कहाँ हैं भारतीय संस्कृति के रक्षक

कहाँ हैं भारतीय संस्कृति के रक्षक
जे टी न्यूज़

आर एस एस अपने आप को सांस्कृतिक संगठन कहता है। भाजपा उसका राजनैतिक शाखा है।अर्थात भाजपा की नीति निर्माण में आर एस एस की भूमिका अहम होती है।भारत में नारी की पहचान और सम्मान देवी,दुर्गा,सरस्वती,लक्ष्मी के रुप में निहित है।यही इसकी सांस्कृतिक पहचान भी है।नारी – बेटी, पत्नी और माँ के रुप में हमारे समाज में सम्मानित हैं ।हमारी संस्कृति का एक हिस्सा ये भी है।ध्यान रहे मैं संस्कृति जैसे ब्यापक विषय पर कोई लेख नहीं लिख रहा हूँ।मेरा मकसद बस यह पूछना है; किस से पूछूँ ! मोहन भागवत जी से या नरेन्द्र मोदी जी से।कोई तो बताए कि एक रंगीला राजनैतिक माफिया के कुकर्मों पर पर्दा डालना किस भारतीय संस्कृति का हिस्सा है ? जी हाँ, आपने ठीक समझा मैं कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह की ही बात कर रहा हूँ।यह किसी से छीपी नहीं है कि पुलिस निरपेक्ष नहीं है।उसका हर क्रिया कलाप प्रशासनिक इशारे पर ही चलती है।अभी जो उसने चार्जशीट दाखिल की है उस परा ज़रा गौर फरमाईये — 354,354A,354D और 506(1)। धारा 354 : स्त्री की शालीनता को ठेस पहुंचाने के इरादे से उसपर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना। धारा 354 A: यौन उत्पीड़न। धारा 354 D: पीछा करना। धारा 506(1): आपराधिक धमकी।

इतने गम्भीर आरोपों के बावजूद भारतीय संस्कृति के रक्षक और भाजपा के रहनूओं की चुप्पी तो यही आभास करा रही है कि वोट की खातिर तिकरम, लफ्फाजी, झूठ और ठगी की गठरी आप माथे पर लेकर सारे देश में घूम रहे हैं।सांगठनिक स्तर पर भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं होना भाजपा की नैतिक और सांस्कृतिक पतनशीलता को ही दर्शाता है।भाजपा शासन काल में महिलाओं की इज्जत को जिस तरह बाजारु बना दिया गया है, आजादी के बाद ऐसा कभी भी नहीं देखा गया था।ईतिहास का यह काला अध्याय, आने वाली नस्लों के लिये थूकने की जगह के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। कवि पुष्यमित्र उपाध्याय ने किस काल खंड में वो कविता लिखी है जिसका मुखरा है – सुनो द्रौपदी अस्त्र उठालो लेकिन उसकी अंतिम पंक्तियाँ आज बिल्कुल सामयिक हैं।
कल तक केवल अंधा राजा
अब गुंगा – बहरा भी है
होंठ सिल दिये हैं जनता के
कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे
किसको क्या समझायेंगे
ध्यान रहे हमारा अस्त्र मजलूमों की लामबन्दी के सिवा और कुछ भी नहीं हो सकता है।अतः आईये इन सांस्कृतिक लूटेरों को सात समंदर पार भेजने का जुगार बैठाऐं।

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