मेरी दृष्टि में कर्पूरी जी

मेरी दृष्टि में कर्पूरी जी

उदयनारायण चौधरी

गरीब -गुरबों और पददलितों के नेता कर्पूरीजी सच्चे मायने में समाजवादी थे. उनका जन्म 24 जनवरी, 1924 को अत्यन्त ही साधारण परिवार में हुआ था। आजादी की लड़ाई में वे कॉलेज का परित्याग कर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। ब्रिटिश सरकार के अनाचार, अत्याचार एवं कदाचार के विरुद्ध उन्होंने सिंह-गर्जन किया तथा जनमानस में नई प्रेरणा का संचार किया। आजादी के बाद बिहार की प्रगति के लिए उन्होंने अपना सक्रिय योगदान दिया। राष्ट्रीय राजनीति में सतत सक्रिय रहे। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। जिस समय उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यभार ग्रहण किया था उस समय बिहार देश के पिछड़े राज्यों में एक था। राज्य का विकास करना उनके लिए एक भारी चुनौती थी जिसका मुकाबला उन्होंने अपनी कुशाग्र बुद्धि और प्रशासनिक कौशल से किया। कर्पूरी जी का संसदीय जीवन काफी लम्बा रहा,जो विरले ही किसी का रहा हो। वर्ष 1952 से मृत्योपरांत 9 बार बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वर्ष 1977 में समस्तीपुर से लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। अपने 38 वर्षों के संसदीय जीवन में उन्होंने 1967 में उप-मुख्यमंत्री, 1971 एवं 1977 में मुख्यमंत्री का पद सुशोभित किया। विधान सभा में उनका अधिकांश कार्यकाल विपक्ष में बैठने तथा विरोधी दल के नेता के रूप में व्यतीत हुआ तथा उनकी भूमिका अद्वितीय एवं अनुकरणीय रही। वे समाज के मार्ग-दर्शक के रूप में याद किए जाते रहेंगे। राज्य को उनसे काफी अपेक्षाएँ थीं यदि वे कुछ दिन और रहते तो बिहार का स्वरूप कुछ और होता। एक आदर्श सांसद, राजनेता , इन्हीं आदर्श गुणों से प्रेरित होकर जनता 2 और ही होता। एक आदर्श विधायक,सांसद, राजनेता , जननेता के लिए जो गुण होना चाहिए ,उन में कूट -कूट कर भरा था. इन्हीं आदर्श गुणों से प्रेरित होकर जनता ने उन्हें जननायक के रूप में सम्मानित किया था.
उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि राजनीति में रहते वे राजनीति के दलदल में नहीं धंसे। उनके सम्बंध बड़े व्यापक थे और उन सम्बंधों को हरा-भरा बनाए रखने के लिए वे सदा प्रयत्नशील रहते थे। उन्होंने अपनी कार्यशैली और त्याग से व्यापक जनसमर्थन प्राप्त किया था। राजनीतिक क्षितिज पर ऐसी विलक्षण प्रतिभा का प्रादुर्भाव बहुत कम ही हुआ है।

कर्पूरी जी गरीबों, दलितों, पिछड़ों एवं उपेक्षितों के पक्षधर थे एवं जीवनपर्यन्त अन्याय एवं अत्याचार का प्रतिकार करते हुए उनके उत्थान के लिए सजग प्रहरी का काम किया। उनकी कोई जात बिरादरी नहीं थी, कहीं भेद-भाव नहीं था, उनका आवास गरीबों का बसेरा था। यही वजह थी कि गरीबों और कमजोर वर्गों पर उनका व्यापक असर था।

लोग यह मानते थे कि कर्पूरी जी हमारे हैं और हम ही कर्पूरी जी के नजदीकी हैं। वे सम्पूर्ण जीवन सदन के अंदर एवं बाहर बिहार के दीन-हीन एवं शोषित जनता के लिए आवाज बुलंद करते रहे, संघर्ष करते रहे । उनका संसदीय जीवन उच्च कोटि का था। सदन में जिस किसी भी विषय पर विचार-विमर्श होता था उसको सुनने के लिए सदन तो शांत रहता ही था दर्शक दीर्घाएँ खचा-खच भरी रहती थीं। किसी भी विषय पर गंभीरतापूर्वक, धाराप्रवाह अपना विचार व्यक्त करते थे, उनके विचारों से पूरा सदन लाभान्वित होता था। इतना ही नहीं, सदन जब अपने को किंकर्तव्यविमूढ़ पाता था तो उस स्थिति में कर्पूरी जी ही सहायक सिद्ध होते थे।

उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व में काफी समन्वय था। वे जो सोचते थे, उसे कहते थे और उसे पूरा करते थे। वे कर्मयोगी पुरुष थे और आजीवन किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहे और न किसी का सहारा लिया। अपने श्रम और शक्ति के बल पर अपना जीवन व्यतीत किया। उनका रहन-सहन, आचार-विचार, व्यवहार, कृतित्व एवं व्यक्तित्व किसी तपस्वी से कम नहीं था। इस महान सपूत ने झोंपड़ी में जन्म लिया और झोंपड़ी छोड़कर दिनांक 17 फरवरी, 1988 को चिर-समाधि ले ली। ऐसे महान पुरुष को मेरा कोटि-कोटि नमन।
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