*करोना से लड़ने में बिहार सरकार की ढीली रवैया और आर्थिक समस्याएं- कुमार निशांत*

*करोना से लड़ने में बिहार सरकार की ढीली रवैया और आर्थिक समस्याएं- कुमार निशांत*

ठाकुर वरुण कुमार।

पटना::- हाल के दिनों में एक नए वायरस के रूप में ‘एन कोव 19’ जिसे आमतौर पर कोविड -19 के रूप में जाना जाता है, दुनिया भर में भयावह स्थिति उत्पन्न कर दिया है। ‘एन-सीओवी -2019’ चीनी वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया नाम है।

रिपोर्टों के अनुसार, वायरस एन-सीओवी -2019 की पहचान सबसे पहले वर्ष 2019 के अंतिम सप्ताह में चीन के वुहान में एक मानव के संक्रमित होने के बाद की गई थी। इसी कोरोनोवायरस परिवार के वायरस सार्स ने 2002 -03 में आक्रामक रूप धारण कर लिया था। विभिन्न जगहों पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, इस वायरस ने पूरे विश्व में आठ हजार से अधिक लोगों को संक्रमित किया था और लगभग 800 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

इस करोना महामारी ने पूरी दुनिया की गतिविधियों, आमजन के जीवन को बाधित कर दिया और भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आवश्यक तैयारी किए बिना इक्कीस दिनों (तीन सप्ताह) के लॉकडाउन की घोषणा के बाद आम लोगों के लिए बहुत समस्या पैदा हो गयी। विशेष रूप से प्रवासी श्रमिक, गरीब, दैनिक मजदूर, संगठित और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले कामगार, मनरेगा श्रमिक, घरेलू कामों में लगी महिलाओं, ऑटो-टैक्सी चालक और शोषित-वंचित जन के लिए संकट गहरा गया है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बिहार से एक बड़ी संख्या में मजदूर हर वर्ष प्रवास करते हैं। पिछले दो दशकों के दौरान उत्पन्न कृषि संकट के कारण भी इसकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इसमें सभी आयु वर्ग के लोग शामिल हैं। कुछ 18 साल से कम उम्र के भी हैं और ज्यादातर 18 से 40 साल के बीच के हैं।

लॉकडाउन की घोषणा के ठीक बाद सभी प्रकार के उद्योगों, कारखानों, दुकानों को बंद कर दिया गया और उसके बाद कारखानों के मालिकों ने उनसे कहा ‘अब यहाँ कोई काम नहीं है, अपने-अपने राज्यों को चले जाओ’। उन्हें उनका बकाया मजदूरी दिए बगैर अपने घरों को लौटने का आदेश दे दिया गया जबकि रेलवे, बसें इत्यादि परिवहन के सभी साधन बंद हो चुके थे। उनके पास बचे पैसे भी अब खत्म हो रहे थे, राशन भी खत्म हो गया।

इन परिस्थितियों में, उनके पास अपने घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसलिए उन्होंने हजारों मील से अधिक पैदल यात्रा करना आरंभ कर दिया। उनमें से कुछ की रास्ते में ही मौत हो गई।

चार-पांच दिनों बाद बहुत अधिक हंगामा होने के बाद, सरकारों ने सड़क परिवहन की व्यवस्था करना शुरू किया लेकिन वह नाकाफी था।

सरकार द्वारा हेल्पलाइन नंबर लॉन्च किए गए, लेकिन वे काम नहीं कर रहे थे, नंबर मिलाने पर हमेशा ‘अनरीचेबल’ या ‘लाइन व्यस्त’ आता था।
इस बीच, विभिन्न राजनीतिक दलों, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), किसान, छात्र, युवा और अन्य सामाजिक संगठनों ने भी प्रवासी श्रमिकों की समस्या को हल करने के लिए अपने हेल्पलाइन नंबर जारी किए।

सी०पी०आई० (एम) बिहार राज्य कमिटी की ओर से राज्य सचिव अवधेश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस महामारी से एक साथ लड़ने के संबंध में कई पत्र लिखे और साथ ही उन्होंने आम लोगों, प्रवासी श्रमिकों और बंद से उत्पन्न समस्याओं को भी सामने रखा और लॉकडाउन के नाम पर पुलिस द्वारा की जा रही बर्बरता पर भी रोक लगाने की मांँग की।

केरल सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए, माकपा बिहार राज्य कमिटी ने राशन कार्ड की अनिवार्यता को समाप्त कर सभी जरूरतमंदो को मुफ्त राशन प्रदान करने, प्रत्येक जन धन खाता धारकों और बीपीएल परिवारों के खाते में पांच हजार रुपये अविलंब जमा कराने, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा दोनों ही स्वास्थ्यकर्मियों को स्वास्थ्य बीमा देने, चिकित्सा कर्मचारियों को बुनियादी आवश्यक उपकरण प्रदान करने, अधिक जांँच सुविधा की उपलब्धता आदि की मांँग की।

बिहार राज्य किसान सभा की तरफ से भी उनके नेता प्रभुराज नारायण राव ने गन्ना किसानों के बकाए भुगतान के संबंध में उनके मुद्दे को उठाया और सरकार का ध्यान आकर्षित किया ताकि वे इस संकट से कुछ हद तक बच सकें।

अभी बिहार में फसल की कटाई का मौसम है और अगर पकने वाली फसलों की कटाई नहीं की जाती है, तो यह किसान के सामने एक बड़ी समस्या पैदा करेगा और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भुखमरी से होने वाली मौतों को यह जन्म देगीl

बहुत दिनों के बाद बिहार के मुख्यमंत्री ने अन्य मंत्रियों के साथ पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें राज्य की स्थिति के बारे में उन्होंने बताया । उनके द्वारा जो कुछ भी घोषणाएएँ की गईंं, वे बहुत ही कम थीं और तब तक बहुत देर भी हो चुकी थी। जैसे राशन केवल राशन कार्ड धारकों को प्रदान किया जाएगा, लेकिन शहरों में कई निवासियों के पास कोई राशन कार्ड नहीं है, उनमें से अधिकांश रेलवे पटरियों के किनारे पर खुले, फुटपाथों में अपनी रात बिताते हैं। वास्तव में उनके पास कोई कार्ड नहीं है, कोई कागज नहीं है। उनके द्वारा इस संबंध में कोई बात नहीं कही गयी कि वे कैसे अपना जीवन- यापन करेंगे?

एक अन्य संबोधन में उन्होंने कहा कि पिछले दिनों “हमने केंद्र से दवाइयों, एन 95 मास्क, पीपीई किट, सी-प्लाई मास्क, आरएनए निष्कर्षण किट और वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाने का आग्रह किया। आगे उन्होंने कहा लेकिन अभी तक सिर्फ पचास हजार एन-95 मास्क उपलब्ध कराए गए हैं जबकि दस लाख की मांँग की थी, उसी प्रकार सिर्फ चार हजार पीपीई किट उपलब्ध कराए गए हैं जबकि पांच लाख की मांँग की गई थी, उसी प्रकार सिर्फ एक लाख सी प्लाई किट उपलब्ध कराया गया है जबकि दस लाख की मांँग की गई थी, उसी प्रकार सिर्फ 250 आरएनए एक्सट्रैक्शन किस उपलब्ध कराए हैं, जबकि दस हजार की मांँग की गई थी। अब तक एक भी वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं कराया गया है, जबकि एक सौ की माँग की गई थी।

आपको बता दें कि बिहार में अब तक जिला स्तर पर एक भी जांँच केंद्र स्थापित नहीं किया गया है। अब तक केवल तीन जांँच केंद्र काम कर रहे हैं। बड़ी संख्या में श्रमिकों की घर वापसी के मद्देनजर, अधिक से अधिक लोगों का जांँच करना सभी के लिए आवश्यक है ताकि यह चेन टूटे और संक्रमित लोगों की पहचान की जा सके।

मांँगों या जरूरतों को पूरा करने के बजाय, हमारे प्रधानमंत्री अंधविश्वास फैलाने में व्यस्त हैं। जैसे कि उन्होंने थाली पीटने के लिए कहा, ताली बजाने को कहा, रात के 9:00 बजे 9 मिनट के लिए दीपक-मोमबत्तियाँ जलाने को कहा। इसके पीछे उनका तर्क स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एकजुटता प्रकट करना था जो जीवन बचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। वास्तव में हम सभी उनके प्रति एकजुटता प्रकट करते हैं लेकिन सच्ची एकजुटता का मतलब तभी है जब सरकार उनकी आवश्यकताओं को पूरा करे। हम विज्ञान की दुनिया में इक्कीसवीं सदी में रह रहे हैं ।

इस समय, जब पूरा देश अंधविश्वास में डूबा हुआ था, केरल इस महामारी से लड़ने के लिए एक मॉडल बन गया और पूरा देश आशा के साथ केरल की ओर देखने लगा। यह केवल इसलिए संभव हुआ क्योंकि माकपा के नेतृत्व वाली केरल की वाममोर्चा सरकार ने पहले दिन से ही इसे गंभीरता से लिया। केरल सरकार, केरल के मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन, स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर ने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए हरसंभव सक्रिय भूमिका निभाई। केरल में प्रवासी श्रमिकों को अतिथि कार्यकर्ता के नाम से बुलाया जाता है, उनके लिए विशेष व्यवस्था की गई, अगर उन्हें सामुदायिक रसोई में तैयार भोजन पसंद नहीं हो या वे स्वयं खाना बनाना चाहते हों, तो उन्हें भोजन किटों की आपूर्ति की जाने लगी।

जैसा कि हम जानते हैं कि महामारी को नियंत्रित करने के लिए कोई दवा, कोई टीका नहीं है। उपाय का एकमात्र विकल्प सामाजिक दूरी द्वारा वायरस श्रृंखला को तोड़ना है। “चेन को तोड़ो” के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, केरल सरकार, प्रशासन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता जमीनी तौर पर कड़ी मेहनत करते थे, क्योंकि वे एक भी मौका देने को तैयार नहीं थे। इस तरह केरल ने इस महामारी से बहुत ही तेजी से उबरा और अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण के रूप में स्वयं को पेश किया।
बिहार में कोविड -19 के बजाय भूख से बड़ी संख्या में मौतें होनी शुरू हो गई हैं। आरा जिले में एक 11 साल के दलित लड़के की भूख से मौत हो गई। मधुबनी और अन्य जिलों से भी ऐसे ही मामले सामने आए, जबकि कोविड -19 की वजह से होने वाली मौतें आज की तारीख तक एक ही है।
बिहार में न केवल सी०पी०आई० (एम) और कुछ अन्य राजनीतिक दलों अपितु समाजसेवी संगठनों, किसान, श्रमिक, युवा, छात्र और महिला संगठन भी जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आए।
लॉकडाउन के कारण सभी वर्गों के लोग प्रभावित हुए। छात्रों को अपने सेमेस्टर में देरी होने के कारण तनाव होना स्वाभाविक है, विशेषकर वे छात्र जो पेशेवर और तकनीकी पाठ्यक्रम में पढ़ रहे हैं। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, बिहार राज्य कमेटी की तरफ से राज्य कमेटी सदस्य निशांत ने बिहार के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र लिख कर ऑनलाइन क्लासेज के बारे में कहा ताकि सेशन लेट ना हो।
सी०पी०आई०(एम) बिहार राज्य हेल्पलाइन ([email protected], 0612-2203325), नंबर पर प्रतिदिन बहुत संख्या में मेल और कॉल आ रहे हैं। पार्टी के राज्य सचिव अवधेश कुमार, केंद्रीय कमिटी सदस्य अरुण कुमार मिश्रा, राज्य सचिव मंडल सदस्य रामपरी, पार्टी के राज्य प्रचार प्रसार कमिटी के सदस्य निशांत, मनोज चंद्रवंशी, अशोक मिश्रा, किसान सभा के राज्य सचिव विनोद झा, श्रमिक संगठन के नेता गणेश सिंह, खेतिहर मजदूर यूनियन के नेता देवेन्द्र चौरैसिया और अन्य दिन-रात एक-एक कॉल का जवाब दे रहे हैं और लोगों की परेशानी हल करने में लगे हुए हैं। स्थानीय स्तर पर पार्टी ने महामारी के बारे में जागरूकता अभियान चलाया और मास्क, सैनिटाइज़र, वितरित किया। इसके अलावा, राहत सामग्री वितरित की जा रही है, सामुदायिक रसोई चलाई जा रही है। बेगूसराय, पूर्णिया, मधुबनी, सहरसा, दरभंगा, बक्सर, समस्तीपुर, पटना, और अन्य जिलों के कॉमरेड इस हालात में भी संकटग्रस्त लोगों के सहायतार्थ हर संभव प्रयास कर रहे हैं। मधुबनी जिला के जयनगर में पार्टी राज्य कमिटी के सदस्य, डी०वाई०एफ०आई० के राज्य सचिव शशि भूषण प्रसाद के नेतृत्व में पिछले 15 दिनों से सामूहिक रसोई चलाई जा रही है।
हमारे प्रधानमंत्री के अंधविश्वासी आह्वान के आदेश का पालन करने के क्रम में बिहार के सैकड़ों लोग,उनके घर, जानवर इत्यादि आगजनी के शिकार हुए। आपसी मतभेद पैदा हुए, जिसके कारण लड़ाई हुई और अंततः मौत हो गई। मोतिहारी, दरभंगा, समस्तीपुर, पटना, मधुबनी, मुंगेर और बिहार के अन्य कई जिलों से ऐसी सूचनाएँ मिली हैं।
हाल ही में हमने देखा है कि हमारे प्रधान मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और ‘हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन’ सहित चौबीस दवाओं पर से प्रतिबंध हटाकर उनके निर्यात की अनुमति दे दी जबकि सरकार को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के धमकी भरे बयानों की कठोर आलोचना करनी चाहिए थी।

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