लाॅकडाउन और आम जन जीवन:-

 

 

1. बगैर विशेषज्ञों की राय के अचानक मोदी जी लॉकडाउन की घोषणा कर दी और फरमान जारी कर दिया जो जहां हैं वहीं रहें।

2. लोगों से कहा गया आपको काम से नहीं हटाया जायेगा। इम्पलॉयर नियोक्ताओं नें मजदूरों, कामगारों और प्रोफेशनल को काम से हटा दिया।

3. कहा गया कि आपको मकान मालिक नहीं हटायेंगे, आपसे भाड़ा नहीं मांगेंगे, लेकिन मकान मालिकों नें भाड़ेदार को घर से निकाल दिया, भाड़ा नहीं देने पर जलील किया।

4 . कम्यूनिटी किचन से जब खाना लाने मजदूर सड़क पर निकलते थे तो पुलिस उनपर डंडे बरसाती थी। सभी को खाना भी नहीं मिलता था। एक पालीथिन खिचड़ी में या एक पैकेट खाना में दो तीन व्यक्ति बांटकर खाते थे।

5 . मरता क्या नहीं करता, मजदूरों नें कहा यहाँ भी भूखे मरना हीं है तो चलो लॉकडाउन तोड़कर मरेंगे कोरोना से मरेंगे। पैदल चलकर मरेंगे।

6. 1500 – 2000 किलोमीटर पैदल चलना दिल दहला देने वाली घटना थी। ये घटना इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज की जाएगी।

7. मजदूरों का पैदल चलना, चलते हुए रास्ते में जान गंवाना सरकार की नाकामी का दस्तावेज है।

8 . इसके बाबजूद बिहार की सरकार नें, नीतीश सरकार नें कहा जो जहाँ हैं वहीं रहें। बिहार सरकार इन्हें वापस नहीं लाएगी। जो लोग बिहार के बॉर्डर तक पैदल पहुंच गए उन्हें रोक दिया गया।

9. कोटा में रह रहे मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों को बिहार लाने का सरकार नें भेदभावपूर्ण योजना बनाई। इस भेदभाव नीति की आलोचना हुई और दूसरों नें जब मजदूरों को लाने के लिये बस भेज दिया तो अपनी इज्जत बचाने के लिए बिहार सरकार नें स्पेशल ट्रेन को मंजूरी दी। ट्रेन पर भी 100 लोगों ने बगैर खाये पिये जान गंवाई। ट्रेन में कितने लोग मरे, सड़क चलते कितने लोग इसका आॅकड़ा तक सरकार नें रखना मुनासिब नहीं समझा।

10. बाहर से आये मजदूरों को स्कूलों में कोरंटीन सेंटर पर रखा गया। कोरंटीन सेंटर में पैसा का घपला करने हेतु एक दो शाम का खाना मार लिया जाता था। फिर जैसे तैसे खाना पीना दिया। बिछावन नदारत कहीं केवल दरी दे दिया तो कहीं केवल चादर, पीने के पानी, बाथरूम, लैट्रिन सब की बदइंतजामी। ये मजदूर कुछ खाना पानी खरीदने या नहाने बाहर चले जाते थे। कई जगह गांव वालों से मारपीट भी हुई। कई मजदूरों नें खेत के बहियार में नदी किनारे आदि जगहों पर 15 दिन बिताये।

11. इन मजदूरों से कहा गया सबको काम मिलेगा, सबकी स्किल मैपिंग की जायेगी। स्किल मैपिंग हुआ भी सभी का रजिस्ट्रेशन हुआ भी लेकिन, ढाक के तीन पात। मजदूर फिर से वापस जा रहे हैं।

12 . नीतीश जी नें कहा सभी को मनरेगा तहत काम मिलेगा। जैसे सभी योजनाओं में लूट है। मनरेगा में वैसे हीं लूट पहले से हीं है। मनरेगा में काम देने की बात भी टांय टांय फिस हो गया।

11. नीतीश जी बार बार विकास की बात करते हैं। बेशक निर्माण का कुछ कार्य हुआ तो है जिसको ये विकास बोलते हैं, इसका लाभ किसी गरीब को नहीं मिला है, इस विकास से पलायन नहीं रुका है। इस निर्माण के काम से ठेकेदारों, बिचौलियों, अधिकारियों, ऑफिस के बाबुओं का विकास हुआ। गांधी जी विकास के काम का मानक अंतिम आदमी को बनाने कहते थे। हमारे काम का असर अंतिम आदमी पर हुआ या नहीं ? बिल्कुल नगण्य।

12. राशनकार्ड और राशन नें तो प्रवासियों का क्या, यहां रह रहे लोगों का भी पसीना छुड़ा दिया। आज भी बहुत लोग राशन और राशन कार्ड से वंचित हैं। एक परिवार के लिए एक किलो दाल कितना हास्यास्पद है, उसपर भी ऐसा अनाज जिसे जानवर भी न खाए। अनाज कभी कभी और कहीं कहीं हीं काम चलाने लायक मिलता है।

13. 25 – 30 लाख बिहारी जिल्लत झेलकर बिहार आये और आज भी जिल्लत झेलने को मजबूर हैं। ज्यादातर ये मजदूर अत्यंत पिछड़ी जाति, पिछड़ी जाति और दलित जाति के हैं। अगर बिहार में विकास निर्माण केंद्रित न होकर रोजी रोजगार केंद्रित होता, अत्यंत पिछड़ा, पिछड़ा और दलित केंद्रित होता तो इन्हें पुनः पलायन नहीं करना पड़ता।

14 . नीतीश जी विकास का पोल अस्पतालों नें खोल दिया। कोरोना मरीज को डॉक्टर देखते हीं नहीं थे। पी पी ई किट्स, ग्लब्स, मास्क, डाक्टर, नर्स की कमी अभी भी बरकरार है। अस्पताल यानि पब्लिक हेल्थ सिस्टम तो पहले हीं टें बोल गया है।

15. कोरोना मरीज, सस्पेक्टेड, और अन्य रोगों से ग्रसित मरीजों और उनके परिजनों को तो नीतीश जी के स्वास्थ्य व्यवस्था नें दुर्गति पूराकर रख दी। एम एल ए, एम पी, पदाधिकारी और सरकारी दल के नेताओं को तो तुरंत एम्स पटना भेज दिया जाता था/है और साधारण व्यक्ति को जिला अस्पताल।

कोरोना संकट नें नीतीश जी के विकास और रोजगार का पोल खोल दिया है। 15 साल पहले नीतीश जो सड़क और नाली पानी बकते थे अब भी वही बकते हैं। रोजगार और नौकरी बिना विकास की बात धोखा है।

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