिए करोड़ों खर्च करते हैं।

चुनाव आयोग चाहे लाख कोशिश कर ले,लेकिन हर कोई जानता है कि चुनाव जीतने के लिए ये राजनेता पानी की तरह पैसा बहाते हैं।चुनाव में ये राजनेता मतदाताओं को लुभाने के लिए उपहार,पार्टी और नकद रुपए तक बांटते हैं।ये अलग बात है कि इन चीजों के सबूत नहीं होते।

यही राजनेता चुनाव जीतने पर कार्यकर्ताओं को भोज देने में लाखों रुपए खर्च करते हैं।परन्तु अफसोस, संकट की इस घड़ी में जबकि लॉक डाउन की वजह से मजदूर,गरीबों को भोजन का संकट है अपवाद स्वरूप दो-चार को छोड़ दें तो कोई अपने मतदाताओं की मदद के लिए आगे नहीं आ रहे।जितना खर्च ये राजनेता विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में करते हैं,उससे काफी कम पैसे में ही क्षेत्र के हर जरूरतमंद के लिए एक महीने के भोजन की व्यवस्था हो जाती।चुनाव के दौरान इन्हीं राजनेताओं के पार्टी कार्यालय में दिनरात चाय,नास्ता और भोजन की उत्तम व्यवस्था होती है।परन्तु मुसीबत की इस घड़ी में उन राजनेताओं के दरवाजे बंद हैं।पता नहीं हमारे जनसेवक मुसीबत में कहाँ छुप जाते हैं।

ये हम केवल विपक्ष की बात नहीं कर रहे बल्कि शक्ता पक्ष की भी बात कर रहे हैं। ज्ञात हो कि बिहार में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होना है । चुनाव में ज्यादा दिन शेष नहीं बचा है । हमारे मतदाताओं को ये याद रखना चाहिए कि उनके माननीय ने आपदा के समय उनके साथ क्या क्या किया है ।

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