सवालों के घेरे में शिक्षा के आधुनिक तरीके।

करीब चालीस दिनों से प्रदेश के सारे शैक्षणिक संस्थान बंद हैं

क्या छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा उचित है ?

बच्चों के हाथों में घंटों स्मार्टफोन,लैपटॉप और इंटरनेट थमा देना उचित है ?

जहाँ शिक्षा का स्तर अभी दयनीय हो वहां किस हदतक जायज ऑनलाइन शिक्षा ?

जहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से,वहां स्मार्टफोन, लेपटॉप, नेट रिचार्ज कहां तक संभव ?

आर. के.रॉय/संजीव मिश्रा

पटना :

ज्ञात हो कि स्कूल,कॉलेज, विश्विद्यालय ,कोचिंग,ट्यूशन सब बंद है।सरकार ने कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सबसे पहले शैक्षणिक संस्थानों को ही बंद करने का आदेश जारी किया था।ये कब खुलेंगे,अब तक अनिश्चित है।घर में बंद बच्चे और उनके अभिभावक अब पढ़ाई के लिए चिंतित हो रहे हैं।

ऑनलाइन मीटिंग, ऑनलाइन मार्केटिंग,ऑनलाइन उच्च शिक्षा की पढ़ाई के तर्ज पर कुछ विद्यालय ऑनलाइन शिक्षा देने की असफल कोशिश कर रहे हैं या कहें कि वो सिर्फ दिखावा कर रहे हैं।ऑनलाइन शिक्षा को वो अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित भी कर रहे हैं।स्थिति ये हो गई है कि गांव में पढ़ने वाले कक्षा पहली,दूसरी,चौथी या पांचवी के बच्चों के अभिभावक भी अपने-अपने स्कूल प्रबंधकों को ऑनलाइन कक्षा के लिए कह रहे हैं। बगैर सोंचे समझे,बगैर पूरी जानकारी लिए वो अपने छोटे-छोटे बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देना चाह रहे हैं।जबकि हकीकत ये है कि ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर अभिभावकों के साथ छलावा किया जा रहा है।

ये सोंचने वाली बात है कि क्या छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा उचित है ?क्या ऑनलाइन शिक्षा,बच्चों को शिक्षित करने का उचित माध्यम है ?क्या छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में या फिर नवमीं या दसवीं कक्षा के किशोरावस्था के बच्चों के हाथों में घंटों स्मार्टफोन,लैपटॉप और इंटरनेट थमा देना उचित है ?क्या चंचल और नटखट बच्चे जो क्लास में शिक्षकों के नजर के सामने भी अपना काम अच्छे से नहीं करते,शिक्षकों को उन्हें डांटना पड़ता है,समझाना पड़ता है और क्लास में एक-एक बच्चों पर शिक्षकों को पूरा ध्यान देना होता है,तब वो अपना काम करते हैं।वैसे बच्चों के लिए आखिर ऑनलाइन शिक्षा कितनी सार्थक होगी।क्या इसके दुष्प्रभाव की कल्पना भी की है किसी ने ?

कई स्कूल व्हाट्सएप पर वीडियो भेज रहा हैं,स्टडी मटेरियल भेज रहे हैं,क्या पढ़ाई के ये तरीके छोटे बच्चों के लिए सार्थक हैं ? गांवों में रहने वाले अभिभावक,जिनमें अधिकांश अपने छोटे बच्चों को भी पढ़ा पाने में असमर्थ हैं,क्या ऐसे में अपने बच्चों को शिक्षा दे पाएंगे ?यदि कुछ अभिभावक स्टडी मटेरियल या सिलेबस के अनुसार अपने बच्चों को पढ़ा भी सकते हैं तो उनकी संख्या काफी कम है।पढ़ाई के ये आधुनिक तरीके औपचारिकता और खानापूर्ति भर नहीं तो क्या है।छोटे बच्चों को, कम से कम कक्षा छठी या सातवीं तक के बच्चों को जब तक नजरों के सामने नहीं पढ़ाया जाए,हमें नहीं लगता कि और कोई भी तरीका सार्थक हो सकता है।ग्रामीण क्षेत्रों में जहां नेटवर्क की समस्या,अभिभावकों की आर्थिक स्थिति,अभिभावकों की शैक्षणिक योग्यता,साथ ही साथ और भी कई तरह की समस्या है,पढ़ाई के ये आधुनिक तरीके पूरी तरह असफल हैं।ये अलग बात है कि कुछ स्कूल प्रबंधक बच्चों को वीडियो,स्टडी मैटेरियल आदि भेजकर सिलेबस पूरी करने की अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं।

बेहतर है कि अभिभावक धैर्य से काम लें।अभी हम सब जिस विपदा से गुजर रहे हैं पहले कभी नहीं हुआ था,न किसी ने इसकी कल्पना की थी।उम्मीद है बहुत जल्द हम सब इस विपदा से बाहर निकल जाएंगे।सब कुछ सामान्य हो जाएगा और हमारी जिन्दगी पहले की तरह पटरी पर आ जाएगी।बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो पढ़ा है,वो उसका भी अभ्यास कर सकते हैं।सरकार के आदेश के बाद सम्भव है विद्यालयों में बहुत जल्द किताबें उपलब्ध हो जाएगी।घर में बच्चों को अन्य रचनात्मक कार्यों से परिचय करावें।चिंता न करें,बहुत जल्द सब सामान्य हो जाएगा।इस ओर प्रदेश की सरकार को भी एक कानून बनाना होगा कि आखिर किस हदतक कारगर हो सकता है ऑनलाइन शिक्षा। अभी विश्वविद्यालय में भी ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है चाहे वो कृषि विश्वविद्यालय हो, एंजेनयरिंग कॉलेज हो सब जगह। सरकार को देखना होगा कितना ये कारगर हो रहा है । खासतौर से बच्चों के प्रति तो एकदम घातक है । हम सब यही आशा कर सकते हैं कि देश जल्द ही कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त कर लेगी साथ ही जल्द स्कूल कॉलेज खुलेंगे ।

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