भगवान सूर्य को परब्रह्म के रूप में मानती है भारतीय संस्कृति

जेटी न्युज
मोतिहारी।पु0च0
लोक आस्था का महान पर्व चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आज शुक्रवार को नहाय-खाय से प्रारंभ हो जाएगा। शनिवार को छठपूजा के द्वितीय दिन खरना रूपी अनुष्ठान सम्पन्न किया जाएगा। इसदिन निराहार रहकर सायंकाल गोधूली वेला में नवनिर्मित मिट्टी के चुल्हा में आम की लकड़ी पर बनी हुई रोटी के साथ साठी चावल,गाय के दूध एवं गुड़ से निर्मित खीर तथा केला,आदी,मूली और अन्य ऋतुफल आदि का केला के पत्ता पर नैवेद्य (नेवज) लगाकर प्रसाद लेने का विधान है।चैती छठ का सायंकालीन अर्घ्य रविवार को है,वही सोमवार को प्रातःकालीन अर्घ्य देने के साथ पारण कर लिया जाएगा। उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।उन्होंने बताया कि भगवान सूर्य कालचक्र के महाप्रणेता हैं। सूर्य से ही दिन,रात,मास,अयन एवं संवत्सर का निर्माण होता है तथा सूर्योदय से ही किसी भी वार का प्रारंभ होता है। सूर्योपासना के मूल में आध्यात्मिक लाभ के अलावा शारीरिक स्वास्थ्य एवं भौतिक लाभ का भाव भी निहित मिलता है। यह कई प्रकार के रोगों से रक्षा करता है।

इसके अतिरिक्त हमारी भारतीय संस्कृति भगवान सूर्य को परब्रह्म के रूप में मानती है।जहाँ तक छठ माता का सम्बंध है,जिनकी पूजा सूर्यषष्ठी व्रत के रूप में है,यह एक शक्तिरूपा मानी जाती है जिनकी पूजा पौराणिक काल से चली आ रही है। जिसका निर्देश अपने लौकिक पारंपरिक छठव्रत की कथाओं,मान्यताओं एवं महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गीतों में मिलता है और यह प्रत्यक्ष भी है। सत्व,रज एवं तम ये तीनों ही गुण छठी माता के नियंत्रण में काम करते हैं जो सृष्टि के संचालक एवं संवर्द्धक हैं।

 

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