आखिर क्यों हाल के दिनों में गरिमा खोती जा रही पत्रकारिता, समाज में धौंस जमाने और पैसे ऐंठने के लिए युवा बन रहे पत्रकार

जेटीन्यूज़

समस्तीपुर/पटना:- अचानक से देश में पत्रकारों की बाढ़ आ गई है और उस बाढ़ में पत्रकारिता डूबती जा रही है। चाहे प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद वेब मीडिया और सोशल मीडिया, पत्रकारिता के माध्यम बन गए हैं।गाँव-गाँव में मोटरसाइकिल के आगे प्रेस का स्टीकर लगा युवा घूमते नजर आते हैं। आखिर वो किस प्रेस से है,प्रिंटिंग प्रेस या सही मायनों में मीडिया जगत के ।ये जांच का विषय है । दरअसल पत्रकारों को समाज,प्रशासन और सरकार के द्वारा कुछ विशेष सुविधा मिली हुई है,जिस वजह से युवा पत्रकार बनने के जुगाड़ में लगे रहते हैं।भले ही उनमें योग्यता हो या न हो।नतीजा है कि आज पत्रकारिता की गरिमा तार-तार हो रही है और पत्रकारों को जो सम्मान कभी प्राप्त था,वो खोता जा रहा है।एक वक्त था जब पत्रकारिता जनसेवा के लिए होती थी,आज पत्रकारिता को लोगों ने पेशा बना लिया है।कभी पत्रकारिता विद्वता की प्रतीक थी, आज पत्रकारिता ओछेपन की प्रतीक बनने की ओर बढ़ रही है।शर्म आती है जब किसी कार्यक्रम के आयोजक, राजनीतिक सभाओं के आयोजक, कार्यक्रम के बजट में पत्रकारों के लिए अलग से बजट बनाते हैं।समाज में ऐसी भी चर्चा होती है कि पुलिस थानों में बैठकर कई पत्रकार थानों की दलाली करते हैं।आज पत्रकारिता भी राजनीति की तरह ओछी होती जा रही है।

कहीं-कहीं तो एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए पत्रकार बगैर कुछ जाने समझे एक-दूसरे के खिलाफ ही उटपटांग समाचार लिख देते हैं।एक वक्त था जब पत्रकार समाज में क्रांति लाते थे, जबकि आज अपनी ओछी हरकतों की वजह से पत्रकार गाली भी सुनते हैं। पहले हिन्दी या अंग्रेजी के दैनिक अखबार पढ़कर विद्यार्थी अपनी भाषा ज्ञान विकसित करते थे और अपनी लेखन कला बेहतर करते थे।लेकिन आज के न्यूज एंकरों को सुनकर तो विद्वानों का भाषा ज्ञान भी चौपट हो जाए।न स्त्रीलिंग पुलिंग की समझ,न भाषा का जरा भी ज्ञान,न बात करने का तौर तरीका और न ही लेखन की समझ।बस गले में प्रेस का पहचान पत्र,हाथ में माइक और बन गए पत्रकार।समाज में धौंस जमाने और पैसे उगाहने के उद्देश्य से आज कई युवा पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रहे हैं।जिस वजह से योग्य और वरिष्ठ पत्रकारों को भी अपमानित होना पड़ता है।

पत्रकार होना बहुत बड़ी जिम्मेदारी की बात है।पत्रकार ऐसे ही लोकतंत्र के चौथे स्तंभ नहीं कहे जाते हैं।हम सब देख रहे हैं कि देश में लोकतंत्र को बचाए रखने में पत्रकारिता का अहम योगदान है।पत्रकारों को चाहिए कि प्रेस का आई कार्ड पहनकर और हाथ में माइक लेकर ऐसी कोई हरकत न करें जो पत्रकारिता की शान को कम करे। प्रेस लिखी मोटरसाइकिल पर चलने और हाथ में माइक लेने से सम्मान नहीं मिलता।आपका संयमित आचरण,आपका लेख,जनकल्याण के समाचार लेखन और पत्रकारिता से ईमानदारी ही आपको समाज में सम्मान दिला सकते हैं।भाषा की समझ न होना,लेखन की समझ न होना,बुरा नहीं है।लेकिन निरंतर सीखने का प्रयास करें।कोई पैदा लेते ही रवीश कुमार,विनोद दुआ,पुण्य प्रसून वाजपेयी या स्वर्गीय खुशवंत सिंह नहीं बनता।उसके लिए पढ़ना और सीखना पड़ता है और सीखना बुरी बात नहीं है।देश के बड़े से बड़े पत्रकार भी आज गहन अध्ययन करते हैं,कठिन परिश्रम करते हैं,पत्रकारिता के साथ ईमानदारी करते हैं।फिर जाकर वो बड़े पत्रकार कहलाते हैं और सम्मान पाते हैं।

पत्रकारिता जनसेवा के लिए करें,समाज में धौंस जमाने और पैसे ऐंठने के लिए नहीं। दुर्भाग्य है आज के पत्रकार ऐसा ही कर रहे हैं। अभी के हालात ये है कि बिहार में पंचायत चुनाव के बिगुल बज चुके हैं ऐसे में कई ऐसे फर्जी पत्रकार हर जिले में दिख रहे हैं जिनका मकसद केवल पैसा उगाही करना है।सूत्रों की माने तो अभी फर्जी पत्रकार भागलपुर,बेगूसराय,समस्तीपुर, पटना,मुंगेर,मोतिहारी, दुमक़ा, मुजफ्फरपुर, मधुवनी, सासाराम में देखे जा सकते हैं जो 500 रु.की माइक लेकर निकल पढ़ते है पैसे की उगाही में । बरहाल फर्जी पत्रकारों को रोकने के लिए मुख्यमंत्री स्तर से लेकर जिलाप्रशाशन तक को सतर्क होकर कारवाई करनी चाहिए ताकि कम से कम अच्छे पत्रकार जो ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं उनके गरिमा को ठेश ना पहुचे।

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