धर्म एक होता है अनेक नहीं, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई यह सब अपना-अपना मत है धर्म नहीं: श्री श्री ठाकुर

धर्म एक होता है अनेक नहीं, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई यह सब अपना-अपना मत है धर्म नहीं: श्री श्री ठाकुर
जेटी न्यूज

डी एन कुशवाहा

रामगढ़वा पूर्वी चंपारण – युग पुरुषोत्तम परमप्रेममय श्रीश्री ठाकुर अनुकूलचंद्रजी ने कहा है कि धर्म एक होता है अनेक नहीं, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई यह सब धर्म नहीं है बल्कि अपना अलग- अलग मत है। धर्म के नाम पर आज धोखेबाजी हो रही है। जिसका हश्र समाज में देखने को मिल रहा है। संसार के इतिहास में हम देखते हैं कि मनुष्य धर्म के नाम पर भी बहुत अधर्म करता है । इस संबंध में श्रीश्रीठाकुर जी ने कहा है कि धर्म का अर्थ क्या है, वो भी शायद वह अच्छी तरह नहीं समझता है। इसीलिए,धर्म के नाम पर अधर्म करता है। जो अज्ञनता के कारण अन्याय करता है।

 

वह अन्याय किसी न किसी दिन निश्चय ही रूक सकता है। किन्तु जो समझ – बूझ कर धर्म और नीति की बातें कह कर अपनी प्रवृत्ति को चरितार्थ करना चाहता है,उसके लिए सोचना है। जो ज्ञानपापी है , जो अपने आप एवं दूसरे को धोखा देकर सुख पाता है,उसका एकमात्र शिक्षक होता है कर्मफल। जब वह घोर विपत्तियों में पड़ जाता है, तब वह समझ सकता है कि उसने अपने आपको , कितना नुकसान पहुँचाया है। सभी चीजों की तरह धर्म में विकृति नहीं आती है, ऐसी बात नहीं है। उसका एकमात्र प्रतिकार है वास्तविक धर्मप्राणता , वास्तविक इष्टप्राणता । धर्माचरण द्वारा ही सारी जटिलताएँ दूर हो जा सकती है । धर्म का वह आचरण देखने पर दूसरा भी प्रबुद्ध तथा उपकृत होता है। जबतक मनुष्य अपनी भलाई चाहता है तबतक वह धर्म का विरोधी नहीं हो सकता है ।
[ कथानिर्झर, पाँचवाँ खण्ड , दि0 – 5.2.1944 ] सभी को हार्दिक रा-नन्दित जय गुरु
वन्दे पुरूषोत्तमम!

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