मैं चाय

मैं चाय

दो शब्दो से निर्मित मैं,
दो शब्दो से बंधा मैं।
मेरी सुधि अखिल को आती,
सुबह होते मैं ही भाती ।

चाय है साहब मेरा नाम !
मुझसे अखिल की चाहत बढ़ती,
कई तरह के हैं मेरे नाम,
कई तरह के हैं मेरे काम।

मैं ना मिलती तो सर दर्द,
मिलते ही ऊर्जा हर पल।
मुझसे इश्क जब हो जाता तो,
मेरे बिना रहते नही किसी पल।

मुझे सब खूब जलाते हैं,
गैस चूल्हा पर चढ़ाते हैं।
दुकान वाले तो आग पर ,
हमें भी खूब जलाते हैं ।

युवा तो मेरी चुस्की लेते,
बूढ़े भी मुझसे इश्क हैं करते ।
बाबा रोज सुबह धोती कुर्ता में,
चुस्की लेने दुकान पर आते ।

आदि, शक्कर, दूध, इलायची,
मुझे बनाते हैं टेस्टी बेस्टी।
पानी में मसाले डालकर,
मुझे बनाते हैं सब खूब टेस्टी।

श्रमिक स्वामी सकल लेते मेरी चुस्की,
निखिल के थकान को दूर मैं करती।
सबको ऊर्जा मैं हूं देती,
फिर भी सब लेते मेरी फिरकी।

मेरे अंदर कैफिन है भाई,
इसीलिए मैं अखिल को भाती,
नींद, थकान को दूर भगाती।
संभवत इसलिए हूं मैं चाय,
चाह निखिल की,अखिल की मै चाय ।।

गोविन्द कुमार “भारद्वाज”
छतौना,नावकोठी,बेगुसराय
8678028055
बेगुसराय, बिहार

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