पटना पुस्तक मेला में ” स्क्रीन टाइम बनाम किताब” विषय पर जनसंवाद का आयोजन

पटना: पुस्तक मेला में ” स्क्रीन टाइम बनाम किताब” विषय पर जनसंवाद का आयोजन किया गया जिसमे प्रभात रंजन, भावना शेखर और सुशील कुमार ने अपने विचार व्यक्त किया। सबसे पहले प्रभात रंजन जो एक लेखक और ब्लॉगर हैं, इन्होंने स्क्रीन टाइम के प्रति अपना समर्थन करते हुए कहा कि स्क्रीन टाइम ने विमुख होते बच्चों को भी वापस एकत्रित किया है। उन्होंने कहा कि स्क्रीन टाइम पढ़ने और लिखने का जुनून कम नही करती। अगली वक्ता भावना शेखर जो ए. एन. कॉलेज में हिंदी की प्राध्यापिका हैं, इन्होंने किताब और स्क्रीन को समान स्थान दिया है और कहा कि स्क्रीन से पढ़ना गलत नहीं बल्कि, हम क्या पढ़ रहें यह आवश्यक है परंतु किताब का पर्याय मिलना मुश्किल है। उन्होंने कहा की आज पुस्तकों के ऑनलाइन आ जाने से उनकी उपलब्धता बढ़ गई है और हम एक साथ कई किताबों का संग्रह अपने साथ ले कर चल सकते है लेकिन किताबे हमे पढ़ने के लिए आमंत्रित करती है जो की किंडल या फोन में रखी किताबों की ओर आकर्षण कम होता है। इन्होंने बच्चों को जीवनी पढ़ने के लिए प्रेरित भी किया। उन्होंने अंत में दिवंगत नरेंद्र कोहली को स्मरण करते हुए उनको नमन भी किया। अंतिम वक्ता के रूप में आईपीएस सुशील कुमार, साइबर क्राइम विभाग में कार्यशील हैं। उन्होंने इस वर्ष के पुस्तक मेला की थीम “मोबाइल छोड़िए किताब पढ़िए” की सराहना की। उन्होंने सूचित किया की स्क्रीन टाइम की शुरुआत 1897 में हुआ और लगभग 90% लोग इस बात से चिंतित हैं की बच्चों की स्क्रीन टाइम दिन पर दिन बढ़ते जा रही है। उन्होंने ऑनलाइन गेम्स, सोशल मीडिया को स्क्रीन टाइम का मुख्य कारण बताया। सबदर हाजमी के कविता की कुछ पंक्तियों के साथ अपने भाषण को विराम दिया। कार्यक्रम का संचालन नीलाद्री द्वारा हुआ। संचालिका ने भी मोबाइल पर खेले जाने वाले गेम्स के दुष्प्रभाव की बात कही।

सी आर डी पटना पुस्तक मेला के सुचारू रूप से संचालन में कई लोगों का मुख्य रूप से योगदान रहा है। ये लोग सदैव धन्यवाद के पात्र बने रहेंगे। उनमें से एक हैं स्वर्गीय संजीव बोस जो भारत में प्रमुख प्रकाशन “भारती भवन पब्लिशर्स” के ओनर थे। इस प्रकाशन की शुरुआत बिहार से हुई थी और आज इसका पूरे देश में प्रसिद्ध नाम है। दूसरे हैं स्वर्गीय सैलेश्वर सतिप्रसाद जो पटना पुस्तक मेला के सलाहकार समिति के सदस्य थें। वह पटना विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत थे। ये एक शिक्षा विद भी थें। इनमें एक और नाम है स्वर्गीय धनंजय पुरकैत (मां त्रिपुरा डेकोरेटर्स, कोलकाता) जिनके द्वारा मेला के उत्तम सजावट का कार्य किया जाता था। इन सभी के योगदान के लिए मेला परिसर में उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया।

शब्द साक्षी कार्य के अंतर्गत संतोष दीक्षित और अंकित के बीच बात चीत हुई। कार्यक्रम में संतोष दीक्षित अपने उपन्यासों में व्यंग और ह्यूमर के होने को बात कही है। उन्होंने कहा की बहुत कम लोग ही अपने सपनो को अपना प्रोफेशन बना पाते है। आज विकास का संबंध सड़के बनवाने और इमारत खड़ी करने से होता है, बल्कि चीज़े बनवाने से कुछ नही होगा लोगों को अपनी विचार धारा भी बदलनी होगी।

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