जिसकी जितनी आबादी उसको उतनी भागेदारी, नहीं चलेगी मनमानी

जिसकी जितनी आबादी उसको उतनी भागेदारी, नहीं चलेगी मनमानी

आलेख : प्रो अरुण कुमार
जे टी न्यूज़

बिहार में बहार है नीतीश तेजस्वी की सरकार है। बिहार की 80 प्रतिशत जनता की यह आबाज कुछ लोगों को पसंद नहीं है। बिहार के एनडीए के एक बड़े नेता जिन्हें 2020के सरकार गठन में बिहार की राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था,आज कल फिर से मुखर हो गये हैं। इन्हें रह बात पच नहीं रही है कि बिहार की नई सरकार में एक जाति विशेष के 6 मंत्री को शामिल किया गया है।जबकि इस जाति की अकेले की आबादी 14-16 प्रतिशत है। उन्हें यह नहीं दिख रहा है कि आखिर दो प्रतिशत आबादी बाली जाति के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में 12 मंत्री कैसे हैं।यह बिहार में यादव को विलेन बनाने की चाल है।यादवों से लड़ाई कुर्मी लड़े, कोयरी लड़े, ओबीसी के आपसी वर्चस्व के लिए हो तो खास नुक़सान नहीं है। लेकिन यदि यादवों को विलेन बनाने की मंशा के पीछे बीजेपी जैसी ब्राम्हण और द्विज बनिया (अगड़े) वर्चस्व की मानसिकता छिपी हुई है तो हमें यह उस नेता से पूछना चाहिए।बिहार में यादवों की आबादी 14-18 प्रतिशत है, यदि 6 मंत्री बन जाते हैं तो इसमें हायतौबा मचाने की ज़रुरत नही है।
यह अलग बात है कि तेजस्वी टिकट वितरण में थोड़ा कम टिकट देते तो बेहतर होता।

 

किन्तु एनडीए की उस नेता की मंशा यादवों को विलेन बना कर अन्य ओबीसी जातियों को पट्टी पढ़ाने की है ताकि भाजपा के ब्राम्हण और द्विज बनिया (अगड़े) वर्चस्व के खिलाफ कोई मजबूत मोर्चेबंदी न हो।जैसा कि दिलीप मंडल जी लिखते हैं।बीजेपी के एक नेता ने बिहार सरकार पर हमला बोला है कि इसमें 6 यादव मंत्री हैं। वे भूल रहे हैं कि केंद्र सरकार में 12 ब्राह्मण मंत्री हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक सलाहकार भी। बिहार सरकार ज़्यादा समावेशी है। 5-5 दलित और मुसलमान हैं। ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहार भी सरकार में मंत्री हैं।बीजेपी मुसलमान मंत्री नहीं बनाती। उसका तर्क है कि मुसलमान उसे वोट नहीं देते। लेकिन बिहार सरकार ने ब्राह्मण और भूमिहार मंत्री भी बनाए हैं। समझ सकते हैं कि ज़्यादा समावेशी, सबको साथ लेकर चले वाला कौन है?यादवों की यह हिस्सेदारी इसलिए जायज है क्योंकि देश के तमाम बड़े संस्थानों में प्रभु वर्ग की प्रभुत्व के खिलाफ कोई ओबीसी की तरफ से चुनौती दे रहा है तो उसमें सबसे पहले यादव खड़ा मिलेगा।

मल्लाह जाति के एक सिपाही बताते हैं कि पुलिस में भर्ती हुए तो देखा कि बैरक में ब्राम्हण का अलग कोना है, राजपूत का अलग, भूमिहार का अलग.. मल्लाह भाई कहां जाते? जिधर जाते उधर ऊंच – नीच अपमानजनक टिप्पणी, व्यवहार मिलता। वे भी यादव सिपाहियों के हॉल में जगह ली और वहीं पर रहने लगे। वे कहते हैं कि यादव ओबीसी का स्वाभाविक अगुवा इसलिए है।इतिहास गवाह है सामाजिक आंदोलन हो या स्वतंत्रता आन्दोलन हो या सीमा पर लड़ने वाली जाति हो। हिंदी पट्टी में सबसे ज्यादा खून यादवों ने बहाया है और यादवों का ख़ून बहा है।यादवों ने जितना बलिदान दिया है, उतना सत्ता भी हासिल हुआ है। किन्तु यादवों के पास उतना धन ओर प्रभुत्व नहीं है जितना कि उन्हें विलेन साबित किया जा सके।

विशेष कर ओबीसी को समझने की ज़रुरत है कि यदि गांव में एक दो लड़ाकू दस्ता न हो तो सामंत बस्तियां लूट लेते है। यादव ओबीसी का लड़ाकू दस्ता है। जिसकी ताक़त मिलते ही ओबीसी ब्राम्हण और द्विज बनिया (अगड़े) वर्चस्व को धूल चटा देगा। इसलिए भगवा खेमे की चाल से सतर्क रहें।
जिस तरह आज बीजेपी सवर्णों की पार्टी है उसी तरह पहले कांग्रेस सवर्णों की पार्टी हुआ करता था पहले ऐसे बहुत नेता थे जो कांग्रेस में अपमानित होकर निकल जाते थे या उन्हें निकाल दिया जाता था।सुभाष चंद्र बाबू भी अपमानित होकर निकल गए और अपना आजाद हिंद फौज की स्थापना किए।योगेंद्र नाथ मंडल पहले कांग्रेस में ही थे कांग्रेस ने अपमानित कर उन्हें निकाल दिया जिसके कारण बाद में वह मुस्लिम लीग में गए योगेंद्र नाथ मंडल को अपमानित नहीं किया जाता तो बांग्लादेश आज भारत भारत का अंग होता।
इसलिए अब भी चेतने की जरूरत है। एनडीए के ओबीसी नेताओं के लिए भी अपने समाज के लिए सोचने का समय आ गया है।

Related Articles

Back to top button