*महामारी और अर्थव्यवस्था*

*"गांधीजी का चरखा व कुटीर उद्योग" और "डॉ लोहिया के छोटी मशीन के सिद्धांत"*

*महामारी और अर्थव्यवस्था*

*सन्दर्भ:*
*”गांधीजी का चरखा व कुटीर उद्योग” और “डॉ लोहिया के छोटी मशीन के सिद्धांत”*
ओम प्रकाश

कोरोना की महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है ।औद्योगिक उत्पादन बंद हो रहा है करोड़ों मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं उन्हें दयनीय अवस्था में कार्य स्थल से अपने घरों के लिये पलायन करना पड़ रहा है । असंगठित क्षेत्र के दैनिक वेतनभोगी मजदूरों को बीमारी से ज्यादा भूख की चिंता है । छोटे उद्योगपति और व्यापारी बर्बादी के कगार पर है ।

*आखिर क्यों?*

*इसके लिये केवल महामारी जिम्मेदार है या हमारी पूंजीवादी उत्पादन और वितरण व्ववस्था ?*

*ये सब केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के दुष्परिणाम हैं । केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था किसी भी महामारी या गम्भीर प्राकृतिक आपदा का मुकाबला नहीं कर सकती । इसका समाधान है समाजवादी लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ।*

यदि हम भारत की बात करें तो हम पश्चिम के पूंजीवादी आर्थिक ढांचे की ओर अंधे होकर दौड़ लगा रहे हैं और हमारी अर्थव्यवस्था उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर वैश्विक पूंजीवाद के शिकंजे में फस गई है । हमारी अर्थव्यवस्था किसी भी महामारी , प्राकृतिक आपदा या वैश्विक मंदी के संकट को झेलने में असमर्थ है।

हमारे देश का सामाजिक और आर्थिक ढांचा , हमारी कृषि व्यवस्था एक अलग तरह की अर्थव्यवस्था की मांग करते थे जिसे हमने नकार दिया ।

*यदि हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषि और कृषि आधारित औद्योगिक उत्पादन “गांधी जी के चरखा और कुटीर उद्योग” तथा “डा. लोहिया के छोटी मशीन के सिद्धांत” पर आधारित होती तो आज हम जिस तरह की बर्बादी की ओर बढ़ रहे हैं उससे बच जाते ।*

*हम पिछले चार दशकों से धीरे-धीरे वैश्वीकरण और उदारीकरण के नाम परदेसी और “विदेशी याराना पूंजीवाद” के शिकंजे में कस गये हैं ।*

भारत जिस तरह के भ्रष्टाचार , पूंजीपतियों के द्वारा बैंकों की लूट , नोटबंदी और जीएसटी तथा कोरोना की महामारी के दंश को झेल रहा है वह सब केंद्रीकृत पूंजीवादी उत्पादन और वितरण का परिणाम है ।

यदि हमने डा.लोहिया के समाजवादी ढांचे को अपनाया होता तो भारत को ऐसा गम्भीर आर्थिक संकट झेलना ही नहीं पड़ता ।
*गांधी जी का कुटीर उद्योग और उनका चर्खा एक सिद्धांत था । डॉक्टर लोहिया ने उसी का विकसित रूप “छोटी मशीन” के सिद्धांत के रूप में सामने रखा था ।*

*यदि भारत और शेष विश्व के राजनेता और अर्थशास्त्री इन सिद्धांतों का उपहास उड़ाने के बजाय हमारी घरेलू उत्पादन और वितरण व्यवस्था में इनको लागू करते तो यह समाजवादी आर्थिक विकेंद्रीकरण का एक ऐसा आदर्श रूप होता । जिसमें स्थानीय आर्थिक स्वायत्तता प्राप्त होती , स्थानीय सत्ता प्राप्त होती और कृषक तथा श्रमिक का शोषण रुकता । हमारी पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था छिन्न भिन्न नहीं होती । हम एक ऐसा आर्थिक ढांचा खड़ा कर लेते जो किसी भी आपदा का डट कर मुकाबला करने में समर्थ होता ।*

धीरेंद्र कार्यी
मंत्री
समस्तीपुर अनुमंडलीय खादी ग्रामोद्योग, पूसा रोड वैनी

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