जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाया गया

जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाया गया

जे टी न्यूज, खगड़िया: नगर पंचायत परबत्ता अंतर्गत कन्हैयाचक ग्राम में दलित शोषित वंचित के मसीहा बिहार के जननायक पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का 100 जयंती मनाया गया!

सर्वप्रथम कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन राजद के अखिलेश्वर दास, वार्ड पार्षद प्रतिनिधि जिया लाल यादव ने तैल चित्र पर मलयार्पण एवं पुष्प अर्पित कर किये!

वही राजद के बरिष्ठ नेता अखिलेश्वर दास ने अपने बक्तव्य में कहा बिहार के झोपड़ी के लाल, सामाजिक न्याय के महानायक, महान समाजवादी, गरीबों के रहनुमा , पूर्व मुख्यमंत्री, जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की आज 100 वीं जयंती है।इस शुभ अवसर पर बहुजन समाज की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत-शत नमन!

24 जनवरी,1924 ई में उनका जन्म बहुजन समाज के एक गरीब पिछड़े नाई परिवार में हुआ था। बहुत ही आर्थिक मुश्किलों के बीच उनकी पढ़ाई हुई और फिर पढ़ाई छोड़कर वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े।उस समय बिहार स्वाधीनता आंदोलन के साथ अन्य कई तरह के आंदोलनों का केंद्र था। एक तरफ स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में किसानों का मुक्ति संघर्ष चल रहा था, तो दूसरी तरफ सदियों पूर्व खो गई सत्ता और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए पिछड़े वर्गों का त्रिवेणी संघ निर्माण का अभियान भी चल रहा था।

1934 ई में पटना में ही जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की गई थी और 1939 में इस सूबे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का भी जन्म हो गया था । मान्यवर कर्पूरी जी ने कांग्रेस के स्वाधीनता आंदोलन से न जुड़कर समाजवादी समझ वाली आज़ादी की लड़ाई से अपने को जोड़ लिया। उनके राजनैतिक संघर्ष का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना था।

आजादी के बाद सोशलिस्ट लोग कांग्रेस से अलग हो गए और कर्पूरी जी धीरे -धीरे समाजवादी पार्टी और आंदोलन के प्रमुख नेता बने।1967 की संयुक्त विधायक दल की सरकार में वह उपमुख्यमंत्री थे ।शिक्षा विभाग उनके पास था । उस वक़्त स्कूलों में छात्रों को हर महीने शुल्क देना होता था । इसके कारण गरीब छात्रों को अर्थाभाव में विवश होकर पढ़ाई छोड़ देना होता था। कर्पूरीजी ने फीस ख़त्म कर दी ।मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण किसान -मजदूर परिवार के हजारों बच्चों और लड़कियों की बीच में ही पढ़ाई टूट जाती थी और मैट्रिक फेल होने का उपहास वे सारी जिंदगी झेलते रहते थे ।कर्पूरीजी का मानना था अंग्रेजी के बिना भी कुछ क्षेत्रों में अच्छा किया जा सकता है । उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता ख़त्म कर दीं ।इसे बेईमान एवं धूर्त ब्राह्मणवादी लोगों ने इस तरह प्रचारित किया मानो उन्होंने अंग्रेजी की पढ़ाई ही बंद करवा दीं हो। अंग्रेजी की अनिवार्यता ख़त्म होने से शिक्षा का ज्यादा प्रसार हुआ और बहुजन समाज के बच्चे- बच्चियां भारी संख्या में मैट्रिक की परीक्षा पास करने लगे।

मान्यवर कर्पूरी जी 1971 ई में कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने तो सीमांत किसानों की जमीन जोतों से मालगुजारी खत्म कर दीं। 1977 में भी जब दूसरी बार वे मुख्यमंत्री हुए तो 1978ई में पिछड़े वर्गों को सरकारी सेवाओं में आरक्षण देने सम्बन्धी मुंगेरीलाल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं ।पूरे उत्तर भारत में इसी के साथ सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत हुई । इसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, किन्तु उन्होंने मंडल कमीशन के गठन और शिफारिशों की पृष्ठभूमि तैयार कर दीं।

वे कभी भी सामाजिक न्याय की अपनी लड़ाई से पीछे नहीं हटे और न उन्होंने इसके लिए कोई पश्चाताप किया। उन्होंने कभी भी अपने या अपने परिवार या किसी जाति विशेष के लाभ के लिए काम नहीं किए। अपने कर्तव्य पर पर अडिग रह कर गरीबों ,मजदूर -किसानों , महिलाओं और हाशिये के लोगों को मुख्यधारा में लाना ही उनकी राजनीति का मक़सद था । उनके आरक्षण के फैसले के खिलाफ सवर्ण जातियों के छात्र-युवाओं ने पूरे बिहार में आतंक फैलाना शुरू कर दिया और कालेज -विश्वविद्यालयों को जबरन बंद करने का ऐलान कर दिया। सवर्णों ने नारा दिया –

“पिछड़ी जाति कहां से आई,कर्पूरिया की माय बियाई।”

“कर्पूरी कर पूरा, गद्दी छोड़ कर धर उस्तुरा”।

सवर्णों द्वारा जगह जगह उन्हें अपमानित किया गया ,किन्तु गुदड़ी के लाल कर्पूरी जी ने कभी भी प्रतिहिंसा में कोई असंसदीय जबाव नहीं दिया।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनकी पूर्ण आस्था थी, इसलिए वे पूरी जिंदगी बहुजन समाज के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। उनका आकस्मिक निधन 17 फरवरी 1988ई में हुआ और बिहार ने अपने अद्वितीय लाल को खो दिया। लाखों लोगों ने उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित कईं।

बिहार में भूमि सुधार आयोग और कॉमन स्कूल सिस्टम के लिए कर्पूरी जी द्वारा गठित आयोग की सिफारिशें ठन्डे बस्ते में धरी -पड़ी हैं। अबतक पिछड़े -दलित समाज से अनेक मुख्यमंत्री बने हैं और बने हुए हैं पर किसी ने भी उसे लागू नहीं किया। आजतक किसी भी सरकार द्वारा न उसे लागू करने का प्रयास कर रही है या न उसे लागू करने के लिए कोई पिछड़े वर्ग की पार्टी आंदोलन कर रही है।

तो आइए,हम इन विषम परिस्थितियों में उनके सामाजिक न्याय के आन्दोलन को आगे बढ़ाए, उनके संकल्प को पूरा करें और समतामूलक लोकतांत्रिक-समाजवादी समाज बनाने के लिए संघर्ष करें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जगदेव प्रसाद के इस पैगाम को हमें भूलना नहीं है –

“सौ में नब्बे शोषित है, शोषितों ने ललकारा है

धन धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है” इन सभी बातो की चर्चा की गयी!!

वही कार्यक्रम में उपस्थित वार्ड पार्षद संजो देवी,संजीव यादव, किरण देवी, कन्हैया लाल गुप्ता, अजय यादव, मीरा देवी, रोहित यादव, अमित दास, बिहारी मंडल, भरत लाल यादव, विक्रांत कुमार, सुमन मंडल, संजय यादव, गुलो कुमार, पावो यादव, फुटूश यादव आदि मौजूद थे।

 

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