पर्यावरण शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की बात कब मानेगी बिहार सरकार

पर्यावरण शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की बात कब मानेगी बिहार सरकार

अपीलीय प्राधिकार के आदेश को नहीं मान रही है नियोजन इकाई: रत्नेश्वरी शर्मा
जेटी न्यूज

 

डी एन कुशवाहा

मोतिहारी पूर्वी चंपारण- बिहार में बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ते पर्यावरण संतुलन की डरावनी खबरों के बीच सुप्रीम कोर्ट का एक देश बार-बार याद आता है जो 22 नवंबर 1991 का है। एम सी मेहता की जनहित याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने निर्देश दिया था कि प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई पृथक और अनिवार्य विषय के रूप में शुरू कराई जाए, पर इस निर्देश का पालन आंशिक रूप से ही हो सका है। उक्त बातें पर्यावरणविद सह भाजपा नेता रत्नेश्वरी शर्मा ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से गुरुवार को कही। साथ ही उन्होंने कहा कि इस निर्देश की मंशा यह थी कि कम से कम नई पीढ़ी तो पर्यावरण को लेकर जागरूक होगी। मौजूदा और पिछली पीढ़ियों ने तो पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ने के लिए जो कुछ किए हैं उसके कुपरिणाम तो हम भुगत ही रहे हैं, पर 1991 के बाद संभवत इस देश की किसी भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय-निर्देश को अक्षर से लागू नहीं होने दिया। जबकि वर्तमान बिहार सरकार के द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं जनता पर अरबों रुपए प्रतिवर्ष खर्च किए जा रहे हैं। जिसमें जल जीवन हरियाली परियोजना भी शामिल है। शिक्षा विभाग बिहार सरकार के संकल्प संख्या 122 दिनांक 7 -4- 2005 के द्वारा पर्यावरण को माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अंक अनिवार्य विषय के रूप में लागू किया गया। 2006 में उक्त अधिसूचना के तहत पर्यावरण विज्ञान में नियोजन हेतु आवेदन पत्र भी आमंत्रित किए गए। परंतु किसी ने आरोप लगाया था कि भूगोल लाॅबी सक्रिय होकर इसे दृष्टि छाया में डाल दिया। पूर्वी चंपारण जिले में पर्यावरण विषय के आवेदकों ने 2006 के नियोजन नियमावली के आलोक में पर्यावरण विज्ञान विषय में नियोजन नहीं किए जाने पर माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया। जिसमें सुझाव दिया गया कि जिला अपीलीय प्राधिकार में वाद दायर किया जाए। जिसके आलोक में 2007 से ही मुकदमा लड़ा गया। अपीलीय प्राधिकार के आदेश पत्रांक 207 दिनांक 11-12- 2019 एवं जिला नियोजन इकाई के अध्यक्ष सह जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती प्रियंका जयसवाल ने अपीलीय प्राधिकार के आदेश का अक्षरस: अनुपालन करने का आदेश जारी किया है लेकिन अभी तक तीनों आवेदक सड़क पर दौड़ लगा रहे हैं। जिनमें से एक तो 2006 से ही अवैतनिक सेवा भी दे रहे हैं और विभाग द्वारा अपीलीय प्राधिकार के आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।

शिक्षा विभाग की अधिसूचना संख्या 441 दिनांक 29 -06- 2006 के द्वारा जब पर्यावरण को सामाजिक विज्ञान विषय के साथ क्लबिंग कर दिया गया, परंतु पर्यावरण विज्ञान में नियुक्ति पर कहीं से अब तक रोक नहीं लगाया गया। फिर भी 2007 से आज तक पर्यावरण विज्ञान में एक भी नियुक्ति नहीं की गई। इस बाबत पर्यावरणविद सह भाजपा नेता रत्नेश्वरी शर्मा (पूर्व प्रत्याशी सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र) ने बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री माननीय विजय कुमार चौधरी जी को पत्र लिखकर जानना चाहा है कि क्या पर्यावरण विषय समाप्त कर दिया गया है ? या जिला अपीलीय प्राधिकार को समाप्त कर दिया गया है? जो प्राधिकार के द्वारा 2006 नियोजन नियमावली के आलोक में नियोजन का आदेश- निर्देश देने पर भी पूर्वी चंपारण के नियोजन इकाई द्वारा नियोजन नहीं किया जा रहा है। श्री शर्मा ने मांग की है कि यदि छात्र-छात्राओं को पर्यावरण विषय को अनिवार्य पृथक विषय के रूप में पढ़ाया जाए तो इन विद्यार्थियों के परिजनों को भी जागरूक करने में मदद मिलेगी। आज की पीढ़ी तो कम ही जागरूक है, यदि आज शैक्षणिक संस्थाओं में पर्यावरण की पढ़ाई होगी तो अगली पीढ़ी भी सचेत होंगी और जागरूक भी।

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