आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह मुंशी प्रेमचंद को उनके जन्मदिन पर किया गया याद

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह मुंशी प्रेमचंद को उनके जन्मदिन पर किया गया याद
जेटी न्यूज

 

अरेराज पूर्वी चंपारण –
आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह मुंशी प्रेमचंद
प्रेमचंद को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। हिंदी कहानी, उपन्यास में प्रेमचंद के योगदान के बारे में कुछ लिखने की जरूरत नहीं है। या यूं कहें तो मुंशी प्रेमचंद के बारे में लिखना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है। मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की रचना इस तरह से की कि हर व्यक्ति उनकी रचनाओं से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुजर गई, लेकिन साहित्य में प्रेमचंद का आकर्षण कभी कम नहीं हुआ। आज भी प्रेमचंद की रचना उतनी ही प्रासंगिक लगती है, जितनी वह पहले थी।मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को आनंदी देवी और मुंशी अजायबराय के घर उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था। वे लमही में डाकमुंशी थे। बचपन में उनका नाम धनपत राय था। उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू और फारसी माध्यम से हुआ। बचपन से ही उन्हें पढ़ने का शौक लग गया था। 13 साल की छोटी सी उम्र में ही उन्‍होंने उर्दू के कई मशहूर रचनाकारों को पढ़ लिया था‌।1989 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई थी, लेकिन उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी। 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास विषय से उन्होंने इंटर पास किया और 1919 में बी.ए.पास करने के बाद शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गई।बाल्यावस्था में ही उनके माता-पिता का साथ छूट गया था। वे जब मात्र सात साल के थे तो उनकी माता चल बसी और चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिताजी का देहांत हो गया था। इस तरह बाल्यावस्था से ही उनका जीवन संघर्षों में बीता। उनकी पहली शादी किन्हीं कारणवश सफल नहीं हो सकी थी। वे आर्य समाज के पक्के समर्थक थे, जो उस समय समाज-सुधार के लिए बढ़-चढ़कर कार्य कर रहा था। आर्य समाज के कार्यों से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने 1906 ई. में अपनी दूसरी शादी एक बाल विधवा शिवरानी देवी से की और इससे उन्हें तीन संतान – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी हुई।1901 ई. से ही प्रेमचंद ने लिखने की शुरुआत कर दी थी, लेकिन उनकी पहली हिंदी कहानी 1915 में सरस्वती पत्रिका के दिसंबर अंक में ‘सौत’ नाम से प्रकाशित हुई थी।

 


1936 में ‘कफन’ नाम से अंतिम कहानी प्रकाशित हुई थी। प्रेमचंद को हिंदी साहित्य में यथार्थवादी रचनाओं के शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में दलित साहित्य से लेकर नारी साहित्य पर प्रमुखता से लिखा।कहा जाता है कि प्रेमचंद ने अपने मामा को व्यंगात्मक तौर पर संबोधित करते हुए पहली रचना लिखी थी, लेकिन यह आज उपलब्ध नहीं है। अभी उपलब्ध रचनाओं में ‘असरारे मआबिद’ उर्दू उपन्यास को उनके पहले उपन्यास का दर्जा प्राप्त है। इनका दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्बा व हमसवाब’ है इसे 1907 में ‘प्रेमा’ नाम से हिंदी में प्रकाशित किया गया था। इसके बाद 1908 में ‘सोजे-वतन’ नाम का पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। ‘सोजे-वतन’ का हिंदी में अर्थ ‘देश का दर्द’ होता है। यह कहानी संग्रह राष्ट्रभावना से ओत-प्रोत था और इसे देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने न सिर्फ इसके प्रकाशन पर रोक लगा दी, बल्कि आगे से न लिखने की चेतावनी भी जारी कर दी। इसे देखते हुए उन्होंने नाम बदलकर अपना लेखन जारी रखा।पहली बार प्रेमचंद नाम से ‘जमाना’ पत्रिका में उन्होंने बड़े घर की बेटी कहानी लिखी। यह पत्रिका के 1910 के दिसंबर अंक में प्रकाशित हुई थी। 1915 से उन्होंने हिंदी में लेखन की शुरुआत की। इससे पहले वे ज्यादातर उर्दू भाषा में लिखा करते थे। 1918 में उन्होंने ‘सेवासदन’ को लिखना शुरू किया था। देश-विदेश की कई भाषाओं में प्रेमचंद की रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। ‘गोदान’ उपन्यास की गिनती कालजयी रचनाओं में की जाती है।
कन्हैयालाल मुंशी के नाम से प्रेमचंद के नाम के आगे जुड़ा था। साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ कन्हैयालाल मुंशी और प्रेमचंद के सह-संपादन में निकलता था। इसकी प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी के पूरे नाम के स्थान पर मुंशी लिखा जाता था और मुंशी के बाद कॉमा लगाकर प्रेमचंद लिखा होता था। पाठकों ने भ्रम से मुंशी और प्रेमचंद को एक ही समझ लिया और इस तरह से प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी शब्द जुड़ गया।प्रेमचंद ने साहित्य में उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय से लेकर संस्मरण कई रूपों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपने जीवनकाल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि से नवाजा जा चुका था। उन्होंने 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 3 नाटक और 7 बाल-पुस्तकें लिखने के साथ ही 10 अनुवाद भी लिखे थे।
‘सेवासदन’ को उन्होंने पहले उर्दू में ‘बाजार-ए-हुस्न’ नाम से लिखा था, लेकिन पहले हिंदी में ‘सेवासदन’ को प्रकाशित किया। इस उपन्यास में एक नारी के वेश्या बनने की कहानी दर्ज है। उनके अन्य चर्चित उपन्यासों में प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि और गोदान का नाम से प्रमुखता से लिया जाता है।प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में – ‘पंच परमेश्‍वर’,’गुल्‍ली डंडा’,’दो बैलों की कथा’,’ईदगाह’,’बडे भाई साहब’,’पूस की रात’,’कफन’,’ठाकुर का कुंआ’,’सद्गति’, ‘बूढी काकी’,’तावान’,’विध्‍वंस’,’दूध का दाम’,’मंत्र’ आदि प्रमुख है।
प्रेमंचद के कुल नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए-‘सप्‍त सरोज’,’नवनिधि’,’प्रेम-पूर्णिमा’,’प्रेम-पचीसी’,’प्रेम-प्रतिमा’,’प्रेम-द्वादशी’,’समरयात्रा’,’मानसरोवर’- भाग एक व दो, और ‘कफन’।
प्रेमचंद ने कई नाटक भी लिखें, लेकिन जिस तरह से उनकी लिखी अन्य रचनाओं को लोगों ने सराहा उतनी सराहना नाट्य-लेखन को नहीं मिली। उनके लिखे प्रमुख नाटकों में ‘संग्राम'(1923),’कर्बला'(1924), और ‘प्रेम की वेदी'(1933) के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं।
हंस’,’माधुरी’,’जागरण’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन तो किया ही साथ में उस समय की साहित्यिक पत्रिकाओं ‘चांद’,’मर्यादा’,’स्‍वदेश’ आदि में अपनी साहित्यिक व सामाजिक चिंताओं को लेखों या निबंधों के माध्‍यम से प्रमुखता से आवाज देने का काम किया साहित्यकार मनोहर मिश्र ने।

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