कांग्रेस के वोटबैंक पर राज कर रही यूपी की मायावती
तो आखिर क्यों न दिखाएं गुस्सा?
प्रियंका लगाएंगी सेंध तो दर्द होगा ही
लॉकडाउन में 1000 की बस भेजकर भी सियासत तेज
आर.के .रॉय/संजीव मिश्रा
*नई दिल्ली* : बसपा प्रमुख मायावती का कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पर गुस्सा बदस्तूर जारी है। मायावती का यह गुस्सा गरीब मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के क्रम में उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक हजार बसों की मदद देने के बाद काफी बढ़ गया।
यह प्रस्ताव कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने दिया था। प्रस्ताव उ.प्र. सरकार ने स्वीकार किया, लेकिन तीन दिन के हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद बसें खाली लौट गई।
इसके बाद से बसपा प्रमुख मायावती का पारा सातवें आसमान पर है।
इधर गरीब मजदूरों के साथ राहुल गांधी की चर्चा का भी वीडियो खूब वायरल हुआ। इसने गुस्से को और भड़का दिया। अब मायावती सीधे तौर पर समस्याओं के लिए कांग्रेस और उसकी सरकारों को कोस रही हैं। इसको लेकर कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता राजीव शुक्ला, आराधना मिश्रा, पंकज मलिक और अजय राय ने सफाई दी है।
आम तौर पर विपक्ष, सत्ता पक्ष के कामकाज, तौर तरीके, नीतियों का विरोध उसके ध्यानाकर्षण के लिए करता है। विपक्ष जनता के मुद्दे को सामने रखकर सत्ता पक्ष की आंखे खोलने का प्रयास करता है। उ.प्र. में सत्ता में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार है। इसके पहले समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे।
अखिलेश से पहले मायावती खुद सत्ता में थी। 1989 के बाद से अब तक राज्य में कांग्रेस सत्ता से बाहर है, लेकिन मायावती ने अपने निशाने पर भाजपा की योगी आदित्य नाथ सरकार को लेने के बजाय कांग्रेस को ले लिया। जबकि उ.प्र. में बसपा भी समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के साथ प्रमुख विरोधी दल है।
ऐसे में एक विपक्षी दल दूसरे विपक्षी दल पर अप्रवासी गरीब मजदूरों, छात्रों की समस्या को लोकर आरोप लगाए तो इसे मुहावरे में उल्टी गंगा बहाना ही कहेंगे। बसपा प्रमुख मायावती ऐसा करती रहती हैं। वह भाजपा की योगी आदित्यनाथ की सरकार पर हमला बोलने के बजाय कांग्रेस या फिर कभी समाजवादी पार्टी पर हमला बोल देती हैं।
वोट बैंक कांग्रेस का तो हमला किस पर बोलें?
दरअसल मायावती की मजबूरी है। मायावती की पार्टी 1990 के दशक में सत्ता में पहली बार आने में सफल रही थी। कांग्रेस का मजबूत दलित वोट बैंक खिसक कर बसपा के साथ आ गया था। मुलायम सिंह को बसपा ने समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया था।
इसके बाद बसपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कभी कांग्रेस, कभी भाजपा, कभी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके मजहूत होती रही। दलित के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग का कुछ हिस्सा, मुस्लिम और न्य कांग्रेस पार्टी का पुराना जनाधार जुड़ता चला गया। 2007 में बसपा ने ब्राह्मण मतदाताओं को अपने साथ जोड़कर कांग्रेस की कमर ही तोड़ दी। इससे भाजपा को भी झटका लगा था।
इधर, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उ.प्र. काफी सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बसपा की मायावती की तुलना में कई गुणा ज्यादा है। प्रियंका न केवल ज्वलंत मुद्दे उठा रही हैं, बल्कि ट्वीट करके, जमीनी स्तर पर काम करके सरकार से लगातार सवाल कर रही हैं। इसी क्रम में प्रियंका गांधी वाड्रा ने उ.प्र. के गरीब प्रवासी मजदूरों का मुद्दा उठाया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के जरिए प्रवासी मजदूरों को खाना बटवाने, उनके दर्द को बांटने के अभियान को धार दी।
सड़क, हाइवे पर हजारों किमी पैदल चलकर कष्ट झेल रहे मजदूरों को राहत देने का मुद्दा उठाया। 1000 बसें उपलब्ध कराने का प्रस्ताव राज्य सरकार को दे दिया। यह बसपा प्रमुख मायावती को अखर गया, क्योंकि अधिकांश प्रवासी गरीब मजदूर दलित, मुस्लिम, अन्य पिछड़े वर्ग से आते हैं। यह बसपा का मुख्य तौर पर वोट बैंक है।
मायावती के दु:ख दर्द को ऐसे समझें
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशें न लागू की होती तो, विपक्ष के लिए कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालना मुश्किल था। कह सकते हैं कि पूरे जनता दल परिवार को उ.प्र., बिहार में आधार मिलना ही मुश्किल था। बसपा के लिए भी उ.प्र. सरकार और पूर्ण बहुमत की सरकार भी असंभव थी।
वीपी सिंह का यह मास्टर स्ट्रोक देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक ढांचे में बड़ा बदलाव लेकर आया। इसके साथ तेज हुए राम मंदिर आंदोलन, कमंडल अभियान ने पूरी दिशा ही बदल कर रख दी। केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना कांग्रेस के लिए जहां दिवा स्वप्न बन चुका है, वहीं पुराने वोट बैंक की चाहत में कांग्रेस की कोशिशें अन्य दलों को परेशान कर देती है।