मिथिलांचल की सामा चकेबा की कथा भाई -बहन के स्नेह का अनूठा त्यौहार।

मिथिलांचल की सामा चकेबा की कथा भाई -बहन के स्नेह का अनूठा त्यौहार।

जे टी न्यूज़, दरभंगा

सामा चकेवा बिहार में मैथिली भाषी लोगों का यह एक प्रसिद्ध त्यौहार है। भाई – बहन के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध को दर्शाने वाला यह त्यौहार नवम्बर माह के शुरू होने के साथ मनाया जाता है।इसका बर्णन पुरानों में भी मिला है सामा – चकेवा एक कहानी है। कहते हैं की सामा कृष्ण की पुत्री थी जिनपर अबैध सम्बन्ध का गलत आरोप लगाया गया था जिसके कारण सामा के पिता कृष्ण ने गुस्से में आकर उन्हें मनुष्य से पक्षी बन जाने की सजा दे दी।

लेकिन अपने भाई चकेवा के प्रेम और त्याग के कारण वह पुनः पक्षी से मनुष्य के रूप में आ गयी।
शाम होने पर युवा महिलायें अपनी संगी सहेलियों की टोली में मैथिली लोकगीत गाती हुईं अपने-अपने घरों से बाहर निकलती हैं। उनके हाथों में बाँस की बनी हुई टोकड़ियाँ रहती हैं|टोकड़ियों में मिट्टी से बनी हुई सामा-चकेवा की मूर्तियाँ , पक्षियों की मूर्तियाँ एवं चुगिला की मूर्तियाँ रखी जाती है।

मैथिली भाषा में जो चुगलखोरी करता है उसे चुगिला कहा जाता है। मिथिला में लोगों का मानना है कि चुगिला ने ही कृष्ण से सामा के बारे में चुगलखोरी की थी।
सामा खेलते समय महिलायें मैथिली लोक गीत गा कर आपस में हंसी – मजाक भी करती हैं। भाभी ननद से और ननद भाभी से लोकगीत की ही भाषा में ही मजाक करती हैं।

अंत में चुगलखोर चुगिला का मुंह जलाया जाता है और सभी महिलायें पुनः लोकगीत गाती हुई अपने – अपने घर वापस आ जाती हैं। ऐसा आठ दिनों तक चलता रहता है। यह सामा-चकेवा का उत्सव मिथिलांचल में भाई -बहन का जो सम्बन्ध है उसे दर्शाता है।

यह उत्सव यह भी इंगित करता है कि सर्द दिनों में हिमालय से रंग – बिरंग के पक्षियाँ मिथिलांचल के मैदानी भागों में आ जाते हैं।

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