मोदी को अंधभक्त ले डूबेंगे

मोदी को अंधभक्त ले डूबेंगे

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बात 1953 की है।भारतके प्रधानमंत्रीके पद पर जवाहरलाल नेहरू विराजमान थे।उनकी उम्र 63वर्ष हो चुकी थी।बौद्धिक जगतमें एक प्रश्नके उत्तर तलाशे जा रहे थे-नेहरू के बाद कौन?उत्तर नेहरूने ही दिया था- जयप्रकाश नारायण।जेपी तब कांग्रेसमें भी नहीं थे, उनमें मंत्रिमंडलमें शामिल होनेकी कोई उत्सुकता भी नहीं थी।जवाहरलाल नेहरूके उत्तरने राजनीतिमें भूचाल ला दिया था।उनके मंत्रिमंडलके कांग्रेसी मंत्रियोंकी शिकायत थी कि अपना उत्तराधिकारी वह कांग्रेसके लिए बाहरी जेपी में क्यों ढूंढ रहे थे?कुछ अंतरंग लोगोंके बीच नेहरूने स्पष्ट किया था कि मंत्रिमंडलमें जो लोग हैं,वह नेहरूके यसमैन है वह नेहरूको कोई मौलिक सुझाव नहीं देते,नेहरू भी हाड़-मांसके पुतले थे और उनसे भी गलती होने की आशंका तो रहती ही थी।लेकिन,उनका कोई मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनकी गलती की तरफ इशारा नहीं करता था।जबकि जेपी की खासियत यह थी कि वह मौलिक चिंतक थे और नेहरूकी गलती दिखने पर खुलकर अपना विचार रखते थे और जेपी की यह मौलिकता नेहरूको प्रभावित करती थी।

कहने का अभिप्राय यह कि सत्ताशीर्ष पर बैठे लोगों पर कामका अत्यधिक बोझ होता है और कामके दबावमें वह आम लोगोंसे कट जाते हैं,ऐसेमें उन्हें ऐसे लोगों की सलाह की भी जरूरत रहती है जो उनके द्वारा किए गए कार्यों पर लोक-प्रतिक्रिया का पता लगाते रहें और तदनुरूप सुझाव देते रहें।
2014में प्रधानमंत्री बननेमें नरेंद्र मोदीको बहुत बड़ा सहयोग सोशल मीडियासे मिला था।सोशल मीडिया पर अपने आईटी सेलके द्वारा भाजपा ऐतिहासिक तथ्योंको तोड़ मरोड़ कर पेश करती है।यही नहीं,वह इतिहास पुरुषोंके बारेमें झूठ,मनगढ़ंत और बेबुनियाद बातें फैलाती है।पिछले 7वर्षोंमें भाजपाने अपने प्रभाव क्षेत्रमें अंधभक्तों की ऐसी फौज खड़ा कर ली है,जो बौद्धिक रूपसे परिपक्व नहीं है।वह भाजपाके आईटी सेल के द्वारा फैलाए गए झूठ,मनगढ़ंत और बेबुनियाद बातोंके संवाहक और प्रसारक हैं।अंधभक्तोंमें सायास राष्ट्रवादी और सांप्रदायिक जुनून भरनेकी भरपूर कोशिश की गई है।उन्हें सायास भ्रमित करने की कोशिश की गई है कि मोदीजी अपराजेय हैं,कोई भी नेता या पार्टी मोदीजी और भाजपाको हरा नहीं पाएगी।वैसे में, अधकचरे और बुद्धिहीन लोग भाजपामें भीड़ बढ़ा रहे हैं।यह लोग स्थानीय तौर पर भी मोदीजी और भाजपा को सच्चाई से रूबरू नहीं कराते।अंधभक्तों की फौज मोदीजी और भाजपाको राजनीतिकी जमीनी हकीकत बता ही नहीं पाते।
अभी-अभी,13राज्योंमें 3लोकसभा की सीटों और 29 विधानसभा की सीटों पर उपचुनाव हुए हैं।यूं तो, उपचुनाव राजनीतिमें बहुत महत्व नहीं रखते।एक आम धारणा है कि उपचुनाव सत्ताधारी पक्षमें जाते हैं।

2001में,गुजरातके साबरमती विधानसभा क्षेत्रके उपचुनावने भाजपा और राष्ट्रकी राजनीतिकी दिशा तय की थी।साबरमती विधानसभा क्षेत्र गांधीनगर लोकसभा क्षेत्रके अंतर्गत आता है।तब,गांधीनगर लोकसभा क्षेत्रके सांसद लालकृष्ण आडवाणी और गुजरातके मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल हुआ करते थे।2001में,साबरमती विधानसभा क्षेत्रके लिए हुए उपचुनावमें भाजपाके बाबूलाल पटेल चुनाव हार गए थे।तब,नरेंद्र मोदीने गुजरात भाजपाकी प्रदेश राजनीतिमें तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेलके खिलाफ बगावतको हवा दी थी।2अक्टूबर,2001 को केशुभाई पटेलके इस्तीफाके बाद नरेंद्र मोदीको गुजरातका मुख्यमंत्री बनाया गया था।कभी भी,विधायक रहे बिना,नरेंद्र मोदी गुजरातके मुख्यमंत्री बने।यही नहीं,2014में जब वह प्रधानमंत्री बने तो उसके पहले वह कभी लोकसभा या राज्यसभा के सांसद नहीं रहे थे।
पिछले 29अक्टूबरको हुए उपचुनावमें असम की पांचों सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दलोंको गई हैं।प. बंगालकी चारों सीटें पर भाजपा बुरी तरह मात खा गई है।लेकिन असम और पश्चिम बंगालके उपचुनाव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव,2022को प्रभावित नहीं करेंगे।लेकिन,हिमाचल प्रदेश,हरियाणा,राजस्थान और मध्यप्रदेशके उपचुनाव तो निश्चय ही उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022को प्रभावित करेंगे।
हिमाचलप्रदेश की मंडी संसदीय सीटके उपचुनावमें कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह चुनाव जीत गई हैं।वह हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी हैं।मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा की हार इन संदर्भोंमें भी महत्वपूर्ण है कि वह वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुरका गृहक्षेत्र है।
वहीं जुब्बल-कोटखाई, अर्की व फतेहपुर  विधानसभा सीटों पर भी कांग्रेसने बाजी मार ली है।पहली बार इतने बड़े उपचुनावमें सत्तामें रहते हुए भाजपा चारों सीटें हार गई।जुब्बल- कोटखाईमें तो भाजपा प्रत्याशी नीलम सरैईक जमानत तक नहीं बचा पाई।2022में होनेवाले विधानसभा चुनावसे पहले सत्ताका सेमीफाइनल माने जा रहे उपचुनावके नतीजोंने भाजपा नेताओंकी बेचैनी बढ़ा दी है,तो दूसरी तरफ कांग्रेसको इन नतीजोंसे संजीवनी मिली है।हिमाचल प्रदेशके ये उपचुनाव इन संदर्भोंमें भी महत्वपूर्ण हैं कि भाजपाके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेशसे ही आते हैं।हिमाचल प्रदेशके मुख्यमंत्री जयराम ठाकुरने बढ़ती महंगाई और पार्टीके भीतर भितरघातको इस हार की वजह बताई है।

हरियाणामें सिर्फ एक सीट ऐलनाबाद पर उपचुनाव हुए थे।यह सीट पहले भी हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री चौ.देवीलालके पोते और हरियाणाके ही भूतपूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटालाके पुत्र अभय सिंह चौटालाके पास ही थी।लेकिन,उन्होंने किसान आन्दोलनके समर्थनमें विधायक पदसे इस्तीफा दे दिया था।अभी,अभय सिंह चौटालाके विरुद्ध भाजपाने हरियाणाकी बदनाम शख्सियत गोपाल कांडाके भाई गोविन्द कांडाको खड़ा किया था। लेकिन,तरकीब काम नहीं आई,और अभय सिंह चौटाला इस सीट से चौथी बार विधायक बने।अभय सिंह चौटालाने अपनी जीतको किसानोंकी जीत बताया है।

साल 2023के आखिरमें होनेवाले राजस्थान विधानसभा चुनावके जरिये प्रदेशकी सत्तामें वापसीके मंसूबे पाल रही भाजपाको राज्यकी दो विधानसभा सीटों- धरियावाद और वल्लभ नगर-में करारी हारका सामना करना पड़ा है.वल्लभ नगर कांग्रेसके पास पहले से थी जबकि धरियावादको भाजपासे छीना है.सबसे खास बात यह कि भाजपा इन दोनों जगहों पर कांग्रेसका मुकाबला ही नहीं कर पाई और दोनों जगह उसके उम्मीदवार तीसरे और चौथे स्थान पर संघर्ष करते नज़र आये.

राजस्थानकी अशोक गहलोत सरकारकी सेहत पर इन दोनों जीत का सीधा असर भले ना पड़ा हो लेकिन कांग्रेसकी इस जीतका राज्यकी सियासत पर गहरा असर पड़ेगा.इन दोनों सीटोंके चुनावी नतीजोंसे सीएम अशोक गहलोतको दोहरा फायदा हुआ है.पहला ये कि इस जीतसे गहलोतका सियासी कद बढ़ा है और दूसरा ये कि इस जीतसे गहलोतने अपने तमाम विरोधियोंकी बोलती बंद कर दी है।

मध्य प्रदेशमें खंडवा लोकसभा सीट भाजपाके पास ही थी।उपचुनावमें भी भाजपा यह सीट बचानेमें कामयाब रही।पृथ्वीपुर और जोबटमें भाजपाको जीत मिली है।रैगांवसे कांग्रेस उम्मीदवार कल्पना वर्मा चुनाव जीत गई हैं।1977से अस्तित्वमें आनेके बाद अबतक हुए 11चुनावोंमें 5बार भाजपा विजयी रही है।पिछले विधानसभा चुनावमें भी यह सीट भाजपाके पास ही थी।मध्यप्रदेशके सतना इलाकेके इस विधानसभा क्षेत्रके चुनाव परिणामका असर निकटवर्ती उत्तरप्रदेश विधानसभा क्षेत्रों पर पड़ने की संभावना है।

केन्द्रमें मोदी सरकारकी लोकप्रियताका ग्राफ उसी तरह गिरता जा रहा है,जिस प्रकार 1974-77के जेपीके संपूर्ण क्रान्ति आन्दोलनके दौरान इंदिराजी की,1987- 89के दौरान वीपी सिंहके अभियानके दौरान राजीव गांधीकी या 2011-12के अण्णा आन्दोलनके दौरान डॉ मनमोहन सिंह सरकारकी लोकप्रियता घटी थी। लेकिन,अंधभक्तोंकी फौज मोदीजीको जनमानसकी क्रूर सच्चाइयों से रूबरू ही नहीं होने दे रही।गोदी मीडिया अपनी चाटुकारितामें जनताकी भावनाओंसे सत्ता को अवगत नहीं करा रही।केंद्रीय कैबिनेट और भाजपामें ऐसा कोई दिख नहीं रहा,जो मोदीजीको सही सलाह दे सके।नतीजा,उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022में भाजपा के सत्ता में लौटने की संभावना निरंतर कम हो रही है।जैसा कि,29अक्तूबर,2021को लखनऊमें अमित शाहने अपील की कि 2024में नरेन्द्र मोदीको प्रधानमंत्री बनानेके लिए 2022में योगी आदित्यनाथको मुख्यमंत्री बनावें।मतलब,स्पष्ट है-2022में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावमें सत्ता गंवाने का मतलब होगा- 2024में मोदीजीके प्रधानमंत्री बननेकी संभावनाका समाप्त होना।

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