समस्तीपुर (सु) लोकसभा क्षेत्र: बाढ सहित समस्या अनेक मगर चुनावी मुद्दा कोई नहीं, मुद्दों पर नहीं होता समस्तीपुर में मतदान
समस्तीपुर (सु) लोकसभा क्षेत्र: बाढ सहित समस्या अनेक मगर चुनावी मुद्दा कोई नहीं, मुद्दों पर नहीं होता समस्तीपुर में मतदान
राजा, एस कुमार।
समस्तीपुर। आपातकाल से लेकर 2014 आम चुनाव से पुर्व तक समाजवादियों का अभेद्य दुर्ग समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र फिलहाल एनडीए का मजबूत किला बनता जा रहा है। इस धरती की खासियत यह है कि यहां के भोले मतदाताओं ने कभी किसी खास मुद्दे को लेकर मतदान किया ही नहीं। दरअसल समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र के मासूम व भोले मतदाताओं का मिजाज भी मस्त है तभी तो ये समस्तीपुरी हैं। इन केलिए किसी मुद्दे का कोई महत्व नहीं है न ही किसी नेता के काम से कोई मतलब। जिस पर दिल आ गया उसपर मेहरबान हुए तो हो गये। इनके भोलेपन का आलम यह है कि नेताओं के लोक लुभावन वादों में ये आसानी से ढल जाते हैं। यह वह धरती है जहां बलिराम भगत, और देष रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर जैसे दिग्गज नेताओं तक को हार का स्वाद चखना पडा है वहींे सिर्फ चुनाव के दिनों में नजर आने के बावजूद अजीत मेहता जैसे नेता चार बार जीत कर संसद पहुंच चुके हैं। 2008 में सुरक्षित घोषित होने के बाद 2009 में जदयू के महेष्वर हजारी तथा 2014 और 2019 के चुनाव में दलित सेना के अध्यक्ष स्मृति शेष रामचन्द्र पासवान यहां से जीते, उनके निधन के बाद 2019 के उपचुनाव में उनके पुत्र प्रिंस राज ने जीत हासिल एनडीए का परचम थामे रखा। बताते चलें कि यह लोकसभा क्षेत्र कृषि प्रधान है। जिसके अधिकांष क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न, दलहन, तेलहन के अलावा विषेष रूप से सब्जी और मसालों की खेती होती है।
बूढ़ी गंडक, बागमती, गंगा, कोसी, कमला और बलान नदियों से घिरे इस लोकसभा क्षेत्र में बाढ़ सबसे बड़ी समस्या है। जिससे हर वर्ष करोडों की क्षति होती है। मगर आष्चर्यजनक तरीके से यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। हां हर चुनाव में बाढ से निजात दिलाने के वायदे जरूर किए जाते रहे। शैक्षिणक रूप से पिछडे समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण के हिसाब से यहां अनुसूचित जाति, कुशवाहा और यादव जाति की आबादी अपेक्षाकृत ज्यादा है। हालांकि, अति पिछडे, अगड़ी जाति, और मुसलमानों की संख्या भी कम नहीं हैं। इन पर सभी राजनीतिक दलों के नेता इन्हें साधने के लिए नये नये तरीके निकालते रहते हैं। जबकि इस क्षेत्र में समस्याओं की कमी नहीं। बाढ के अलावा बाढ एवं बारिष के पानी से जिले के कई इलाके महीनेा तक जल मग्न रहते हैं, कई इलाकेां में जल जमाव से खेती चैपट हो जाती है, मगर ये भी कभी चुनावी मुद्दे नहीं बन सके। रोजगार के नाम पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, नाबार्ड, एवं खादी ग्रामोद्योग एवं दर्जनाधिक एनजीओ सक्रिय हैं, जो विभिन्न योजनाओं के माध्यम से स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराते हैं, तथा रोजगार उत्पादक उद्योग के नाम पर हसनपुर चीनी मिल और कल्याणपुर रामेश्वर जूट मिल है। हसनपुर स्थित चीनी मिल तो नियमित रूप से संचालित है, लेकिन जूट मिल, मिल मालिकों व सांसद-विधायक के मिलीभगत से कभी बंद होता है तो कभी चलता है। चुनावी माहौल में अगर कभी खुलता भी है तो दो तीन माह बाद आग लग जाती है और उसे फिर बंद कर दिया जाता है। इसके अलावा शहर स्थित एक अन्य चीनी मिल वर्षो पुर्व बंद हुआ तो सिर्फ यादों में सिमट कर रह गया तो एक पेपर मिल भी समस्तीपुर में कभी था यह तो नई पीढी को मालूम भी नहीं। बेरोजगारी, महंगाई, चिकित्सकीय सुविधा, किसानों की समस्या जैसे मुद्दे तो कभी यहां चुनावी मुद्दे नहीं बने। यहां केंद्रीय मुद्दों पर ही नेता चुनाव जीतते रहे है।
समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र के अब तक के सांसद
1952ः सत्य नारायण सिन्हा, कांग्रेस
1957ः सत्य नारायण सिन्हा, कांग्रेस
1962ः सत्य नारायण सिन्हा, कांग्रेस
1962ः यमुना प्रसाद मंडल, कांग्रेस
1967ः यमुना प्रसाद मंडल, कांग्रेस
1971ः यमुना प्रसाद मंडल, कांग्रेस
1977ः कर्पूरी ठाकुर, जनता पार्टी
1978ः उपचुनावः अजीत कुमार मेहता, जनता पार्टी
1980ः अजीत कुमार मेहता, जनता पार्टी (एस)
1984ः रामदेव राय, कांग्रेस
1989ः मंजय लाल कुशवाहा, जनता दल
1991ः मंजय लाल, जनता दल
1996ः अजीत कुमार मेहता, जनता दल
1998ः अजीत कुमार मेहता, राजद
1999ः संजय लाल, जदयू
2004ः आलोक कुमार मेहता, राजद
2009ः महेश्वर हजारी, जदयू
2014ः राम चंद्र पासवान, लोजपा
2019ः राम चंद्र पासवान, लोजपा
2019ः राम चंद्र पासवान के निधन के बाद उप चुनाव में उनके बेटे प्रिंस राज (लोजपा) ने जीत हासिल की।